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न्यूज क्लिपिंग्स् | कब तक खुले रहेंगे मौत के फाटक? -अनूप कृष्‍ण झींगरन

कब तक खुले रहेंगे मौत के फाटक? -अनूप कृष्‍ण झींगरन

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published Published on Jul 30, 2014   modified Modified on Jul 30, 2014
भारतीय रेलवे विश्व के विशालतम रेलवे तंत्रों में से एक है। इतने विस्तृत तंत्र पर आए दिन रेल दुर्घटनाएं भी होती रहती हैं। हालांकि आंकड़ों के अनुसार यात्रियों की संख्या, तंत्र के विस्तार तथा रेल यातायात को देखते हुए भारतीय रेल एक अपेक्षाकृत सुरक्षित तंत्र है, जहां पर हताहतों की संख्या की दर 0.01 यात्री प्रति दस लाख किलोमीटर है। परंतु एक भी बड़ी दुर्घटना होने पर दक्षता के सारे आंकड़े धरे के धरे रह जाते हैं तथा रेलवे की कार्यकुशलता पर प्रश्नचिह्न लग जाते हैं। रेल दुर्घटनाएं दो प्रकार की होती हैं : परिणामी तथा सांकेतिक। परिणामी दुर्घटनाएं वे हैं, जिनमें जान-माल का नुकसान होता है तथा सांकेतिक दुर्घटनाएं वे हैं, जिनमें नियम का तो उल्लंघन होता है, पर जानमाल की हानि नहीं होती। समपार फाटकों पर होने वाली दुर्घटनाएं परिणामी दुर्घटनाएं हैं।

भारतीय रेलवे के समपार फाटकों से राष्ट्रीय राजमार्गों से लेकर गांवों की छोटी-छोटी सड़कें तक गुजरती हैं। समपार फाटक दो प्रकार के होते हैं। चौकीदार वाले फाटक, जहां पर रेलगाड़ियों के गुजरते समय सड़क यातायात को रोक दिया जाता है तथा चौकीदार रहित फाटक, जिन पर सड़क यातायात को रोकने की व्यवस्था नहीं होती। अधिकतर दुर्घटनाएं मानवरहित फाटकों पर होती हैं। हालांकि चौकीदार वाले फाटकों पर भी कभी-कभी दुर्घटनाएं हो जाती हैं।

रेल मंत्रालय द्वारा डॉ. अनिल काकोदकर की अध्यक्षता में रेल संरक्षा समिति का गठन किया गया था। वर्ष 2012 में इस समिति द्वारा अपनी रिपोर्ट दी गई थी। इसके अनुसार भारतीय रेलवे में होने वाली समस्त परिणामी दुर्घटनाओं में से 65 प्रतिशत मृत्यु की घटनाएं समपार फाटकों पर होने वाली दुर्घटनाओं के परिणामस्वरूप होती हैं। साथ ही कुल परिणामी दुर्घटनाओं में से 40 प्रतिशत फाटकों पर होती हैं। विभिन्न् राज्यों में लागू मोटर व्हीकल्स एक्ट की धाराओं के अंतर्गत समपार फाटकों व विशेष रूप से मानवरहित समपार फाटकों पर सुरक्षा की जिम्मेदारी सड़क यातायात के चालकों की है। उन्हें सावधानीपूर्वक यह सुनिश्चित करने के बाद फाटक पार करना चाहिए कि कोई रेलगाड़ी तो पटरी पर नहीं आ रही है। रेलवे द्वारा समपार फाटकों पर सड़क वाहनों एवं अन्य उपभोक्ताओं को चेतावनी दी जाती है। चौकीदार वाले फाटकों के पहले बोर्ड लगे रहते हैं, जिन पर 'आगे समपार फाटक है" लिखा रहता है तथा अशिक्षितों के लिए रेल इंजिन का चित्र भी बना होता है। फाटक के थोड़ा पूर्व स्पीड ब्रेकर बनाए जाते हैं, ताकि फाटक पार करते समय वाहनों की गति कम हो जाए। कुछ फाटकों पर चेतावनी देने वाले लैम्प भी लगे होते हैं, जो फाटक खुला होने की स्थिति में हरी बत्ती तथा बंद होने की स्थिति में लाल बत्ती प्रदर्शित करते हैं। फाटकों के बंद होते समय घंटी या हूटर बजते हैं, ताकि लोगों को चेतावनी मिल जाए। इन फाटकों पर भी स्पीडब्रेकर बनाने की चेष्टा की जाती है। फाटक के समीप आते समय वाहन चालकों को आती हुई रेलगाड़ी दिख जाए, इस हेतु जहां तक हो सके, सड़कों को सीधा बनाने की चेष्टा की जाती है।

