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न्यूज क्लिपिंग्स् | कबाड़ के बाजार में हमारी निजता-- हरजिंदर

कबाड़ के बाजार में हमारी निजता-- हरजिंदर

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published Published on Apr 2, 2018   modified Modified on Apr 2, 2018
फेसबुक, ट्विटर या किसी अन्य सोशल मीडिया साइट पर आपने क्या डाला? अपनी जन्मतिथि, अपनी उम्र, शादी की तारीख, अपने शहर का मौसम, सहपाठियों की तस्वीरें, सहकर्मियों की पार्टी, भूली जा चुकी यात्राओं का विवरण, बेवजह की बहस, तू-तू और मैं-मैं, कविताएं, चुटकुले, नसीहतें, चचेरे भाई की वरमाल का वीडियो, दोस्त की शादी का भांगड़ा, ढेर सारी बधाइयां, शुभकामनाएं, दुआएं और श्रद्धांजलि...। सूची अंतहीन हो सकती है, पर ये आपके जीवन के कुछ लमहें हैं, जो आपके लिए ही महत्वपूर्ण हो सकते हैं और दूसरों को निरर्थक भी लग सकते हैं। अक्सर इसे जीवन का वह कबाड़ भी कहा जाता है, जिसकी नियति ही है यादों के किसी पिछवाड़े कोने में ढेर हो जाना। जिसे हम सोशल मीडिया कहते हैं, वह दरअसल इसी कबाड़ का कारोबार है। यह कबाड़ हमने ही सोशल मीडिया के हवाले किया है और अब जब उसने इसकी दुकान सजा दी है, तो हमें लग रहा है कि यह हमारी निजता का हनन है। यह कुछ वैसे ही है, जैसे हम अपनी दसवीं की माक्र्सशीट पुराने अखबारों के ढेर के साथ रद्दी वाले के हवाले कर दें और फिर इस बात पर आपत्ति दर्ज कराएं कि पूरे शहर को पढ़ाई में हमारे कमजोर होने की खबर हो गई।


हालांकि अभी जो फेसबुक और कैंब्रिज एनालिटिका नाम की कंपनी को लेकर निजता का मामला चल रहा है, वह इससे कुछ अलग बताया जा रहा है। तकनीकी रूप से यह अलग इस मायने में है कि यहां पर निजता का इस्तेमाल एक तीसरा पक्ष कर रहा है। यानी हमने अपनी जो चीजें (तकनीकी भाषा में कहें, तो डाटा) फेसबुक के हवाले कीं, वे कैंब्रिज एनालिटिका के हवाले हो गईं और वह उनका व्यापारिक फायदा उठा रहा है। फेसबुक से आपत्ति यह है कि उसे यह पता था, लेकिन उसने इसे रोका नहीं। मान लीजिए, अगर कैंब्रिज एनालिटिका बीच में नहीं होती तो...? तब खुद फेसबुक आपके डाटा का व्यापारिक लाभ उठाता। वैसे भी यही उसका कारोबार भी है। फेसबुक बाजार में कोई सामान नहीं बेचता, उसके पास कमाई का एक ही सामान है, आपसे जुड़ी जानकारियां। जिसे आज के बाजार की भाषा में डाटा कहा जाता है और नागरिक अधिकार संगठन इसे आपकी निजता कहते हैं। इसे इस तरह भी कहा जाता है कि फेसबुक और गूगल जैसी कंपनियां बाजार में कोई सामान नहीं बेचतीं, बल्कि वे विज्ञापनदाताओं के बाजार में आपको बेचती हैं। किसी भी सामान का उत्पादन किए बगैर गूगल दुनिया की सबसे ज्यादा कमाई वाली कंपनी बन चुकी है।


