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न्यूज क्लिपिंग्स् | कमजोर महिलाओं की ताकत बना एक बैंक- आशीष कुमार अंशु

कमजोर महिलाओं की ताकत बना एक बैंक- आशीष कुमार अंशु

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published Published on Dec 15, 2010   modified Modified on Dec 15, 2010
वनिता जालिन्दर पीसे आज से कुछ साल पहले लोन के लिए बैंकों के चक्कर लगा रही थीं। बैंकों की औपचारिकता
ओं और पेपर वर्क की वजह से उन्हें लोन नहीं मिल पा रहा था। निराश होकर वह घर बैठ गईं। उन्होंने लोन की आशा ही छोड़ दी। तभी एक दिन मानदेसी महिला संगठन के कुछ लोग उनके पास आए और उन्हें आसान शर्तों पर लोन मिल गया। वर्ष 2003 में उन्होंने महिला बैंक से डेढ़ लाख रुपये का लोन लिया और अपना कारोबार शुरू किया। आज पीसे के काम में उनके संयुक्त परिवार के सभी सदस्यों के अलावा अन्य 17 लोग भी मदद कर रहे हैं। उन्होंने गांव की सात अन्य महिलाओं को भी रोजगार दिया है। उनकी मेहनत और उद्यमशीलता को देखते हुए सीआईआई ने उन्हें पुरस्कृत किया। वनिता उन 1700 महिला उद्यमियों में से एक हैं, जिन्हें सतारा (महाराष्ट्र) के म्हसवड स्थित मानदेसी महिला सहकारी बैंक ने आर्थिक सहायता उपलब्ध कराकर आगे बढ़ने का अवसर दिया।

इस बैंक की संस्थापक चेतना गाले सिन्हा के अनुसार यह महिलाओं का महिलाओं द्वारा और महिलाओं के लिए चलाए जाने वाला बैंक है। चेतना के अनुसार परिवार में पैसे अगर पुरुष बचाता है तो वह उसकी व्यक्तिगत आमदनी होती है, लेकिन यह बचत महिला करती है तो उससे पूरे परिवार को लाभ मिलता है। पूरा परिवार समृद्ध होता है। इस बैंक को रिजर्व बैंक से लाइसेंस मिलने की कहानी काफी दिलचस्प है। 1995 में बतौर प्रमोटिंग मेम्बर बैंक के लाइसेंस के आवेदन के साथ 600 महिलाओं ने सहमति में अंगूठे का निशान लगाया जिसे रिजर्व बैंक ने अस्वीकृत कर दिया। उसके बाद बैंक की संस्थापक चेतना गाले सिन्हा के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मंडल आरबीआई पहुंचा। उसने अधिकारियों को समझाया कि बैंक से जुड़ी महिलाएं पढ़ी-लिखी नहीं हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे अपने पैसे का हिसाब नहीं रख सकतीं। प्रतिनिधि मंडल में शामिल महिलाओं ने आरबीआई के अधिकारियों को आश्वस्त किया कि ये महिलाएं बैंक संभाल लेंगी। आखिरकार 1997 में मानदेसी को बैंक का दर्जा मिल गया।

यह बैंक अपने छोटे निवेशकों का पूरा ख्याल रखता है। यहां 10 और 20 रुपये भी जमा कराए जा सकते हैं। इतना ही नहीं छोटे उद्यमियों को यह बैंक 100-200 रुपये का भी ऋण उपलब्ध कराता है। यह ऋण साधारण ब्याज दरों पर उपलब्ध है और इसे लेने की प्रक्रिया भी बेहद आसान है। जल्दी ही मानदेसी महिला सहकारी बैंक एचएसबीसी की मदद से अपने ग्रामीण उपभोक्ताओं को एक ई-कार्ड उपलब्ध कराने वाला है जिसकी मदद से इसकी सदस्याएं अपने एक, दो नहीं बल्कि पूरे दस अकाउंट तक का लेखा-जोखा रख पाएंगी।

दरअसल कई महिलाओं ने बैंक के पास आकर शिकायत की थी कि उनके पति ने लड़-झगड़ कर सारे पैसे छीन लिए। ऐसा इसलिए होता था क्योंकि घर के लोग यह जान जाते थे कि उन महिलाओं के अकाउंट में कितने पैसे हैं। अब ई कार्ड आने के बाद सिर्फ खाताधारी को ही खबर होगी कि उसके अकाउंट में कितने पैसे हैं? इससे महिलाओं का पैसा अधिक सुरक्षित हो जाएगा। इस बैंक की शाखाएं सतारा, सोलापुर, सांगली, रायगढ़, पुणे में भी है। जल्दी ही यह बैंक झारखंड, गुजरात और कर्नाटक में अपनी शाखाएं खोलने वाला है।

इस बैंक का पिछले साल कुल कारोबार 20 करोड़ रुपये का था। फिलहाल बैंक के पास 11,000 सदस्य हैं। गांव-गांव जाकर महिलाओं को बैंक के संबंध में बताने, उनके पैसे जमा कराने अथवा उनका अकाउंट खुलवाने के लिए 105 एजेंट हैं। बैंक से लिए गए ऋण की वापसी की दर 98 फीसदी है। इस बैंक को एचएसबीसी के अलावा एक्सिस बैंक भी मदद कर रहा है। बैंक के लिए इस्तेमाल होने वाला चेक बुक, जिसका उपयोग डिमांड ड्राफ्ट के तौर पर किया जाता है, एक्सिस बैंक द्वारा उपलब्ध कराया गया है। संयुक्त राष्ट्र की बोनिटा ट्रस्ट और बोस्टन की देशपांडे ट्रस्ट भी इन्हें सहायता पहुंचा रहा है। बैंक के ग्राहकों का स्वास्थ्य एवं जीवन बीमा टाटा एवं एआईजी इंश्योरेंस द्वारा किया जाता है। सच कहा जाए तो यह बैंक आज सतारा से लेकर पुणे तक की महिलाओं का संबल बना हुआ है।
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