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न्यूज क्लिपिंग्स् | कैसे रुकेंगे सड़क हादसे- रमेश सर्राफ धमोरा

कैसे रुकेंगे सड़क हादसे- रमेश सर्राफ धमोरा

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published Published on Nov 28, 2016   modified Modified on Nov 28, 2016
ऐसा कोई दिन नहीं गुजरता जिस दिन देश के किसी भी भाग में सड़क हादसा न हो और कुछ लोगों को जान से हाथ न धोना पड़े। अमूमन सड़क दुर्घटनाओं का शिकार होने वाले आम जन होते हैं। इसलिए वे अखबारों की सुर्खियां नहीं बन पाते, जिससे उन दुर्घटनाओं पर लोगों का ध्यान भी नहीं जाता है। आंकड़ों के मुताबिक हमारे देश में हर मिनट में एक सड़क दुर्घटना होती है और हर तीन मिनट में सड़क दुर्घटना में एक जान जाती है। दुनिया में सबसे ज्यादा सड़क हादसे भारत में ही होते हैं। जबकि चीन, रूस और अमेरिका जैसे कई देशों में भारत की अपेक्षा कहीं अधिक संख्या में कारें हैं।दुर्घटनाओं पर राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े दिल दहलाने वाले हैं। पिछले साल सड़क हादसों में हर घंटे सोलह लोग मारे गए। इनमें दिल्ली सबसे आगे रही, जबकि उत्तर प्रदेश सबसे घातक प्रांत रहा। ब्यूरो ने दुर्घटनाओं पर अपनी ताजा रिपोर्ट में बताया है कि भारत में 2014 में साढ़े चार लाख से ज्यादा दुर्घटनाएं हुर्इं जिनमें 1 लाख 41 हजार से ज्यादा लोग मारे गए। रिपोर्ट के अनुसार, हादसों में होने वाली मौतों के मामले में दिल्ली का पहला स्थान रहा, जहां पिछले साल 7,191 दुर्घटनाएं दर्ज हुर्इं। इनमें कुल 1,332 लोगों की जान गई और 6,826 लोग घायल हुए।

पिछले दस साल में सड़क हादसों में होने वाली मौतों में साढ़े बयालीस प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि इस अवधि में आबादी में सिर्फ साढ़े चौदह प्रतिशत का इजाफा हुआ है। ज्यादातर मौतें दो-पहिया वाहनों की दुर्घटना में हुई हैं और तेज व लापरवाही से वाहन चलाना उनकी वजह रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार साढ़े चार लाख सड़क दुर्घटनाओं में 1 लाख 41 हजार से ज्यादा लोग मारे गए। इनमें से एक तिहाई की मौत उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में हुई। तमिलनाडु में सड़क दुर्घटना के सबसे अधिक मामले हुए और सबसे अधिक लोग घायल भी हुए। इन दुर्घटनाओं में मरने वालों में सबसे बड़ा हिस्सा उत्तर प्रदेश का रहा। जबकि शहरों के मामले में 2,199 मौतों के साथ सबसे ज्यादा मौतें राजधानी दिल्ली में दर्ज हुर्इं। चेन्नई 1,046 मौतों के साथ दूसरे नंबर पर और 844 मौतों के साथ जयपुर तीसरे नंबर पर रहा।सड़क दुर्घटनाओं और उनमें मरने वालों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो संदेश ‘मन की बात' में भी उसका जिक्र किया। उन्होंने दुर्घटनाओं की बढ़ती संख्या पर चिंता जताई और लोगों की जान बचाने के लिए कदम उठाने की घोषणा की। प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार सड़क परिवहन और सुरक्षा कानून बनाएगी तथा दुर्घटना के पीड़ितों को बिना पैसा चुकाए तुरंत चिकित्सा की सुविधा उपलब्ध कराएगी।

 


संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2011 से 2020 के दशक को सड़क सुरक्षा के लिए कार्रवाई दशक के रूप में अपनाया है और सड़क दुर्घटनाओं से वैश्विक स्तर पर पड़ने वाले गंभीर प्रभावों की पहचान करने के साथ-साथ इस अवधि के दौरान सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में पचास प्रतिशत की कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, अगर इस दिशा में ठोस कार्रवाई नहीं की जाती है तो वर्ष 2030 तक विश्व में सड़क दुर्घटनाएं लोगों की आकस्मिक मौत का पांचवां बड़ा कारण बन जाएंगी।
 
 
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े दर्शाते हैं कि 2020 तक भारत में होने वाली आकस्मिक मौतों में सड़क दुर्घटना एक बड़ा कारक होगी। अनुमान के मुताबिक तब प्रतिवर्ष 5 लाख 46 हजार लोग इसकी वजह से मरेंगे। 1 करोड़ 53 लाख 14 हजार लोग प्रतिवर्ष इसकी वजह से जिंदगी भर के लिए अपाहिज हो जाएंगे। डब्ल्यूएचओ के अनुसार , सड़क दुर्घटना में मरने वालों में पैदल यात्रियों, मोटर साइकल सवारों और साइकिल चालकों की संख्या सबसे अधिक है। सच तो यह है कि पूरी दुनिया के सिर्फ एक फीसद वाहन भारत में हैं। जबकि दुनिया भर में हो रही सड़क दुर्घटनाओं में छह फीसद यहीं हो रही हैं।