इसके बावजूद समपार फाटकों पर दुर्घटनाएं होती रहती हैं। इनका मुख्य कारण तो सड़कयात्रियों द्वारा चेतावनी की अनदेखी करना तथा फाटकों पर रुकने को समय की बर्बादी मानना है। अक्सर देखा जाता है कि चौकीदार रहित समपार फाटकों पर भी पार करने की जल्दी में सड़क वाहन निकट आती रेलगाड़ी को देखने के बावजूद शीघ्रता से फाटक पार करने की कोशिश करते हैं तथा दुर्घटनाओं के शिकार होते हैं। यहां यह समझना आवश्यक है कि तेज गति से आती रेलगाड़ी, जिसके पीछे डिब्बों का बोझ हो, आकस्मिक ब्रेक लगाने के बाद भी तत्काल नहीं रुक सकती है और कुछ दूर जाकर ही रुक पाती है। सामान्य रेलगाड़ियों के लिए यह दूरी लगभग 700 मीटर तथा राजधानी आदि द्रुतगामी गाड़ियों के लिए 1.25 किमी होती है। चौकीदारों वाले समपार फाटकों पर दुर्घटनाएं रेलवे कर्मचारी द्वारा नियमों के उल्लंघन से भी हो सकती हैं। अक्सर ऐसे फाटकों पर चौकीदार फाटक बंद करने में चूक जाते हैं, जिसके कारण भी दुर्घटनाएं होती हैं।

दुर्घटनाओं के कारणों का विश्लेषण करने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि रेलवे की कुल परिणामी दुर्घटनाओं में से 89 प्रतिशत मानवीय भूलों के कारण होती हैं। इनमें से आधे मामलों में रेल कर्मचारी जिम्मेदार होते हैं और शेष में रेल कर्मचारियों के अतिरिक्त अन्य लोग जिम्मेदार होते हैं। ये रेल कर्मचारियों से इतर लोग अधिकतर समपार फाटकों पर होने वाली दुर्घटनाओं के जिम्मेदार होते हैं।

समपार फाटकों पर होने वाली अधिकांश दुर्घटनाओं को ध्यान में रखते हुए भारतीय रेल द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि भारतीय रेलतंत्र पर मानवरहित फाटक संपूर्ण रूप से समाप्त कर दिए जाएं। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। मानवरहित समपार फाटकों को खत्म करने के लिए ऐसे समपार फाटकों पर चौकीदारों की नियुक्ति, निकट स्थित एक से ज्यादा मानवरहित फाटकों को आपस में मिलाकर उनका एकीकरण करते हुए उन पर चौकीदारों की नियुक्ति, व्यस्त सड़क मार्गों पर स्थित समपार फाटकों के स्थान पर रोड ओवरब्रिज तथा अंडरब्रिजों का निर्माण कर फाटकों को समाप्त करना आदि कदम उठाने की जरूरत होगी। वास्तव में मानवरहित समपार फाटकों को खत्म करने की नीति का अनुपालन भारतीय रेलवे में पिछले कई वर्षों से हो रहा है। वर्ष 2014-15 का अंतरिम रेल बजट प्रस्तुत करते हुए तत्कालीन रेल मंत्री ने सदन को सूचित किया था कि पिछले पांच वर्षों में 5400 मानवरहित समपार फाटकों को विभिन्न् उपायों द्वारा समाप्त किया गया है। रेलवे का 2014-15 का बजट संसद के समक्ष प्रस्तुत करते हुए वर्तमान रेल मंत्री सदानंद गौड़ा ने भी सदन को सूचित किया कि भारतीय रेलवे पर 30,348 समपार फाटक हैं। इनमें से 11,563 मानवरहित फाटक हैं। इन सभी को बंद किया जाएगा।

अनिल काकोदकर समिति के अनुसार भारतीय रेलवे पर संरक्षा की स्थिति में बड़ा सुधार लाने तथा दुर्घटनाओं को कम से कम करने के उपायों को लागू करने में कुल खर्च 1,03,118 करोड़ रुपए का आएगा। इसका लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा समपार फाटकों को समाप्त करने में खर्च होगा। समिति की रिपोर्ट के अनुसार पांच वर्ष की अवधि में इस कार्य को पूरा करने में 50,000 करोड़ रुपए का व्यय होगा। गौरतलब है कि आगामी पांच वर्षों में सभी मानवरहित फाटकों को बंद करने हेतु प्रतिवर्ष लगभग 2200 समपार फाटक बंद करने होंगे, जबकि पिछले पांच वर्षों में प्रतिवर्ष समाप्त किए गए फाटकों की औसत संख्या लगभग 1100 प्रतिवर्ष रही है। यानी कार्य को दुगनी गति से करने की आवश्यकता है। समिति ने यह सुझाव भी दिया है कि पांच वर्षों में संरक्षा में सुधार लाने के लिए आवश्यक प्रतिवर्ष 20 हजार करोड़ रुपए की रकम जुटाने के लिए उचित कदम उठाए जाएं। इसमें से 5000 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष की रकम एक संरक्षा कर लगाकर उगाही जाए। केंद्र सरकार भी पांच वर्ष तक प्रतिवर्ष 5000 करोड़ रुपयों का अनुदान रेलवे को दे। रेलवे द्वारा सरकार को डिविडेंड देने की जिम्मेदारी पांच वर्षों तक टाल दी जाए और रेलवे भूमि प्राधिकरण द्वारा भी प्रतिवर्ष 4000 करोड़ रुपयों का योगदान किया जाए। इसी तरह जरूरी रकम जुटाई जा सकेगी। दुर्घटनाएं रोकने के लिए जनसाधारण का सक्रिय सहयोग भी अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए रेल मंत्रालय को सूचना माध्यमों पर गहन आकर्षक प्रचार करने की आवश्यकता है।

(लेखक पश्चिम रेलवे के पूर्व महाप्रबंधक हैं)


http://naidunia.jagran.com/editorial/expert-comment-how-long-will-open-the-gates-of-death-150720


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