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न्यूज क्लिपिंग्स् | केंद्र के नए कानून से गन्ने के भुगतान मूल्य को लेकर संशय

केंद्र के नए कानून से गन्ने के भुगतान मूल्य को लेकर संशय

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published Published on Nov 2, 2009   modified Modified on Nov 2, 2009

उत्तर प्रदेश में गन्ने के भुगतान मूल्य को लेकर चीनी मिलें दुविधा में फंस गई हैं।

उन्हें यह साफ नहीं हो पा रहा है कि गन्ने की कीमत वे राज्य सरकार द्वारा घोषित मूल्यों के आधार पर अदा करे या फिर केंद्र सरकार के नए मूल्य का इंतजार करे। उधर किसान भी इस साल गन्ने के बदले मिलने वाली कीमत को लेकर संशय में हैं।

असल में केंद्र सरकार ने गत 22 अक्टूबर को जारी अपने नए कानून में कहा है कि वह हर साल घोषित होने वाली सांविधिक  न्यूनतम मूल्य (एसएमपी) की जगह समय-समय पर गन्ने की कीमत के लिए उचित एवं लाभकारी मूल्य (फेयर एंड रिम्युनिरेटिव प्राइस-एफआरपी) तय करेगी। और राज्य सरकार गन्ने के लिए इससे अधिक कीमत तय करती है तो एफआरपी एवं राज्य आधारित मूल्य (एसएपी) के अंतर का भुगतान राज्य सरकार को करना होगा।

क्यों है ऊहापोह

उत्तर प्रदेश के मिल संचालकों के मुताबिक जो राज्य केंद्र सरकार के मूल्य का अनुसरण करती है उनके लिए कोई समस्या नहीं है, लेकिन उत्तर प्रदेश में हर साल एसएपी की घोषणा होती है, लिहाजा यहां के मिर्ल्स नए नियम को लेकर असमंजस में है। क्योंकि आगामी 10-15 नवंबर से गन्ने की पेराई शुरू हो जाएगी।

लिहाजा अगले सप्ताह से मिलों में गन्ने की आपूर्ति शुरू हो जाएगी और मिल वालों को गन्ने का भुगतान शुरू करना होगा। लेकिन उनके सामने एसएपी या फिर एसएमपी को भुगतान का आधार मूल्य मानने की समस्या आ रही है। क्योंकि एफआरपी अभी घोषित नहीं हुई है।

मिल वालों की दिक्कत यह है कि एसएपी व एमएसपी में प्रति क्विंटल करीब 50 रुपये का फर्क है। उत्तर प्रदेश में इस साल के लिए एसएपी 165-170 रुपये प्रति क्विंटल तय की गयी है।

सहारनपुर स्थित दया शुगर के सलाहकार डीके शर्मा कहते हैं, 'हम मिल वालों ने फिलहाल एसएपी के आधार पर ही गन्ना किसानों को भुगतान करने का फैसला किया है। क्योंकि इस साल गन्ने की कमी पहले से है और किसान को बाद में कीमत अदायगी की बात किसी भी हाल में नहीं कही जा सकती है।'

जल्द आएगी एफआरपी

नेशनल फेडरेशन ऑफ कोपरेटिव शुगर फैक्टरीज के पदाधिकारी कहते हैं, 'अब एमएसपी से कोई मतलब नहीं है। सरकार इस साल के लिए एफआरपी की घोषणा करेगी। अगर एफआरपी एसएपी से कम होगी तो दोनों के अंतर का भुगतान राज्य सरकार करेगी।' हालांकि एफआरपी के एसएपी से ज्यादा घोषित होने की भी शंका जाहिर की जा रही है। फेडरेशन के पदाधिकारियों ने बताया कि केंद्र सरकार एफआरपी तय करने पर काम कर रही है।

किसान भी पसोपेश में

उत्तर प्रदेश के किसान को इस नए कानून के तहत अपने भुगतान को लेकर फिर से पचड़े में पड़ने की आशंका हो रही है। किसानों के मुताबिक मिल मालिक गन्ना मूल्य के भुगतान के लिए एफआरपी का इंतजार करेंगे। ऐसे में उन्हें गन्ने की पूरी कीमत मिलने में दिक्कत आ सकती है।


http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=26071
 

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