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न्यूज क्लिपिंग्स् | क्या कहता है यह बिगड़ता मौसम-- विजेता रत्तानी

क्या कहता है यह बिगड़ता मौसम-- विजेता रत्तानी

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published Published on Sep 28, 2018   modified Modified on Sep 28, 2018
पिछले दिनों लौटती मानसूनी बारिश देश के उत्तरी राज्यों पर कहर बनकर टूटी। सिर्फ एक दिन में, यानी 24 सितंबर को पंजाब में सामान्य से 12 गुना ज्यादा बारिश हुई। उसी दिन हरियाणा में नौ गुना अधिक, तो हिमाचल प्रदेश में छह गुना ज्यादा पानी बरसा। जम्मू-कश्मीर भी बारिश से अचानक आई बाढ़ से डूबता-उतराता रहा। इस अप्रत्याशित बारिश से पंजाब-हरियाणा के खेतों में खड़ी खरीफ और नकदी फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है। हिमाचल प्रदेश में भी सेब की खेती बुरी तरह प्रभावित हुई है। जान-माल का नुकसान तो खैर इन सभी सूबों में हुआ है। गौर कीजिए, इन सबकी यह दशा तब हुई, जब मौसम बरसात का नहीं है।


आखिर बारिश अब इस कदर तबाही क्यों मचाने लगी है? इसका जवाब इंसानी गतिविधियों में छिपा है। ऐसा नहीं है कि बेमौसम बरसात पहले नहीं होती थी। बाढ़ भी आती रही है, सूखा भी पड़ता रहा है। मगर अब इन सबकी तीव्रता और आवृत्ति काफी ज्यादा बढ़ गई है। आकलन है कि पिछली सदी के शुरुआती दशकों के मुकाबले इस सदी में ‘एक्सट्रीम वेदर' यानी अप्रत्याशित रूप से मौसम बदलने की घटनाओं में लगभग सौ गुना की वृद्धि हुई है। साफ है, हमारे देश में जलवायु परिवर्तन का असर न सिर्फ निरंतर दिखने लगा है, बल्कि इससे होने वाली घटनाएं अधिक संख्या में और ज्यादा तीव्रता से होने लगी हैं। केरल इसका बड़ा उदाहरण है। वहां अगस्त महीने की अनियमित बारिश और बाढ़ ने 350 से अधिक लोगों की जान ले ली। माली नुकसान तो उसे इस हद तक पहुंचा है कि इसे फिर से खड़ा होने में न जाने कितने वर्ष लग जाएं? वैज्ञानिकों का अनुमान है कि आने वाले वर्षों में देश में इस तरह की मौसमी परिघटनाएं तेजी से होंगी।


यह बदलते जलवायु का ही नतीजा है कि अब पहले की तरह ठंड का एहसास नहीं होता। धरती गरम होने लगी है। औद्योगिक क्रांति-पूर्व काल से अब तक पृथ्वी का औसत तापमान एक डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। आज के समय में जलवायु परिवर्तन एक ऐसा खतरा बन गया है, जो विश्व के तमाम देशों को किसी न किसी रूप में नुकसान पहुंचा रहा है। दुनिया का कोई भी कोना इससे अछूता नहीं है। अमेरिका में ही हाल के वर्षों में चक्रवाती तूफान की तीव्रता और आवृत्ति बढ़ी है। जर्मनी में अब ‘हीट वेव' यानी लू महसूस की जाने लगी है। इसीलिए इस ठंडे प्रदेश में अब कहीं-कहीं पंखे चलने लगे हैं, जबकि वहां पंखे की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। जापान भी अत्यधिक बारिश से लस्त-पस्त होने लगा है। जापान पिछले दिनों अपने 25 साल के सबसे भयानक तूफान से लड़ा है। साफ है, समस्या सिर्फ हिन्दुस्तान की नहीं है। दुनिया का लगभग हर हिस्सा अनियमित बारिश, बाढ़ और सूखा झेलने को अभिशप्त हो गया है।


