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न्यूज क्लिपिंग्स् | कपास की खेती का नया बिजनेस मॉडल

कपास की खेती का नया बिजनेस मॉडल

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published Published on Dec 9, 2016   modified Modified on Dec 9, 2016
भारत में अभी भी 90 फीसदी कपास की खेती पारंपरिक ढंग से होती है और खेती में जेनेटिकली मोडिफाइड सीड का उपयोग होता है. एक अमेरिकी कंपनी की मदद से भारत में ऑर्गेनिक कॉटन की खेती की जा रही है. ऑर्गेनिक कॉटन से बने कपड़ों का बाजार विकसित हो रहा है. अगर यह प्रयोग सफल हो गया तो किसानों को मुनाफा तो होगा ही, आत्महत्या की नौबत नहीं आयेगी. खरबों की विज्ञापन इंडस्ट्री का चेहरा बदल जायेगा. पढ़िए एक रिपोर्ट.

भारत की 50 फीसदी से अधिक आबादी खेती और इससे जुड़े उद्योगों में लगी हुई है. देश की कुल जीडीपी में 20 फीसदी योगदान खेती का है. इसके बावजूद पिछले पांच सालों से किसानों की आत्महत्या का सिलसिला थमता नजर नहीं आ रहा है. एक आकलन के मुताबिक, औसतन 40 किसान प्रतिदिन आत्महत्या कर रहे हैं.

कपास भारत के महत्वपूर्ण कृषि उपज में से एक है. चीन के बाद भारत ही वह दूसरा देश है, जो सबसे ज्यादा कपास पैदा करता है. अभी भी 90 फीसदी कपास की खेती जेनेटिकली मोडिफाइड बीज से होती है. खेती का ढंग भी वैज्ञानिक की बजाय पारंपरिक ही है. जेनेटिकली मोडिफाइड बीज के साथ मुश्किल यह है कि एक बार बीजारोपण के बाद उनका उपयोग दोबारा नहीं हो सकता है. इसका मतलब यह हुआ कि हर फसल के पहले किसान को दोबारा बीज खरीदना पड़ेगा. कपास की खेती किसानों के लिए महंगी साबित होती जा रही है.

चूंकि पारंपरिक कपास अब कोई पैदा नहीं कर रहा है और इसके बीज भी प्राय: अनुपलब्ध होते हैं. एक अमेरिकी कंपनी कपास की खेती करनेवाले किसानों के लिए एक अनूठा बिजनेस मॉडल विकसित कर रही है, जो अगर सफल हो गया तो किसानों को मुनाफा तो होगा ही, आत्महत्या की नौबत नहीं आयेगी. यह खेती पर्यावरण के नजरिये से भी बेहतर होगी और अमेरिकी कपड़ा कंपनियों को कपास खरीद के लिए लुभायेगी भी. विज्ञापन इंडस्ट्री को दुनिया को दूसरा सबसे बड़ा प्रदूषणकारी माना जाता है. अगर कपड़ा बनाने वाली कंंपनियां ऑर्गैनिक कॉटन खरीदती हैं तो खरबों की विज्ञापन इंडस्ट्री का चेहरा बदल जायेगा.

हैदराबाद में काम करनेवाली चेतना को-ऑपरेटिव ने पिछले दो साल में छह बीज बैंक तैयार किये हैं. इन बीज-बैंकों में तैयार बीजों से ओड़िशा में ऑर्गेनिक कपास की खेती हो रही है. हाल के दिनों मे कपास ओड़िशा की नकदी फसल बन चुका है. ये बीज-बैंक भारतीय उपमहाद्वीप में ऑर्गेनिक कपास के बीज(नॉन जेनेटिकली मोडिफाइड सीड) के संग्रहण के काम में मदद कर रहे हैं. 

ऑर्गेनिक कॉटन की मांग कम होने के कारण किसानों ने इनके बीजों को नहीं सहेजा. अपनी फसल औन-पौने दाम पर बेच दी थी. चेतना को-ऑपरेटिव भारत में किसानों को कपास की खेती के लिए ऑर्गनिक कॉटन-सीड उपलब्ध करा रही है और साथ इन किसानों के लिए बाजार खोजने में मदद कर रही है. रेट गॉडफ्रे चेतना कोएलिशन(चेतको) के संस्थापक हैं. वह बताते हैं कि किसान भी क्या करें, उन्हें खेती के लिए काफी खर्च करना पड़ता है. वे अपने फसल को सुरक्षित भी नहीं रख सकते हैं. उन्हें अपना परिवार चलाने के लिए तुरत-फुरत अपनी फसल बेचनी पड़ती है. किसानों की जिंदगी दावं पर लगी रहती है.

तीन साल पहले की बात है. न्यू यॉर्क में रहनेवाले गॉडफ्रे ने देखा कि अमेरिकी ब्रांड लूमस्टेट को भारत से मंगवाये गये ऑर्गेनिक कॉटन से बने कपड़ों की बिक्री कर रही है. गॉडफ्रे को यहीं से आइडिया मिला. इस्तांबुल में आयोजित टेक्सटाइल एक्सचेंज ऑर्गेनिक कॉटन राउंडटेबल में भी उसे इसकी झलक मिली. वहां, उसने कपड़ों के व्यापारियों को चेतना को-ऑपरेटिव के ऑर्गेनिक कॉटन उपयोग में लाने को कहा. तब 80 फीसदी ब्रांड्स ने दिलचस्पी नहीं दिखायी, उन कंपनियों ने गॉडफ्रे को बाद में आने को कहा. गॉडफ्रे ने मेहनत कर के ऑर्गेनिक कॉटन सप्लाइ चेन बनायी.

अाज स्थिति यह है कि लूमस्टेट के अलावा दर्जन भर कंपनियां ऑर्गेनिक कॉटन खरीद रही हैं. इसमें बॉल और ब्रांच जैसी कंपनियां भी हैं जो ऑर्गेनिक कॉटन से तौलिया और कंबल बना रही हैं. जीन्स तो बन ही रहे हैं, कई किस्म के अधोवस्त्र भी बनने लगे हैं. फैशन का बाजार बदलने लगा है. कोलोरेडो स्थित पैक्ट कंपनी कपास उत्पादन में लगे लोगों को इनफ्रास्ट्रक्चर मुहैया करा रही है. महिलाओं को को-ऑपरेटिव और बिजनेस का प्रशिक्षण दिया जा रहा है.

अभी चेतको के साथ 16 ब्रांड काम कर रहे हैं. लगभग 35,000 किसान जुड़े हैं. 2000 कपड़ों के कारीगर जुड़े हैं. एक पूरी सप्लाई चेेन है. गॉडफ्रे बताते हैं कि अगर इस मॉडल को सफल होना है तो कपास उत्पादक किसानों के समुदाय में निवेश करना होगा. (इनपुट: पुलित्जर डॉट ऑर्ग)

http://www.prabhatkhabar.com/news/vishesh-aalekh/story/906344.html


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