यह उस नए दौर के बाजारशास्त्र का नतीजा है, जो हमारी मुफ्तखोरी को सिर माथे रखता है। हम हर रोज सुबह से शाम तक सर्च के लिए, ई-मेल के लिए, आने-जाने के रास्ते के लिए, वीडियो के लिए , तस्वीरों के लिए गूगल का इस्तेमाल करते हैं और बदले में हम उसकी हथेली पर एक पैसा भी नहीं धरते। यही हाल फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसी तमाम सेवाओं का है, जिनकी सेवाओं के लिए भी हम किसी तरह का कोई भुगतान नहीं करते हैं। जबकि इन कंपनियों का अपना ताम-झाम बहुत बड़ा है। उनके भारी-भरकम सर्वर मोटी बैंडविड्थ और शक्तिशाली प्रोसेसरों के साथ हरदम चलते रहते हैं। हर समय करोड़ों लोग इन सर्वर से जुड़े रहते हैं और शायद ही कभी कोई लोचा आता हो। फिर इन सबके पास तमाम बड़े इंजीनियरों, वैज्ञानिकों, आंकड़ाशास्त्रियों और बाजार प्रबंधकों की लंबी-चौड़ी टीमें हैं। बाजार में स्पद्र्धा काफी ज्यादा है, इसलिए इन टीमों को हरदम इनोवेट करते रहना पड़ता है, प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़ने की नित नई जुगत तलाशनी पड़ती है। इन सबका खर्च भारी-भरकम होता है, जो सिर्फ और सिर्फ आपकी जानकारियों, आपके जीवन के उतार-चढ़ाव से ही निकलता है।


इसे हम कंप्यूटर कारोबार का तीसरा दौर भी कह सकते हैं। पहला दौर वह था, जब कंप्यूटर हार्डवेयर वाली कंपनियों ने बाजार में कमाई की। आईबीएम जैसी कंपनियां इसी दौर में बनीं और आसमान पर पहुंचीं। दूसरे दौर में घर-घर पहुंचते कंप्यूटर सस्ते होने लग गए और बाजार की बागडोर सॉफ्टवेयर कंपनियों के हाथ पहुंच गई। इस दौर की सबसे सफल कहानी माइक्रोसॉफ्ट थी। अब तीसरा दौर है, जो डाटा का दौर है। अगर आप डाटा देने को तैयार हैं, तो बहुत सारे सॉफ्टवेयर तो आपको लगभग मुफ्त मिल जाते हैं। बाजार न हार्डवेयर से कमाता है और न सॉफ्टवेयर से, वहां कमाई का सबसे बड़ा जरिया आपका, हमारा और सबका डाटा है। दूसरे शब्दों में इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि अब बाजार में हार्डवेयर या सॉफ्टवेयर बेचने वाले उतना नहीं कमाते, जितना कि खुद हमें यानी उपयोगकर्ताओं को वहां बेचने वाले कमाते हैं। आज की दुनिया में वही सबसे अमीर है, जिसके सर्वरों पर दुनिया का ढेर सारा डाटा हर पल गिरता रहता है। इसी के चलते इस समय दुनिया में डाटा एनालिटिक के पेशेवरों की सबसे ज्यादा मांग है।


इस बीच खबर आई है कि कई नामी-गिरामी हस्तियों ने फेसबुक से किनारा करना शुरू कर दिया है। फिल्म अभिनेता फरहान अख्तर ने इसे अलविदा कह दिया है। दुनिया के सबसे बड़े बुद्धिजीवियों में गिने जाने वाले नसीम निकोलस तालेब ने भी फेसबुक छोड़ने की बात कही है। एडल्ट पत्रिका प्लेबॉय ने खुद को इस सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से हटा लिया है। फेसबुक जैसे सोशल मीडिया से खुद को अलग कर लेना कुछ लोगों के लिए इतना आसान नहीं भी हो सकता है, लेकिन अगर कोई कोशिश करे, तो यह बहुत कठिन भी नहीं है। लेकिन आप खुद को पूरी तरह डाटा की दुनिया से अलग कर लें, यह अब शायद संभव नहीं है। आपके मोबाइल फोन पर इसके बाद भी बहुत कुछ ऐसा रहेगा, जो आपके हर कदम की सूचना दुनिया भर को देता रहेगा। नए दौर के बाजार में निजता अब निरर्थक हो चुकी है। कुछ समाजशास्त्रियों ने तो निजता के निधन की बाकायदा घोषणा ही नहीं की, बल्कि उसे श्रद्धांजलि तक दे डाली है। अपनी निजता के निधन से आपको अगर अभी तक कोई झटका नहीं लगा, तो हैरान मत हों, बाजार की दिलचस्पी आपकी निजता को चौराहे पर पहुंचाने में नहीं, बस उसकी व्यापारिक संभावनाओं में ही है।

 


https://www.livehindustan.com/blog/story-opinion-hindustan-column-on-30-march-1876857.html


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