वैश्विक जलवायु में हो रहे ये बदलाव कुदरती नहीं हैं। इसकी वजह तमाम देशों की विकास-पद्धतियां हैं। जिस ईंधन का हम इस्तेमाल करते रहे हैं, उसने आबोहवा में कार्बन डाई-ऑक्साइड की मात्रा काफी ज्यादा बढ़ा दी है। इससे जलवायु परिवर्तन की कुदरती गति बिगड़ गई है, जिसका नतीजा हम ‘एक्सट्रीम वेदर' के रूप में भुगत रहे हैं।


भारत जलवायु परिवर्तन को लेकर दोतरफा मुश्किलों से जूझ रहा है। अव्वल तो यहां जलवायु परिवर्तन का असर बढ़ने लगा है, फिर हमारे पास आपदा से निपटने की पूरी तैयारी भी नहीं है। केरल का ही उदाहरण लें। वहां 40 से अधिक नदियां बहती हैं और उनकी धाराएं भी ढलान की वजह से तेज होती हैं, मगर बाढ़ से निपटने की चेतावनी प्रणाली वहां अब तक नहीं लग पाई है। इसे इस तरह समझें कि जिस राज्य में बाढ़ आने की आशंका रहती है, वहां हम लोगों को आपदा आने से पहले सावधान भी नहीं कर सकते। जाहिर है, जब आपदा से लड़ने का तंत्र ही नहीं होगा, तो फिर हम उससे निपटेंगे कैसे? इसी तरह, हमारे पास ‘क्लाउड वार्निंग सिस्टम' (बादलों से जुड़ा चेतावनी तंत्र) नहीं है। ऐसी कोई ठोस व्यवस्था भी हमारे पास नहीं है कि आसन्न संकट को देखते हुए बड़ी संख्या में लोगों को अस्थाई रूप से हटाया जा सके। तकनीक और क्षमता के मोर्चे पर भी हम अभी पीछे हैं। ये तमाम दुश्वारियां विकसित देशों के सामने नहीं आतीं। उनके पास पर्याप्त पूंजी और क्षमता है, इसीलिए वे मौसमी घटनाओं से लड़ने में कहीं अधिक सक्षम हैं।


आंकड़े बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन से जो देश सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं, उनमें भारत का स्थान चौथा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तो सभी मुल्क यह मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन के खतरे आने वाले वर्षों में बढ़ेंगे, लेकिन इससे निपटने के लिए कोई उम्मीद के मुताबिक प्रयास नहीं कर रहा। इन्फ्रास्ट्रक्चर और पूंजी के अभाव के कारण विकासशील और अल्प-विकसित देशों की अपनी मुश्किलें हैं, पर विकसित देश भी इस मामले में दरियादिली नहीं दिखा रहे। बेशक अमीर देशों के पास जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के लिए पर्याप्त साधन हैं, पर मौसमी बदलाव का नुकसान उन्हें भी उठाना ही होगा।


इस सूरत में हमें अपने तईं प्रयास शुरू करना होगा। देश के सभी राज्यों में आपदा प्रबंधन का एक व्यवस्थित तंत्र होना चाहिए। जरूरी यह भी है कि हम जलवायु परिवर्तन को लेकर जन-जागरूकता फैलाएं। इसके लिए अलग से कुछ करने की कोई खास जरूरत नहीं है। बस हम जो विकास कर रहे हैं, वह सतत होना चाहिए। जलवायु परिवर्तन को उसी में शामिल करना होगा। एक मुश्किल यह भी है कि हमारे यहां राष्ट्रीय स्तर पर और राज्यवार जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए बने ‘एक्शन प्लान' पर कुछ काम नहीं हो रहा। यह जानते हुए भी कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को हर साल दो फीसदी का नुकसान होता है, हमारी यह उदासीनता भारी पड़ सकती है। इस समस्या को आपात स्थिति की तरह लेने की जरूरत है। हमारे पास पैसों की समस्या जरूर है, लेकिन निजी क्षेत्रों को इससे जोड़कर सरकार संजीदगी का परिचय दे सकती है।

(ये लेखिका के अपने विचार हैं)


https://www.livehindustan.com/sports/fifa-world-cup-2018-experts-column/story-opinion-hindustan-column-on-28-september-2195382.html


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