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न्यूज क्लिपिंग्स् | एसी वाली कॉरपोरेट लाइफ छोड़ बनी किसान-- रचना प्रियदर्शिनी

एसी वाली कॉरपोरेट लाइफ छोड़ बनी किसान-- रचना प्रियदर्शिनी

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published Published on May 12, 2017   modified Modified on May 12, 2017
तेजी से औद्योगिकीकरण की ओर बढ़ते इस मशीनी युग में जहां गांवों की अधिकतर आबादी बेहतर जीवन और सुख-सुविधाओं की तलाश में शहरों की ओर पलायन कर रही है, वहीं एक बेटी ऐसी भी है, जिसने कॉरपोरेट लाइफ की अच्छी-खासी जॉब को ठुकरा कर गांव में खेती करने के लिए वापस लौट आयी. इस बेटी का नाम है-अंकिता कुमावत. जानते हैं अंकिता के इस निर्णय की आखिर वजह क्या रही. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, कोलकाता से एमबीए करने के बाद अंकिता ने एक मल्टीनेशनल कंपनी में असिस्टेंट मैनेजर के तौर पर जॉब ज्वॉइन किया.

 

 

वह चाहतीं, तो हर महीने लाखों रुपये कमा कर ऐशो-आराम की जिंदगी बिता सकती थीं, लेकिन उन्होंने वह सब कुछ छोड़ कर वापस राजस्थान के अपने गांव में लौटने का निर्णय लिया- अपने परिवार के पास, अपने पिता के सपनों को पूरा करने के लिए. हालांकि अंकिता के लिए यह निर्णय लेना आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने अपनी सुख-सुविधाओं से कहीं ज्यादा पिता के सपनों को तरजीह दी. वह कहती हैं, 'पिता को मेरी जरूरत थी और मुझे उनकी फिक्र भी, आखिर पिता की ताकत बनना कौन बेटी न चाहेगी?'

 

 

बचपन में थीं बेहद कमजोर

अंकिता कुमावत का बचपन राजस्थान के अजमेर में एक छोटे-से गांव में बीता है. जब वह छोटी थीं, तो अकसर बीमार रहा करती थीं. एक बार उन्हें गंभीर रूप से जॉन्डिस हो गया. डॉक्टरों के उनके पिता फूलचंद को दवाइयों के साथ-साथ उन्हें गैर-मिलावटी भोजन और दूध खिलाने-पिलाने की सख्त हिदायत दी. फूलचंद ने बहुत कोशिश की, पर लाख कोशिशों के बावजूद उन्हें शुद्ध दूध-फल या सब्जी नहीं मिल पाया. तब उन्होंने अपनी बच्ची की जान बचाने के लिए खुद ही गाय पालने और प्राकृतिक तरीके से फल-सब्जियां उगाने का निर्णय लिया.

 

 

अपने घर के पिछवाड़े की थोड़ी-सी जमीन में खेती-बाड़ी करने लगे और साथ ही एक गाय भी खरीद ली, ताकि उनकी बेटियों को ताजा व शुद्ध दूध मिल सके. नतीजा अंकिता की तबियत में तेजी से सुधार हुआ. आगे बेहतर स्वास्थ्य के लिए प्राकृतिक उत्पादों के महत्व को समझते हुए फूलचंद ने केवल फल-सब्जियां ही नहीं, बल्कि अनाज, दालें और मसाले आदि सब कुछ घर पर ही उगाना शुरू कर दिया. एक किसान परिवार से होने के कारण उन्हें खेती का ज्ञान भी था और उसमें रुचि भी थी, इसलिए उन्हें इस काम में भरपूर सफलता भी मिली. इसी दौरान उनकी दोनों बेटियों की पढ़ाई भी पूरी हो गयी.

 

 

पिता के सपने ज्यादा जरूरी

जब अंकिता ने वर्ष 2009 में एमबीए करने के बाद जॉब ज्वाइन किया, तो उनके पिता पीडब्ल्यूडी विभाग में सरकारी इंजीनियर के पद से वीआरएस लेकर पूरी तरह खेती-किसानी के काम से जुड़ गये.

