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न्यूज क्लिपिंग्स् | किशोर अपराध और लाचार कानून-- सतीश सिंह

किशोर अपराध और लाचार कानून-- सतीश सिंह

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published Published on Oct 31, 2015   modified Modified on Oct 31, 2015
बीते सालों में नाबालिगों द्वारा बलात्कार के मामलों में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई है। नाबालिगों द्वारा सामूहिक बलात्कार करने के मामले भी प्रकाश में आ रहे हैं। कुछ समय पहले दिल्ली में पैरा मेडिकल की छात्रा के साथ हुए सामूहिक बलात्कार में भी एक किशोर की संलिप्तता थी। अब दिल्ली में किशोरों ने ढाई साल की बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार किया है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के मुताबिक किशोरों द्वारा किए जा रहे अपराध में लगातार इजाफा हो रहा है। किशोरों के खिलाफ 2003 में जहां 33320 मामले दर्ज किए गए थे, जो 2014 में बढ़ कर 42566 हो गए। इनमें सोलह से अठारह साल आयु के 31364, बारह से सोलह साल की आयु के 10534 और बारह साल से कम आयु के 668 बच्चे गिरफ्तार हुए थे। बारह साल वाले बच्चों में से एक दर्जन को हत्या जैसे जघन्य अपराध के मामलों में गिरफ्तार किया गया था। गंभीर और शर्मनाक तथ्य यह है कि पिछले दस सालों में किशोरों द्वारा बलात्कार के मामलों में तीन सौ प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। 2003 में किशोरों द्वारा बलात्कार के 535 मामले दर्ज किए गए थे, जो 2014 में बढ़ कर 2144 हो गए। किशोरों द्वारा अपराध के मामलों में बढ़ोतरी के बाद दिल्ली सरकार जघन्य अपराधों में सजा की न्यूनतम उम्र सीमा पंद्रह साल करने की मांग कर रही है, जबकि लोकसभा में किशोर न्याय संशोधन विधेयक 2014 पारित किया गया है, जिसमें सजा देने की उम्र सीमा अठारह से घटा कर सोलह साल कर दी गई है। भले यह विधेयक अभी कानून नहीं बन सका है, लेकिन नाबालिगों द्वारा किए जाने वाले अपराधों में जिस तेजी से वृद्धि हो रही है, उससे इस विधेयक को कानून बनाने की मांग तेज हो रही है। एनसीआरबी के अनुसार किशोरों द्वारा किए गए बलात्कारों की संख्या 2012 के मुकाबले 2014 में लगभग दोगुना हो गई। 2014 में दर्ज बलात्कार के 2144 मामलों में से 1488 में बलात्कारियों की उम्र सोलह से अठारह साल के बीच थी, जबकि 2012 में 1316 किशोरों को बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। गौरतलब है कि भारत में अठारह साल से कम उम्र का अपराधी नाबालिग माना जाता है और उनके खिलाफ आरोप की सुनवाई केवल जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में होती है। सजा के नाम पर उन्हें अधिकतम तीन साल बाल सुधार गृह में गुजारने की सजा सुनाई जाती है, जबकि बदलते परिवेश में किशोरों द्वारा लगातार गंभीर अपराध किए जा रहे हैं। गौरतलब है कि सिर्फ भारत में किशोरों को जघन्य अपराध करने के बावजूद गंभीर सजा नहीं मिल पाती है। अमेरिका के अनेक राज्यों में संगीन अपराध करने पर तेरह से पंद्रह साल के किशोरों को गंभीर सजा दी जाती है, कुछ राज्यों में यह उम्र सीमा महज दस साल है। यहां बच्चों और किशोरों को उम्र कैद तक की सजा दी जाती है। इंग्लैंड में अठारह साल से कम उम्र के अपराधियों को आम अपराधियों की तरह सजा दी जाती है। चीन में चौदह से अठारह साल के बच्चों का अपराध साबित होने पर उन्हें आम अपराधियों की तरह सजा दी जाती है। हां, उन्हें सजा देने में जरूर थोड़ी रियायत बरती जाती है। फ्रांस में नाबालिग की उम्र सोलह साल रखी गई है। सऊदी अरब में बच्चों और किशोर अपराधियों को सजा देने में कोई रियायत नहीं बरती जाती। एनसीआरबी द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक जून, 2012 में प्रत्येक घंटे दो महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया, वहीं ग्यारह महिलाओं का यौन शोषण और छेड़खानी की गई थी। अकेले दिल्ली में नवंबर, 2012 तक कुल 635 बलात्कार के मामले विभिन्न थानों में दर्ज किए गए। इनमें 94.2 प्रतिशत बलात्कार करने वाले आरोपी पीड़िता के परिचित थे। 1.2 प्रतिशत मामलों में आरोपी, पीड़िता के पिता या सगे-संबंधी थे। वर्ष 2011 में सबसे अधिक यानी 3406 बलात्कार के मामले मध्यप्रदेश में दर्ज किए गए। इस मामले में दूसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल, तीसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश और चौथे नंबर पर राजस्थान था। वर्ष 2011 में यौन उत्पीड़न और छेड़खानी के सबसे अधिक 42.7 प्रतिशत मामले आंध्र प्रदेश में दर्ज किए गए। महाराष्ट्र इस मामले में दूसरे नंबर पर था। पुलिस की नकारात्मक छवि के कारण बलात्कार पीड़ित लड़कियां आमतौर पर थाने जाने से परहेज करती हैं, जिससे बलात्कार के अधिकतर मामले पुलिस तक पहुंच ही नहीं पाते