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न्यूज क्लिपिंग्स् | कठिन है कालेधन की वापसी- पुष्परंजन

कठिन है कालेधन की वापसी- पुष्परंजन

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published Published on Jun 10, 2011   modified Modified on Jun 10, 2011

काले धन की वापसी के लिए भारत सरकार ने स्विट्जरलैंड को क्या कोई पत्र भेजा है? ज्यूरिच से लेकर बर्न तक के कूटनीतिक नहीं जानते कि अब तक ऐसा कोई आग्रह भारत सरकार की ओर से आया है. काले धन की वापसी और काले धन वाले बैंक खातों की जानकारी, ये दो अलग-अलग विषय हैं. इन दोनों विषयों के बारीक फ़र्क को समझना होगा.

ट्यूनीशिया से भगाये गये तानाशाह बेन अली और मिस्र् के हुस्नी मुबारक के खाते स्विस संसद के आदेश पर सीज किये गये. इससे यह संदेश नहीं जाता कि काले धन वाले हजारों लोगों के साथ ऐसा ही सुलूक होगा? इस साल फ़रवरी के दूसरे हफ्ते स्विस संसद में बहस के दौरान साफ़ कर दिया गया था कि भारत को ’मछलियां पकड़ने वाले अभियान‘ में मदद नहीं दी जायेगी. संसद में स्विस सरकार का बयान था कि काले धन वाले सारे बैंक खातों की जानकारी भारत को नहीं दी जायेगी. भारत सरकार किसी खास नंबर की जानकारी चाहे, तो उसके डिटेल दिये जा सकते हैं.

भारत सरकार 10 देशों के साथ टैक्स इन्फ़ॉर्मेशन एक्सचेंज एग्रीमेंट (टीआइइए) की प्रक्रिया में व्यस्त है. ये देश हैं- बहामा, बरमूडा, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड, इस्ले ऑफ़ मैन, केमैन आइलैंड, जर्सी, मोनाको, सेंट कीट्स व नेवीस्, अर्जेटीना और मार्शल आइलैंड. इन देशों से ’टीआइइए‘ समझौते का अर्थ यह नहीं है कि इनके बैंकों से काला धन भारत आ जायेगा. ऐसे खातों के बारे में सिर्फ़ और सिर्फ़ सूचनाएं मिला करेंगी. काला धन जमा करने वाले 70 से अधिक देश हैं, जिन्हें ’टैक्स हेवन‘ कहा जाता है. इन्हें स्विट्जरलैंड में प्रस्तावित उस अध्यादेश से प्रेरणा मिल रही है, जिसके आधार पर काला धन जमा करने वाले 20 प्रतिशत तक कर देकर अपना काला धन सफ़ेद कर सकेंगे.

स्विट्जरलैंड नये कर कानून लागू कर जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस जैसे देशों से अपने संबंध ठीक रखना चाहता है, साथ ही अपने क्लाइंट्स को यह भरोसा दिलाना चाहता है कि उनके काले धन की रक्षा होती रहेगी. यह 4 अप्रैल 1997 की बात है, जब उस समय के भारतीय वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने स्विट्जरलैंड से डबल टैक्सेशन एव्यायड एग्रीमेंट (डीटीएए) किया था. इस समझौते के तहत यदि किसी स्विस नागरिक का शेयर भारत की कंपनियों को ट्रांसफ़र होता है, तो उससे होने वाले पूंजी लाभ (कैपिटल गेन) पर भारत सरकार कर लगा सकती है. यही कराधान व्यवस्था स्विट्जरलैंड में भारतीय निवेशकों के साथ लागू होती है.

अब इस ’डीटीएए‘ में संशोधन होना है, जिसपर स्विस सरकार की मुहर लगते ही भारत को अपने देश से जुड़े लोगों के खातों के बारे में जानकारी मिला करेगी. स्विस विदेश मंत्रालय के सूत्र बताते हैं कि आइसलैंड, लिश्टेंस्टाइन, नार्वे और भारत समेत यूरोपियन फ्री ट्रेड एसोसिएशन (यूएफ़टीए) के देशों से ’डीटीएए‘ के नये प्रारूप पर सरकार की पुष्टि होना बाकी है. सवाल यह है कि 1997 में जब वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने स्विट्जरलैंड से ’डबल टैक्सेशन एव्यायड एग्रीमेंट‘ किया था, तब की सरकार को क्या इसकी सूचना नहीं थी कि वहां भारत से काले पैसों का प्रवाह हो रहा है? इसे कैसे मानें कि 2004 तक केंद्र में जब एनडीए की सरकार थी, तब तक काले धन से कमाई करने वाले विदेशी बैंकों में भारत से काला पैसा गया ही नहीं. तो सिर्फ़ कांग्रेस ही क्यों, एनडीए के नेताओं को भी क्यों नहीं कटघरे में खड़े किया जाना चाहिए?

काला धन भारत से विदेश जाना कब शुरू हुआ, उसकी ’टाइमिंग‘ पर गौर करना जरूरी है. आज जिस काले धन के लिए हिंदुस्तान में कपड़े फ़ाड़े जा रहे हैं, उस धन का बहुत सारा हिस्सा एनडीए सरकार के कार्यकाल में स्विस और लिश्टेंस्टाइन के बैंकों में सरक गया था. सारे बवाल की जड़ लिश्टेंस्टाइन के एलजीटी बैंक की वह सीडी है, जो 2002 में चोरी हुई. बैंक की शिकायत पर हेनरिश कीबर नामक कर्मी 2003 में पकड़ा गया था. कीबर छूटा और जर्मनी के बोखम नामक शहर में भूमिगत हो गया.

2006 में जर्मन खुफ़िया ’बीएनडी‘ ने उस सीडी के बदले कीबर को 42 लाख यूरो का पेमेंट किया था. उस सीडी में कोई 1400 लोगों के खातों के विवरण थे, जिनमें जर्मनों की संख्या 600 के आसपास थी. उस सीडी को भारत, ब्रिटेन, अमेरिका और बाकी देशों को बेचने के लिए जर्मनी 2007 में सक्रिय हुआ. 24 फ़रवरी 2008 को ब्रिटेन ने 100 लोगों के बैंक डिटेल पाने के लिए एक लाख पौंड जर्मनी को दिये. उस सीडी के लिए अमेरिका, आस्ट्रेलिया, फ्रांस समेत यूरोप के दसियों देशों ने जर्मनी को पैसे दिये. इस समय यही सौदेबाजी हुई है कि काले धन वालों पर स्विट्जरलैंड 20 प्रतिशत कर लगाकर, उस राशि को संबंधित सरकारों को भेज दे.

स्विट्जरलैंड ने जर्मनी को 50 अरब यूरो लेकर काले धन को भूल जाने का प्रस्ताव भेजा है. ब्रिटेन के साथ अभी तय नहीं हुआ है कि उसे टैक्स चोरों के कितने बिलियन पाउंड वापस मिलेंगे. स्विस बैंक ’यूबीएस‘ ने 52 हजार अमेरिकियों के काले खातों के बदले 78 अरब डॉलर देना स्वीकार कर लिया है.


http://www.prabhatkhabar.com/node/14270


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