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न्यूज क्लिपिंग्स् | ऑल-राउंडर थे चो रामास्वामी -- राजदीप सरदेसाई

ऑल-राउंडर थे चो रामास्वामी -- राजदीप सरदेसाई

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published Published on Dec 8, 2016   modified Modified on Dec 8, 2016
तमिल पत्रिका ‘तुगलक' की शुरुआत करनेवाले और उसके संपादक रहे मशहूर पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक ‘चो रामास्वामी' (श्रीनिवास अय्यर रामास्वामी) का कल सुबह चेन्नई के अस्पताल में निधन पत्रकारिता जैसे जिम्मेवार जगत के लिए एक बड़ा नुकसान है. जाहिर है, इस दौर में इस नुकसान की भरपाई बहुत मुश्किल है. चो रामास्वामी की शख्सीयत सिर्फ एक पत्रकार या संपादक तक सीमित नहीं थी, बल्कि बहुमुखी प्रतिभा के स्तर पर उनके व्यक्तित्व का आयाम बहुत बड़ा और अलहदा था. उनके व्यक्तित्व में कई व्यक्ति एक साथ छिपे हुए थे. उनका परिवार वकालत के पेशे में था और उन्होंने भी कुछ समय तक थाेड़ी-बहुत वकालत की थी. लेकिन, उन्होंने अपने पुश्तैनी काम वकालत से इतर एक अलग पहचान बनायी और यह पहचान ही उनकी शख्सीयत को बड़ा बनाने का जरिया बनी. 

चो रामास्वामी ने कई नाटक भी लिखे थे और नाट्यमंचों पर महत्वपूर्ण किरदार भी निभाये थे. एक्टर के तौर पर उन्होंने फिल्मों में भी काम किया था और कई फिल्मों का निर्देशन भी किया था. यहां भी उनकी पहचान का दायरा बड़ा होता गया. एक फिल्म एक्टर के तौर पर वे कॉमेडियन थे, तो वहीं दूसरी तरफ वे एक अच्छे कार्टूनिस्ट भी थे. कॉमेडियन और कार्टूनिस्ट दोनों का काम तथ्यों के आधार पर आलोचनात्मक टिप्पणी करना होता है, और इस ऐतबार पर बिल्कुल खरे उतरते थे रामास्वामी. वे एक राजनीतिक विश्लेषक तो थे ही, साथ ही वे राज्यसभा से सांसद भी रहे और समकालीन समय के नेताओं को राजनीतिक सलाह भी देते थे. जाहिर है, चो की शख्सीयत को किसी एक नजरिये से देखना उनके साथ नाइंसाफी होगी, इसलिए मैं उन्हें एक ‘ऑल-राउंडर' मानता हूं. 

चो रामास्वामी की शख्सीयत के केंद्र में लोगों से संवाद करना बहुत महत्वपूर्ण था. वे एक बेहतरीन ‘कम्यूनिकेटर' थे. यही वजह है कि चो ने संवाद स्थापित करने के तकरीबन सारे सशक्त माध्यमों को अपना लिया था, चाहे वह पत्रिका में संपादकीय लिख कर हो, चाहे नाटक लिख कर हो. चाहे वह एक्टिंग से हो, चाहे कार्टून से हो. चाहे वह विचार के जरिये हो, चाहे वह राजनीतिक सलाह के जरिये हो. यानी हर तरीके से वे हर तरह के लोगों से संवाद करते थे, ताकि समाज का कोई हिस्सा छूट न जाये. 

चो रामास्वामी की महानता यह थी कि वे किसी एक विचारधारा के कैदी नहीं बन सके. वे देशकाल की परिस्थितियों के अनुसार अपने विचारों में बदलाव लाते रहते थे. वे कभी भी एक व्यक्ति और एक विचार के समर्थक नहीं रहे. पिछले दो-तीन सालों में चो ने नरेंद्र मोदी का काफी समर्थन किया, लेकिन वे कभी भी मोदी-भक्त नहीं रहे. उनका झुकाव दक्षिणपंथ की ओर जरूर था, लेकिन वे उसके खिलाफ बोलने से भी नहीं हिचकते थे. यही वजह है कि उनकी पत्रिका तुगलक अकेली ऐसी पत्रिका थी, जिसने 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी विध्वंस के बाद इस दुखद घटना के विरोध में अपना कवर काला छापा था. मैं मानता हूं कि एक संपादक के तौर पर ऐसा करके उन्होंने सही किया. यह उनकी अपने काम के प्रति जिम्मेवारी को दर्शाता है और सच्चे अर्थों में वे देशभक्त थे.

चो की तमिलनाडु की राजनीति में गहरी रुचि थी, लेकिन वे कोई नेता नहीं थे. वे हमेशा मुझसे कहते थे कि जब जयललिता विपक्ष में होती हैं, तो मैं उनका समर्थन करता हूं, लेकिन जब वह सरकार में होती हैं, तो मेरी-उनकी आपस में नहीं मिलती. जाहिर है, ऐसा आदमी किसी नेता का घोर समर्थक नहीं हो सकता, और यही बात चो को एक अलग पहचान देती थी. 

वे पुराने जमाने के ऐसे पत्रकार और कार्टूनिस्ट थे, जिन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया की आजादी की हमेशा वकालत की. एक कार्टूनिस्ट हमेशा नेताओं की तीखी आलोचना करता है और वह कभी भी नहीं चाहेगा कि मीडिया की आजादी खतरे में आये. क्योंकि, ऐसी स्थिति में कार्टून बनाना-लगाना भी मुश्किल हो जायेगा. 

मैं समझता हूं कि एक स्तर पर एक कार्टूनिस्ट का कार्टून एक पत्रकारीय लेख से ज्यादा मारक होता है, यही वजह है कि एक नेता या अन्य कोई मशहूर व्यक्ति अपने विराेध में छपे लेख पर उतना नाराज नहीं होता, जितना कि अपने ऊपर बने एक कार्टून पर. दुनिया भर में कार्टूनिस्ट अपने इस काम से लोगों के गुस्से का शिकार होते रहे हैं. लेकिन, इस मामले में चो रामास्वामी बेहद निडर इंसान थे. 

पुराने जमाने की पत्रकारिता की वह कड़ी, जिसमें एक पत्रकार, कार्टूनिस्ट या राजनीतिक विश्लेषक नेताओं के ‘चीयर लीडर' नहीं बन सकते, चो के जाने से वह कड़ी कुछ कमजोर हो गयी है.

एक पत्रकार पर एक जिम्मेवारी होती है कि वह हर नेता या शक्तिशाली व्यक्ति पर अपनी कड़ी निगरानी रखे कि वह क्या गलत कर रहा है, वैसी पत्रकारिता के मिसाल थे चो. अब हमारी जिम्मेवारी है कि हम उनके जैसी पत्रकारिता को प्रोत्साहित करके पत्रकारिता की कमजोर हुई कड़ी को मजबूती प्रदान करें. 
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)

http://www.prabhatkhabar.com/news/columns/story/905466.html


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