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न्यूज क्लिपिंग्स् | औरत के हक में नहीं- तस्लीमा नसरीन

औरत के हक में नहीं- तस्लीमा नसरीन

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published Published on Apr 22, 2014   modified Modified on Apr 22, 2014
लोकतंत्र बहुत ही सभ्य व्यवस्था है। लेकिन इस तंत्र में असभ्य और मूर्खों का भी ऐसा अबाध प्रवेश है कि कई बार लगता है, लोकतंत्र की स्थापना पर ही हमें रुक नहीं जाना चाहिए, बल्कि उसे और बेहतर करने के बारे में भी सोचना चाहिए। बचपन में मैंने दुर्गम गांवों के कुछ मतदाताओं को नाव चिह्न पर वोट देने जाते देखा था। वे सोचते थे कि नाव चिह्न पर वोट डालने से मुफ्त में एक नाव मिल जाएगी। उस दौर में मैंने नेताओं और उनके कार्यकर्ताओं को जनता को यह कहते हुए धमकाते हुए भी देखा है कि धान की बाली पर वोट न देने पर टांगें तोड़ दूंगा। मतदान करने का मेरा अनुभव बहुत अधिक नहीं है। अपने जीवन में मैंने दो बार वोट डाला है। वतन में एक बार और स्वीडन में दूसरी बार।

भारत में चुनावी लड़ाई अभी जोरों पर है। केंद्र की सत्ता हासिल करने के लिए भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला हो रहा है। आम आदमी पार्टी इस चुनावी जंग में कहीं नहीं दिखती। अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाकर व्यापक लोकप्रियता हासिल की थी। दिल्ली विधानसभा के चुनाव में उनकी पार्टी को बहुत वोट मिले थे, और कांग्रेस के समर्थन से केजरीवाल मुख्यमंत्री भी बने थे। भ्रष्टाचार खत्म करने का उद्देश्य लेकर वह राजनीति में आए, पर बंगला नहीं लूंगा, गाड़ी नहीं लूंगा, किसी की बात नहीं सुनूंगा, कानून नहीं मानूंगा-कहने के साथ मुख्यमंत्री के महत्वपूर्ण पद पर रहते हुए वह धरने पर बैठे, और आखिरकार इस्तीफा देने जैसी बचकानी हरकत भी कर बैठे। इस कारण अनेक लोग उनसे नाराज हैं। नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के बीच व्यस्त मीडिया अरविंद केजरीवाल पर तभी फोकस करता है, जब उन पर हमला होता है।

चारों ओर मैं जो देख रही हूं, उससे लगता है, नरेंद्र मोदी का पलड़ा भारी है। हालांकि शहरों में ज्यादातर शिक्षित मध्यवर्ग ही मोदी का समर्थन कर रहा है। मगर पूरे भारत में केवल यही वर्ग तो नहीं रहता। दिल्ली विधानसभा चुनाव में ही साफ हो गया था कि लोग अब कांग्रेस पर भरोसा नहीं कर रहे। कांग्रेस के दौर में हुए बड़े-बड़े घोटाले इसकी वजह हैं। लोकसभा चुनाव में मोदी अगर जीत जाते हैं, तो यह उनकी लोकप्रियता का उतना नहीं, जितना कांग्रेस के प्रति गुस्से का प्रमाण होगा। जैसे पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में मतदाताओं ने तृणमूल से जुड़ाव के कारण वोट नहीं दिया, बल्कि वाम मोर्चे की निरंकुशता से नाराज होकर उसे वोट दिया।

लोकसभा चुनाव में भारत की दोनों बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने नारी सशक्तिकरण की बातें कही हैं। कांग्रेस दिन-रात यही कह रही है। भाजपा ने अपने इश्तहार में समान नागरिक संहिता की बात कही है-यानी सभी धर्मों के लोगों के लिए एक कानून होना चाहिए। धार्मिक कानून महिलाओं को ही निशाना बनाते हैं, ऐसे में, कानून से धर्म को निकाल देने पर सबसे बड़ी राहत औरतों को ही मिलेगी।

