Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | कृषि ऋण की राह में मुश्किलें-- विभाष

कृषि ऋण की राह में मुश्किलें-- विभाष

Share this article Share this article
published Published on Jun 29, 2016   modified Modified on Jun 29, 2016
बैंकों से किसानों को मिलनेवाले कृषि ऋण को लेकर कई भ्रांतियां हैं. बड़ी शिकायत यह रहती है कि ढेर सारे दस्तावेज बैंक में जमा करने पड़ते हैं. एक सेमिनार में एक बड़े उद्योगपति ने यह बात सबके सामने रखी. मैंने प्रतिकार किया कि कोई भी ऋण बिना न्यूनतम दस्तावेज के नहीं दिया जा सकता. कृषि ऋण के दस्तावेजों को सरल और मानक बनाने के उद्देश्य से रिजर्व बैंक ने वर्ष 1997 में आरवी गुप्ता की अध्यक्षता में एक ‘हाइ लेवल कमेटी ऑन एग्रीकल्चरल क्रेडिट थ्रू कॉमर्शियल बैंक्स' गठित की. वर्ष 1998 में प्रस्तुत इस रिपोर्ट की अनुसंशाओं को मानते हुए रिजर्व बैंक ने उन्हें लागू करने के लिए बैंकों को निर्देश निर्गत किया. कमेटी की अनुसंशाओं में कृषि ऋण संबंधी अन्य बातों के अतिरिक्त ऋण प्रदान करने को सरल बनाना, ऋण की जरूरतों का निर्धारण और ऋण की वसूली आदि मसले शामिल थे.

 

कृषि की विभिन्न गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए एक बहुत ही साधारण आवेदन पत्र तय किया गया. ऋण की स्वीकृति के बाद विभिन्न करार संबंधी दस्तावेज, हाइपोथिकेशन, जमानत और भूमि बंधक के प्रारूप भी तय किये गये. रिजर्व बैंक समय-समय पर तय करता है कि कितने रुपये तक के ऋण किस प्रकार के करार पर दिये जा सकते हैं. वर्तमान में एक लाख रुपये तक के ऋण मात्र फसल और कृषि संबंधी चल संपत्तियों के हाइपोथिकेशन पर दिये जा सकते हैं. यानी एक लाख रुपये तक के ऋण के लिए न तो भूमि बंधक रखने की जरूरत होती है और न ही किसी की जमानत देनी पड़ती है. इससे ऊपर के ऋण के लिए भूमि बंधक अथवा दो व्यक्तियों के जमानत की जरूरत पड़ती है. यही न्यूनतम, या कहें तो अधिकतम दस्तावेज होते हैं. लेकिन कुछ बैंक हाल तक इन दस्तावेजों को लागू नहीं कर पाये. 

समस्या यह भी है कि जब कभी किसी बैंक शाखा में कोई अनियमितता हुई, तो जांच टीम की रिपोर्ट के आधार पर बैंक कोई एक नया दस्तावेज शुरू कर देता है. इस प्रकार बैंक बिना अपने नियंत्रण और मॉनीटरिंग प्रणाली को चुस्त बनाये एक के बाद एक नया दस्तावेज लागू करते जाते हैं और कृषि ऋण के दस्तावेजों की संख्या बढ़ती जाती है. यह इस ओर भी इशारा करता है कि कृषि ऋण की समझ बैंकों में मजबूत नहीं है. 

कृषि ऋण से संबंधित दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है भूमि अभिलेख, जिसके आधार पर किसान के लिए ऋण की मात्रा तय की जाती है. राज्यों में भूमि अभिलेखों का अद्यतन किया जाना बहुत धीमी गति से होता है. जैसे बिहार में लैंड पॉजेशन सर्टिफिकेट या तो अद्यतन नहीं होते हैं या फिर गलत होते हैं, जिसके कारण बैंक शाखाओं को बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है ऋण देने में. झारखंड में तो भूमि दस्तावेज अभी तैयार ही नहीं है, जिसकी वजह से किसानों को ऋण देना बहुत ही मुश्किल है. रिपोर्ट बनती है कि लातेहार जिले के भू-अभिलेखों को तैयार कर लिया गया है. भू-अभिलेखों की उपलब्धता न होने के कारण सभी बैंकों ने झारखंड राज्य के लिए एक अलग योजना लागू की हुई है, जिसमें पचास हजार रुपये तक के ऋण के लिए किसी भू-अभिलेख की जरूरत नहीं होगी. लेकिन इससे झारखंड के कृषि ऋण की समस्या का हल नहीं होता. किसानों को बैंकों से आसानी से ऋण मिले, इसके लिए जरूरी है कि राज्य सरकारें खेतों के भू-अभिलेखों को अद्यतन बनायें. बैंक आरवी गुप्ता कमेटी की अनुसंशाओं को पूरी तरह से लागू करें, जिसमें सरल और मानक दस्तावेज, ऋण की जरूरतों के निर्धारण में पूरे परिवार की आय को शामिल करना, किसान के दिये गये ऋण को नकदी रूप में देना, वसूली को प्रोत्साहित करने के लिए किसानों को ब्याज में राहत देना आदि शामिल हैं. 

