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न्यूज क्लिपिंग्स् | कानूनी 'आधार' मिलने के मायने - सीता

कानूनी 'आधार' मिलने के मायने - सीता

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published Published on Mar 20, 2016   modified Modified on Mar 20, 2016
आधार बिल का पास होना कितना महत्वपूर्ण है? वास्तव में यह बेहद महत्वपूर्ण है! पिछले हफ्ते दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के तत्वावधान में हुई एडवांसिंग एशिया कांफ्रेंस में मौजूद बहुतेरे अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों ने सरकार के इस कदम की तारीफ की। इस कानून का सीधा सरोकार सबसिडी के डायरेक्ट कैश ट्रांसफर से है और सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि सबसिडी की राशि जरूरतमंदों तक ही पहुंचे।

आधार परियोजना की राह में शुरू से ही रोड़े रहे हैं और अब भी कई दिक्कतें कायम रहने वाली हैं। अव्वल तो गोपनीयता का ही मसला है। एक लंबे समय से यह अंदेशा जताया जा रहा है कि आधार कार्ड नागरिकों की गोपनीयता में सेंध लगा सकता है। या कि सरकार को इससे अपने नागरिकों पर नजर रखने का मौका मिल सकता है। लेकिन ऐसी कौन-सी परियोजना है, जिसके हर आयाम की तारीफ की गई हो? निश्चित ही, आधार के साथ सबकुछ परफेक्ट नहीं है, लेकिन इसके साथ ही उसमें बहुत सारी अच्छाइयां भी हैं।

आधार से निश्चित ही डुप्लिकेशन की समस्या से निजात मिलेगी। कोई भी व्यक्ति अपनी दो

अलग पहचान नहीं रख सकेगा। आधार की नामांकन प्रक्रिया में ही डी-डुप्लिकेशन की कवायद शामिल है। इसमें किसी व्यक्ति के डेटाबेस से उसकी बायोमैट्रिक्स का मिलान किया जाता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उसी पहचान का कोई दूसरा व्यक्ति तो नहीं है। इसके बाद किसी व्यक्ति के दो राशन कार्ड या दो बैंक खाते होने की संभावना नगण्य हो जाएंगी। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत वितरित होने वाले अनाज या मिट्टी के तेल का एक बड़ा हिस्सा फर्जी राशन कार्डों के खाते में चला जाता है। आधार से ऐसी कोई समस्या नहीं रहेगी। हालांकि भारत में कोई भी प्रणाली पूर्णत: दोषमुक्त नहीं होती है और आधार के साथ भी इस आशय की खबरें सामने आती

रही हैं कि गलती से किसी पेड़ या पशु का भी आधार कार्ड बना दिया गया हो, लेकिन समय के साथ यह प्रणाली निश्चित ही और पूर्णतर और दोषमुक्त होती चली जाएगी।

लेकिन आधार कार्ड खुद राशन कार्ड या बीपीएल कार्ड का स्थानापन्न् नहीं होगा। ऐसे में सरकार को यह आग्रह करना होगा कि राशन कार्ड या बीपीएल कार्ड उन्हीं लोगों को दिए जाएं, जिनके पास यूनिक आइडेंटिटी यानी आधार हो। इसके बाद राज्य सरकारों में आपस में समन्वय के साथ यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई प्रवासी श्रमिक आधार कार्ड का इस्तेमाल करते हुए अपने गांव और किसी अन्य राज्य में दो अलग-अलग राशन कार्ड ना बनवा ले।

लेकिन इसमें एक और पहलू है। मसलन, अगर मुकेश अंबानी राशन कार्ड लेना चाहें तो आधार कार्ड केवल यही प्रमाणित कर सकता है कि वे मुकेश अंबानी हैं, यह नहीं प्रमाणित कर सकता कि उनकी आय कितनी है। वह यह नहीं बता सकता कि भारत के सबसे धनी व्यक्ति होने के नाते उन्हें सबसिडीयुक्त राशन प्राप्त करने की कोई पात्रता नहीं है। निश्चित ही दस्तावेजों की जालसाजी करने वाले इस चूक का फायदा उठा सकते हैं। आखिर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून को लागू करने में सबसे ज्यादा दिक्कत इसी बात के चलते आई थी कि राजनेता अपनी वोटबैंक की राजनीति के कारण बीपीएल सूचियों से अपात्र लोगों के नाम हटवाए जाने को लेकर तैयार नहीं थे। जाहिर है, यह सीधे-सीधे राजनीतिक इच्छाशक्ति से जुड़ा मामला है। आधार जैसी बायोमैट्रिक प्रणाली से इसमें ज्यादा मदद मिलने से रही।