 

 


इंटरनेशनल रोड फेडरेशन के मुताबिक नब्बे फीसद हादसे ड्राइवर की गलती की वजह से होते हैं। इस पर यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या ड्राइविंग लाइसेंस देते वक्त कायदे से जांच-परख की जाती है? क्या सुरक्षा मानकों पर गाड़ियों की कड़ी जांच-पड़ताल होती है? ट्रैफिक नियम तोड़ने वालों पर क्या और सख्ती होनी चाहिए? भारत में रोज तेरह सौ से ज्यादा सड़क हादसे होते हैं और हर दिन सड़क हादसों में करीब चार सौ मौतें होती हैं। सड़क हादसों में सालाना करीब बीस अरब डॉलर का नुकसान होता है। भारत में बारह करोड़ से ज्यादा वाहन हैं और इनके चलने के लिए पर्याप्त सडकें होना जरूरी है। सड़क सुरक्षा के नियमों को जानना जरूरी है और इन्हें पालन करना भी। अगर हादसे इसी गति से होते रहें तो 2020 तक तकरीबन तीन लाख सड़क हादसे हर साल होंगे। पचपन फीसद मामलों में मौत हादसे के पांच मिनट के भीतर ही हो जाती है।केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने हाल ही में कहा है कि भारत में सड़क हादसों में हर रोज औसतन चार सौ लोगों की मौत होती है और इसका मुख्य कारण दोषपूर्ण इंजीनियरिंग है। गडकरी ने यह खुलासा सड़क हादसों पर जारी की गई परिवहन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के माध्यम से किया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि 2015 में भारत की सड़कों पर औसतन रोज चार सौ लोग मारे गए, मतलब हर घंटे सत्रह लोगों की मौत दर्ज की गई। रिपोर्ट जारी करते हुए गडकरी ने बताया कि इतनी मौतें तो युद्ध, महामारी और उग्रवाद से भी नहीं होतीं। इंसानों की बलि नहीं दी जा सकती। इसमें कमी लाने के लिए हमने पिछले दो साल में कई कदम उठाए हैं, जिनमें प्रधानमंत्री सड़क सुरक्षा योजना की शुरुआत और परियोजना लागत की एक फीसद राशि सड़क सुरक्षा के लिए आवंटित करना शामिल है।

 

 


रिपोर्ट में बताया गया है कि ज्यादातर हादसों के लिए ड्राइवर जिम्मेवार हैं। पिछले साल हुई दुर्घटनाओं में इकहत्तर फीसद दुर्घटनाओं के लिए ड्राइवर जिम्मेवार थे। यही नहीं, दुर्घटना की वजह से हुई मौतों में 72.6 फीसद मृतक ड्राइवर थे। गडकरी ने कहा, 2015 में हुए 77.1 फीसद सड़क हादसों के लिए रिपोर्ट में भले ही ड्राइवर को दोषी करार दिया गया हो, लेकिन दोषपूर्ण सड़क इंजीनियरिंग प्रमुख कारणों में से एक है। इस रिपोर्ट के अनुसार स्वीडन में पिछले साल महज एक सड़क दुर्घटना हुई थी। जबकि भारत में पांच लाख सड़क हादसे हुए थे। परिवहन मंत्रालय ने अब देश भर में फैले 726 ‘ब्लैक स्पॉट्स' की पहचान की है जहां बार-बार हादसे होते हैं। केंद्रीय परिवहन मंत्रालय ने अब राज्य सरकारों से बात करके इन जगहों पर रोड का डिजाइन दुरुस्त करने का काम शुरू कर दिया है।
हमारी सड़कों पर वाहनों का दबाव बढ़ता जा रहा है। इस पर नियंत्रण के उचित कदम उठाए जाने चाहिए। साथ ही वाहनों की सुरक्षा के मानकों की समय-समय पर जांच होनी चाहिए। भारी वाहन और पब्लिक ट्रांसपोर्ट को परमिट दिए जाने की प्रक्रिया में कड़ाई बरती जाए। ड्राइविंग लाइसेंस के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता भी तय की जाए, साथ ही छोटे बच्चों और किशोरों के वाहन चलाने पर कड़ाई से रोक लगे। तेज रफ्तार, सुरक्षा बेल्ट का प्रयोग न करने वालों और शराब पीकर गाड़ी चलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो। स्कूलों में भी सड़क सुरक्षा से जुड़े जागरूकता अभियान चलाए जाएं, तभी भारत में सड़कों पर लगातार हो रही दुर्घटनाओं पर रोक लग पाएगी।

 


http://www.jansatta.com/politics/jansatta-editorial-about-accident/194664/


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