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न्यूज क्लिपिंग्स् | कचरे को बना दिया कीमती संसाधन

कचरे को बना दिया कीमती संसाधन

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published Published on Aug 1, 2014   modified Modified on Aug 1, 2014
कहानी है अमेरिका में मोटी तनख्वाह की नौकरी छोड़ स्वदेश लौटे मणि वाजपेयी और राज मदनगोपाल की. उन्होंने एक कंपनी बनायी ‘बैनयान नेशन'. इसके जरिये उन्होंने भारत में दिनोंदिन बढ़ते कचरे के प्रबंधन की दिशा में एक नयी इबारत लिखी है. सामाजिक उद्यम के रूप में स्थापित कंपनी उच्च तकनीक से लैस है. यह पारंपरिक ढंग से हट कर, छंटाई और रीसाइक्लिंग के जरिये कचरे का निबटान करता है.

यह नव-उद्यम कचरे की रीसाइक्लिंग में पेश आनेवाली बाधाओं को नयी सोच और तकनीक की मदद से दूर करने की एक कोशिश है. इसके तहत, इस काम से जुड़ी कंपनियों को कचरे के संग्रहण, अलग-अलग वर्गो में उसकी छंटाई और फिर रीसाइक्लिंग कर कूड़े से ज्यादा से ज्यादा फायदा पाने के तकनीकी गुर सिखाये जाते हैं.

समय-समय पर देश के अलग-अलग शहरों में घूमनेवाले मणि वाजपेयी बताते हैं कि चाहे दिल्ली हो या कोलकाता, बेंगलुरु हो या चेन्नई, कूड़े की समस्या कमोबेश हर जगह है. इसी से मणि को कुछ अलग और अच्छा करने की प्रेरणा मिली, जो देश के ठोस कचरा प्रबंधन में तकनीकी बदलाव और जमीनी स्तर पर सुधार लाकर इसमें लगे लोगों के जीवन को बदल दे.

और यहीं से ‘बैनयान नेशन' की कहानी शुरू होती है. मणि ने बैनयान का बिजनेस मॉडल तैयार किया, जो कोलंबिया स्कूल ऑफ बिजनेस के ग्रीनहाउस इन्क्यूबेटर प्रोग्राम के लिए चुना गया. इसी क्रम में मणि की मुलाकात राज मदनगोपाल से हुई, जो खुद एक ऐसे तकनीकविद् थे, जो देश को कमजोर करनेवाली समस्या का इलाज तकनीक के जरिये ढूंढ़ना चाहते थे.

मणि बताते हैं कि दोनों ने अमेरिका में यूनिवर्सिटी की पढ़ाई साथ-साथ की. एक साथ क्लास बंक करते थे. धीरे-धीरे हमारी दोस्ती गहरी हुई. यह बात सन 2002 की है, जब दोनों यूनिवर्सिटी ऑफ डेलावेअर में थे, जहां मणि वायरलेस कम्युनीकेशंस में पीएचडी और मदनगोपाल रोबोटिक्स में एमएससी कर रहे थे.

पढ़ाई पूरी करने के बाद दोनों की राहें अलग हो गयीं. मणि ने सैन डिएगो में क्वालकॉम ज्वाइन कर लिया, तो मदनगोपाल ने सिएटल में एक नयी मोबाइल कंपनी ज्वाइन की. दस साल बाद मदनगोपाल के साथ फोन पर बातचीत हुई, तो मणि ने अनायास ही भारत में कचरा प्रबंधन के अपने विजन और इस बाबत बर्कले और कोलंबिया बिजनेस स्कूल्स में विकसित अपने बिजनेस मॉडलों की चर्चा कर डाली.

कोलंबिया के ग्रीनहाउस इनक्यूबेटर प्रोग्राम के दौरान मणि और मदनगोपाल अपने बिजनेस मॉडल के लिए ग्राहक तलाशने और उनसे जुड़ने के लिए हैदराबाद और बेंगलुरु की यात्रा पर गये. मणि बताते हैं कि इस दौरान उन्होंने अपना मॉडल समझाने के लिए हैदराबाद नगरपालिका के अधिकारियों से लेकर कचरा प्रबंधन में लगे ठेकेदारों, कचरा चुननेवालों, रद्दीवालों और कबाड़ियों से बात की.

तीन महीने की मार्केट रिसर्च के बाद दोनों ने जाना कि भारत को एक एकीकृत ठोस कचरा प्रबंधन कंपनी की जरूरत है, जो कूड़े से कमाई के तरीकों, यानी कूड़े के संग्रहण, परिवहन से लेकर रीसाइक्लिंग और कूड़े से ऊर्जा उत्पादन को नये आयाम दे सके.

अमेरिका लौट कर मणि और मदनगोपाल ने बे एरिया और न्यू यॉर्क सिटी स्थित वेस्ट मैनेजमेंट की बारीकियों को समझने के लिए कचरा भरने की जगहों, कूड़े से ऊर्जा उत्पादन करनेवाले और रीसाइक्लिंग संयंत्रों का मुआयना किया.

इन सबके बाद जुलाई, 2013 में दोनों ने नौकरी छोड़ दी और स्वदेश लौटे. यहां बैनयान की शुरुआत की. शुरुआत में उनका लक्ष्य नगरपालिका के ठोस कचरे पर काम करना था. मदनगोपाल बताते हैं कि हमने देश भर के टेंडरों की समीक्षा की और राउरकेला स्टील प्लांट के साथ कूड़े से ऊर्जा उत्पादन के एक अनुबंध पर काम किया. इसमें हमने सैन फ्रांसिस्को की बायोगैस से ऊर्जा उत्पादन करनेवाली एक कंपनी का सहयोग लिया.

लेकिन, इस देश में हर जगह व्याप्त लालफीताशाही के वजह से हमारा प्रोजेक्ट आगे खिसकता गया. इससे हमें यह सीख मिली कि एक एकीकृत ठोस कचरा प्रबंधन कंपनी की जरूरत के बावजूद स्थानीय शहरी समितियां नये तौर-तरीकों को आजमाने और जोखिम लेने से बचना चाहती हैं. तब हम अपने उद्यम को अगले स्तर पर ले गये, जहां सरकार या स्थानीय शहरी समितियों की कोई भागीदारी नहीं थी.

मणि बताते हैं, हर साल हमारे देश में 67 लाख टन रीसाइकिल करने लायक कचरा जमा होता है, जिसकी अनुमानित कीमत 19 हजार करोड़ रुपये है. अगर इस पर सही तरीके से काम किया जाये, तो इस काम में लगे कचरा चुननेवालों से लेकर कूड़ा प्रबंधन के ठेकेदारों का फायदा ही फायदा है.

बैनयान का सारा काम एक सॉफ्टवेयर प्लैटफॉर्म पर होता है. कचरे की मात्रा की जानकारी एक ऐप के जरिये मिलती है. मोल-तोल के लिए एसएमएस आधारित ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म है. रोजमर्रा के कामकाज की गतिशीलता को बनाये रखने और कार्य स्तर में उत्तरोत्तर सुधार के लिए डेटा एनालिटिक्स इंजिन है. यही नहीं, कूड़े के संग्रहण और परिवहन के खर्च को नियंत्रित करने के लिए बैनयान नेशन जीपीएस आधारित रूटिंग एंड ट्रैकिंग इंजिन का भी इस्तेमाल करता है.


http://www.prabhatkhabar.com/news/133142-Waste-made---precious-resource-technology-recycling.html


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