लेकिन जाति जनगणना के आंकड़े जरूर इसमें मदद कर सकते हैं, क्योंकि इसकी मदद से सामाजिक-आर्थिक स्थिति की पड़ताल की जा सकती है। यही कारण है कि पहले ही एक पक्के घर में रहने वाला व्यक्ति इंदिरा आवास योजना के तहत आवेदन नहीं कर सकता। आधार इसमें

बाद में ही मदद कर सकता है, जब योजना की राशि पात्र व्यक्ति के बैंक खाते में जमा कराई जाएगी। बीपीएल सूचियों के सत्यापन की तरह यह भी अंतत: राजनीतिक इच्छाशक्ति से जुड़ा मसला है कि नेतागण जाति जनगणना के आंकड़ों का किस तरह से इस्तेमाल करना चाहते हैं।

जहां तक निजता संबंधी समस्याओं का सवाल है, तो आधार को लेकर यह चिंता जताई जाती है कि इसका इस्तेमाल खुफिया और कर अधिकारियों द्वारा किसी व्यक्ति के आर्थिक लेनदेन और अन्य गतिविधियों पर नजर रखने के लिए किया जा सकता है। आधार केवल जन्म दिनांक और स्थायी पता संबंध्ाी दस्तावेज स्वीकार करता है, इसके बावजूद बायोमैट्रिक प्रणाली होने के कारण यह अंदेशा लगातार जताया जा रहा है। जिस तरह से बैंक खाता खोलने और पैन कार्ड या पासपोर्ट प्राप्त करने के लिए आधार कार्ड जरूरी होता जा रहा है, उसको देखते हुए यह अंदेशा आने वाले वक्तों में और बढ़ेगा ही। आधार कानून कहता है कि एक निजी संस्था भी किसी व्यक्ति की पहचान सत्यापित करने के लिए आधार कार्ड मांग सकती है। यानी एक मोबाइल फोन लेने के लिए भी आधार कार्ड दिखाना पड़ सकता है। यह स्थिति निश्चित ही चिंताजनक है, लेकिन आधार कानून में व्यक्ति की सुरक्षा जानकारियां साझा करने को लेकर कुछ प्रावधान किए गए हैं। हालांकि राष्ट्रीय सुरक्षा की अस्पष्ट परिभाषा के चलते संशय पैदा होता है कि कहीं प्रावधानों का दुरुपयोग ना हो।

इन दुविधाओं से बचने का सबसे अच्छा तरीका शायद यही होगा कि आधार को सभी शासकीय सेवाओं के बजाय केवल लोककल्याणकारी शासकीय सेवाओं के लिए अनिवार्य घोषित कर दिया जाए। मसलन, अगर कोई व्यक्ति एलपीजी सबसिडी नहीं चाहता तो एक बैंक खाता खोलने के लिए उसे आधार से जोड़ना क्यों अनिवार्य होना चाहिए? आखिर एक व्यक्ति को अनेक बैंक खाते रखने का कानूनी अधिकार होता है। आधार को अधिक से अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए इन छोटी-मोटी दुविधाओं और अंदेशों को दुरुस्त करना जरूरी है। अपेक्षा यही है कि आधार हमारी गोपनीयता में सेंध लगाने का कारण ना बने और वह हमारे लिए अधिक से अधिक सरल-सुगम और उपयोगी बना रहे।

लोककल्याणकारी योजनाएं भारत की तमाम सरकारों का एक महत्वपूर्ण आयाम रही हैं। लेकिन ये सभी योजनाएं कमोबेश भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती रही हैं। डायरेक्ट कैश ट्रांसफर इस समस्या से जूझने का सबसे अच्छा तरीका है। हर व्यक्ति का बैंक खाता होना और आधार कार्ड को उससे लिंक किया जाकर उसकी विशिष्ट पहचान को प्रमाणित करना इसके दो सबसे महत्वपूर्ण आयाम हैं और सरकार दोनों को ही सुनिश्चित करने में जुटी हुई है। आधार को कानूनी मान्यता मिलना इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। अगर इस योजना को ठीक से लागू किया जाए तो यह सरकार के लिए गेमचेंजर भी साबित हो सकती है।

(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं

 


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