बैंकों के राष्ट्रीयकरण के तुरंत बाद बैंकों द्वारा कृषि ऋण को सरल बनाने के लिए रिजर्व बैंक ने सितंबर 1969 में आरके तलवार की अध्यक्षता में ‘दी एक्स्पर्ट ग्रुप ऑन स्टेट एनैक्टमेंट्स हैविंग ए बियरिंग ऑन कॉमर्शियल बैंक्स लेंडिंग टू एग्रीकल्चर' नामक कमेटी गठित की. इस कमेटी ने कृषि ऋण को आसान बनाने के लिए एक ‘मॉडल बिल- दी एग्रीकल्चरल क्रेडिट ऑपरेशंस एंड मिसलेनियस प्रॉविजंस (बैंक्स) बिल, 1970' प्रस्तावित की कि सभी राज्य इसे कानून बना कर बैंकों के पक्ष में भूमि बंधक और राजस्व के रूप में ऋणों की वसूली को आसान बनायेंगे. लेकिन आज तक सभी राज्य इस बिल को कानून नहीं बना पाये हैं. जिन मुख्य राज्यों ने बनाया है, उनमें असम, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, गुजरात आदि हैं. इनमें उत्तर प्रदेश को छोड़ कर किसी भी राज्य में इसका क्रियान्वयन प्रभावी नहीं है. इस कानून के अंतर्गत भूमि बंधक एक बड़े ही सरल उद्घोषणा पत्र पर किया जा सकता है तथा ऋण की वसूली भू-राजस्व के रूप में की जा सकती है. इसके न लागू होने या क्रियान्वयन अप्रभावी होने पर बैंक शाखाएं भूमि का इक्विटेबल मॉर्टगेज करती हैं और छोटी राशि के ऋण की वसूली के लिए मुकदमा दायर करना पड़ता है. इस प्रकार वसूली प्रभावित होती है और ऋण प्रवाह भी प्रभावित होता है.

इसके अतिरिक्त बैंक शाखाओं में प्रतिवर्ष सैकड़ों की संख्या में कृषि ऋण आवेदन पत्र आते हैं. ग्रामीण और अर्धशहरी शाखाओं में स्टाफ की संख्या को देखते हुए यह आशा करना कि ऋण तत्काल प्रदान किया जायेगा, अति होगी. बैंकों और टेक्नोलॉजी फर्मों को कृषि ऋण को समझ कर सीबीएस में तब्दीली करनी पड़ेगी, जिससे शाखाओं को आसानी हो.

अब जबकि आधार को कानूनी मान्यता प्रदान किया जा चुका है, ऋण दस्तावेजों पर दस्तखत करना आसान बनाया जा सकता है. ऋण दस्तावेजों को सिस्टम में सॉफ्ट फॉर्म में रखा जा सकता है और किसान ऋणी फिंगर स्कैनर पर अंगूठा या अंगुली रख कर कुछेक मिनटों में दस्तखत कर सकता है. इस तरह समय तो बचेगा ही, बैंक किसी भी धोखाधड़ी से भी बचा रहेगा.

 

 

खेती में जोखिम प्रबंधन का समुचित प्रबंध नहीं है. फसल बीमा अभी भी हास्यास्पद बना हुआ है. बार-बार ऋण माफी की जगह उचित जल और भूमिप्रबंध, मजबूत फसल बीमा और जिंसों के भंडारण और प्रसंस्करण पर ध्यान देने की जरूरत है.
बैंकों से कृषि ऋण को आसान बनाना राज्य सरकार, केंद्र सरकार, रिजर्व बैंक और बैंक प्रबंधन के हाथ में है.
िबभाष
कृषि एवं आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ

 


http://www.prabhatkhabar.com/news/columns/story/821833.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close