भारत एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश है। इसलिए यहां समान नागरिक संहिता होना बहुत जरूरी है। लेकिन स्त्रियों के समानाधिकार की बात करती भाजपा ने लोकसभा चुनाव में मात्र पैंतीस महिलाओं को टिकट क्यों दिया है, जबकि उसके कुल प्रत्याशियों की संख्या चार सौ से अधिक है? कांग्रेस के इरादों पर भी सवाल उठते हैं। नारी सशक्तिकरण में यकीन करने वाली पार्टी ने विगत दस वर्षों में कितनी महिलाओं को सामाजिक रूप से सशक्त बनाया है? उसके कुल 417 लोकसभा प्रत्याशियों में महिला उम्मीदवार सिर्फ 53 हैं। आप एक छोटी पार्टी है, लेकिन उसके कुल प्रत्याशियों में 15 प्रतिशत महिलाएं हैं।

कई पार्टियों ने सिनेमा के नायक-नायिकाओं को टिकट दिए हैं। इनमें सबसे आगे हैं ममता बनर्जी। फिल्म, नाटक, संगीत, चित्रकारी, साहित्य-उन्होंने सभी क्षेत्र के लोगों को जोड़ा है। यानी राजनीति का ‘र’ न जानने वाले लोग भी चुनाव में अपना चेहरा दिखाकर वोट लेंगे। वोट बटोरने के लिहाज से यह फॉर्मूला कितना भी अच्छा हो, लेकिन भविष्य के लिए भयावह है।

मजहब की राजनीति ने ही भारत का विभाजन करवाया था। विभाजन के छह दशक बाद भी वह राजनीति बरकरार है। राजनेता आज भी बुखारी से बरकती तक का समर्थन लेने के लिए दौड़ते हैं। सबसे अधिक मुस्लिम वोट हासिल करने की होड़ मचती है। यहां यह सामान्य सोच हावी है कि मुस्लिम कट्टरपंथियों को खुश करने से मुस्लिम वोट थोक में मिल जाएंगे। मुस्लिम समुदाय को शिक्षित, सजग और ज्ञान संपन्न बनाना न तो कट्टरपंथियों के एजेंडे में है, और न इनका वोट हासिल करने वाली पार्टियों के एजेंडे में।

मुझे नहीं लगता कि केंद्र की सत्ता में आने के बाद नरेंद्र मोदी सांप्रदायिक हिंसा को हवा देंगे या राम मंदिर निर्माण के काम में लग जाएंगे। यह नहीं कह सकते कि 2002 की सोच 2014 में नहीं बदली है। भाजपा में मुस्लिमों की सदस्यता बढ़ी है। मोदी खुद मुस्लिम वोट हासिल करने की कोशिश में लगे हैं। सत्ता में बने रहने की राजनीति सब करते हैं, मोदी भी करेंगे।

इस चुनाव में मैं एक पक्षपातहीन, निरीह दर्शक हूं। मैं चाहती हूं, जो भी सत्ता में आए, वह नारी उन्नयन और उसके सशक्तिकरण के लिए काम करे। जो भी सत्ता में आए, वह बलात्कार, बाल अपहरण, बाल विवाह, वेश्यावृत्ति, औरतों का दमन आदि की बेड़ियों से महिलाओं को मुक्त करे। भारत बहुत विशाल देश है। भारतीय गणतंत्र पड़ोसी गणतंत्रों की तुलना में बहुत मजबूत है। भविष्य में यह और मजबूत होगा, धर्म और पुरुष वर्चस्ववाद तभी खत्म होगा। तब मैं नहीं रहूंगी। लेकिन हमारी संततियां रहेंगी। उन सबको यह परेशानी, दंगा और उत्पीड़न नहीं सहना पड़ेगा।

http://www.amarujala.com/news/samachar/reflections/columns/not-in-the-favor-of-woman/


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