 

 

अंकिता अपने जॉब में बेहतरीन परफॉर्म कर रही थी. इस दौरान उन्हें कई बार विदेश जाने का मौका भी मिला. पर अचानक वर्ष 2014 में अंकिता ने अपने कॉरपोरेट जॉब से इस्तीफा देकर वापस अपने गांव लौटने का निर्णय लिया. उनके अनुसार-''मैं एक मिडिल क्लास फैमिली से ताल्लुक रखती हूं, जहां पढ़ाई और बेहतर जॉब हर किसी की पहली प्राथमिकता होती है. लेकिन, अपने परिवार की बड़ी बेटी होने के नाते अपने पिता की जिम्मेदारियों का बांटना भी मेरा फर्ज था. अब वह बूढ़े हो चले हैं. उनसे पहले जितनी भाग-दौड़ और मेहनत नहीं हो पाती, इसलिए मैंने अपने जॉब से कहीं ज्यादा उनके सपनों को पूरा करना जरूरी समझा. उन्होंने हमारी बेहतर जिंदगी के लिए अपना जॉब छोड़ दिया. आज अगर मैंने ऐसा किया, तो इसमें कौन-सी बड़ी बात हो गयी.''

 

 

एंप्लॉई से बन गयीं एंप्लॉयर

अंकिता वर्ष 2014 में पिता के साथ मिल कर काम करना शुरू किया था. 90 के दशक में पिता ने एक गाय खरीदी थी. आज उनके अजमेर स्थित फार्म पर करीब 50 गाएं और भैंस हैं. करीब दो साल पहले "मातृत्व डेरी एंड ऑर्गनिक फूड" परियोजना की शुरुआत की.

 

 

इस परियोजना के बारे में पूछने पर अंकिता कहती हैं, 'पहले हम अपने काउंटर से ही दूध बेचा करते थे, लेकिन अब हमने इसकी होम डिलिवरी भी शुरू कर दी है. इसके अलावा हम ऑर्गेनिक फल, सब्जियां, मसाला और शहद भी डिलीवर करते हैं. लोगों को उचित मूल्य पर शुद्ध व रसायनमुक्त दूध उपलब्ध कराना ही हमारा उद्देश्य है.'' जब से अंकिता ने अपने पिता की विरासत को संभाला है, वह हमेशा ही इसमें नये-नये प्रयोग करती रहती हैं, जिससे न केवल उनके परिवार को, बल्कि गांववालों को भी काफी कुछ सीखने को मिला है.

 

 

उन्होंने अपने खेत में ड्रिप-इरिगेशन टेक्निक को अप्लाइ किया है. बिजली की अबाधित आपूर्ति के लिए सोलर एनर्जी पैनल लगवाया है और रेन वॉटर हारवेंटिंग सिस्टम को अपना कर राजस्थान जैसे पानी की कमीवाले क्षेत्र में किसानों के लिए एक बेहतरीन उद्दाहरण प्रस्तुत किया है. जल्दी ही वह एक वर्मी कंपोस्ट प्लांट लगाने की योजना पर भी विचार कर रही हैं.

 

 

अंकिता के अनुसार, इस क्षेत्र में संभावनाओं की भरमार हैं. लोग बाकी काम भले छोड़ दें, पर भोजन करना तो नहीं छोड़ सकते न. इस लिहाज से देखें तो आनेवाले समय में भारतीय युवाओं के लिए खेती और खेती से जुड़े व्यवसायों उज्जव्वल भविष्य है और वर्तमान दौर इससे जुड़ने के लिए सबसे उत्तम है. अब तो बड़ी-बड़ी इंडस्ट्रीज खेती और सौर ऊर्जा से जुड़े व्यवसायों को अपना रही हैं. इन दोनों में कारोबार और मुनाफे की संभावनाओं की कमी नहीं है.


http://www.prabhatkhabar.com/news/vishesh-aalekh/story/986456.html


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