हैं। भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धारा 376 और इसकी उप-धाराओं के अंतर्गत बलात्कारियों को सजा देने का प्रावधान है। वर्तमान कानून के अनुसार अगर आरोपी पर बलात्कार का दोष साबित होता है, तो उसे सात साल तक सश्रम कारावास की सजा दी जा सकती है, जिसे विशेष परिस्थिति में दस साल तक बढ़ाया जा सकता है। सामूहिक बलात्कार के मामले में कम से कम दस साल सश्रम या आजीवन कारावास की सजा दी जा सकती है। इस मामले में अलग से आर्थिक दंड भी लगाया जा सकता है। आइपीसी की धारा 354 के अंतगर्त यौन शोषण के मामलों में दोषियों को सजा देने का प्रावधान है। इसके तहत दो साल तक का सश्रम कारावास या आर्थिक दंड या फिर दोनों दिए जा सकते हैं। आइपीसी की धारा 509 के अंतर्गत ऐसे मामलों में सजा तो दी जाती है, लेकिन वह मामूली है। कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ हो रहे यौन उत्पीड़न को रोकने के संबंध में बना वर्तमान कानून अब भी प्रभावशाली नहीं है। कहा जा सकता है कि कानून के मौजूदा प्रावधान बलात्कार को रोकने में सक्षम हैं। पर हकीकत यह है कि बलात्कारियों के मन में कानून का कोई खौफ नहीं है। वे जानते हैं कि देश का कानून अंदर से खोखला है। अदालती कार्यवाही इस कदर ढीली-ढाली होती है कि पीड़िता को न्याय मिलने में सालों लग जाते हैं। सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में बलात्कार के लगभग चालीस हजार मामले देश की विभिन्न अदालतों में लंबित हैं। लापरवाही के कारण या देखभाल के अभाव में देश में बालिका शिशु की मृत्यु दर लगातार बढ़ रही है। राजस्थान, हरियाणा, पंजाब आदि में आज भी लड़कियों को जन्म लेते ही नमक चटा कर मार डालने के मामले प्रकाश में आते हैं। इसी वजह से इन राज्यों में लड़कियों की संख्या लड़कों से कम हो गई है और लड़कों की शादी के लिए या सिर्फ बच्चे पैदा करने के लिए बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, ओड़िशा, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों से लड़कियां खरीद कर लाई जा रही हैं। आंकड़ों में जरूर महिलाएं शिक्षित हो रही हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में शिक्षित लोगों का प्रतिशत चौहत्तर है, जिसमें महिलाओं का प्रतिशत पैंसठ है, लेकिन हकीकत में वे केवल कागज पर शिक्षित हैं। अधिकतर को सिर्फ अपना नाम लिखना आता है। भारत में आरइटी के जरिए शिक्षा को अनिवार्य बनाया गया है। स्कूल में खाने-पीने की व्यवस्था की गई है। प्रोत्साहन के तौर पर पैसे दिए जा रहे हैं। पढ़ने में जहीन छात्राओं को वजीफा दिया जा रहा है। साइकिलें बांटी जा रही हैं। बावजूद इसके, बड़ी संख्या में लड़कियां बीच में ही पढ़ाई छोड़ रही हैं। स्कूल छोड़ने के कारण चौंकाने वाले हैं। अधिकतर माता-पिता लड़कियों से घर और बाहर काम कराना चाहते हैं या फिर उनसे छुटकारा पाने के लिए नाबालिग अवस्था में ही उनकी शादी कर देते हैं। हिंदू समुदाय के लोग ग्रामीण क्षेत्रों में शादी के नाम पर नाबालिग लड़कियों को बेच रहे हैं, वहीं मुसलिम समुदाय वाले उन्हें शेखों को बेच रहे हैं। ऐसे निकृष्ट कार्य बीमारू राज्यों में ज्यादा हो रहे हैं। इसमें दो राय नहीं है कि स्त्री सृष्टि का आधार है। लेकिन हमारे देश में अब भी स्त्री को बराबर का दर्जा नहीं दिया जाता। इक्कीसवीं सदी में भी उसके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जा रहा है, जबकि पुत्र ही वंश को चला सकता है जैसी धारणाओं का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। मेघालय की खासी जनजाति में वंश कन्या चलाती है। परिवार की मुखिया मां होती है और पुरुष मां का उपनाम रखते हैं, लेकिन वहां देश के अन्य राज्यों में लड़कियों के साथ किए जा रहे भेदभाव की तरह लड़कों के साथ सौतेला बरताव नहीं किया जाता है। कहा जा सकता है कि बलात्कार की घटनाओं के मूल में पुरुषों की विकृत मानसिकता है। दरअसल, पुरुषों की ओछी हरकतों को सहने की आदत औरतों को अपने घर से डालनी पड़ती है, जिसका क्रमश: विस्तार होता जाता है। रिश्तेदार से लेकर पहचान वाले तक रिश्तों को शर्मसार करने से नहीं चूकते। अफसोस की बात है कि ऐसे मानसिक रोगियों को हमारा समाज ही पालता-पोसता है। विडंबना है कि एक तरफ हमारे समाज में स्त्री को देवी मान कर पूजा की जाती है, तो दूसरी तरफ उसके साथ बलात्कार जैसा घिनौना कृत्य भी किया जाता है। हकीकत यह है कि भारतीय स्त्री एक बीमार समाज में सांस ले रही है। मां के गर्भ से ही लड़कियों की जान सांसत में रहती है। हर वक्त मौत का साया उनके आसपास मंडराता रहता है। ऐसी विकृत मानसिकता वाले समाज में बलात्कार होते ही रहेंगे। मौजूदा समय में बलात्कार की घटनाओं को रोकने के लिए कानून में बदलाव लाने की जगह, महिलाओं के प्रति नजरिए में बदलाव लाने की जरूरत है। (सतीश सिंह)

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