Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | क्रांति जिससे आजादी की राह निकली-- मृदुला मुखर्जी

क्रांति जिससे आजादी की राह निकली-- मृदुला मुखर्जी

Share this article Share this article
published Published on Aug 8, 2018   modified Modified on Aug 8, 2018
‘भारत छोड़ो' (क्विट इंडिया) के नारे के साथ 1942 में ‘अगस्त क्रांति' की शुरुआत हुई थी। इस आंदोलन में हर तबके के लोगों ने हिस्सा लिया। किसानों, महिलाओं, छात्रों, नौजवानों के साथ-साथ विभिन्न विचारधारा के लोगों ने इसमें शिरकत की और अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। वह दूसरे विश्व युद्ध का समय था और लोगों के लिए कठिन माहौल था। ब्रिटिश सरकार ने तमाम तरह के सख्त कानून थोप दिए थे और किसी भी तरह की राजनीतिक गतिविधियों पर पाबंदी लगा दी थी, फिर चाहे वह शांतिपूर्ण क्यों न चल रही हो। इन सबके बावजूद लोगों ने बहादुरी के साथ यह आंदोलन चलाया।


आज जब यह भावना गहराती जा रही है कि लोग विरोध के स्वर में साथ नहीं देते और उनमें राजनीतिक तौर पर उदासीनता पसरती जा रही है, तब इस आंदोलन का संदेश हमारे भीतर एक नई उम्मीद जगाता है। यह बताता है कि लोग यदि ठान लें, तो वे किसी भी उद्देश्य के लिए एक हो सकते हैं; बस उन्हें एक सही नेतृत्व की दरकार होती है। यह आंदोलन अत्याचार के खिलाफ खड़े होने की एक परंपरा का हिस्सा है। आज इसलिए भी इसकी प्रासंगिकता है कि यह उन तमाम तबकों को ताकत देता है, जो आज दबाए-कुचले जा रहे हैं और अपने हक-अधिकार की जंग लड़ रहे हैं।


आखिर ‘भारत छोड़ो' का नारा देना क्यों जरूरी हो गया था? दूसरे विश्व युद्ध के दौरान यह आंदोलन चलाना क्यों उचित समझा गया, जबकि भारतवासियों और राष्ट्रीय आंदोलन की सहानुभूति ब्रिटेन व मित्र देशों के साथ थी, जो हिटलर और मुसोलिनी के फासीवाद व नाजीवाद के खिलाफ लड़ रहे थे? इसके कई कारण थे। एक बड़ी वजह थी, अंग्रेज सरकार की वह नीति, जिसने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के युद्ध में मदद के प्रस्ताव को ठुकराकर भारत को जबर्दस्ती दूसरे विश्व युद्ध में हिस्सेदार बनाया। कांग्रेस का कहना था कि भारतीयों को सरकार में शामिल कर उन्हें जिम्मेदारी भी दी जाए। लेकिन अंग्रेजों ने इसे ठुकराकर जोर-जबर्दस्ती से काम निकालना पसंद किया।


एक और कारण था, दक्षिण-पूर्व एशिया में ब्रिटेन का रवैया। जब जापानी फौज इस इलाके के देशों पर हमला कर रही थी, तब ब्रिटिश शासक लड़ने और स्थानीय जनता की हिफाजत करने की बजाय भाग खड़े हुए थे। हिन्दुस्तानियों के मन में शंका पैदा हुई कि क्या अंग्रेज यहां भी रणछोड़ साबित तो नहीं होंगे? गांधीजी की चिंता यह भी थी कि अंग्रेजों को हराकर कहीं जापानी हुकूमत भारत पर न अपना कब्जा जमा ले। इसका वह एक ही जवाब समझते थे कि भारतीय जनता में जोश और संघर्ष की भावना जगे, इसीलिए वह आंदोलन के हक में थे। लोगों की नाराजगी भी इस आंदोलन की एक वजह थी, क्योंकि युद्ध के कारण महंगाई बढ़ गई थी और जरूरी चीजों की भारी कमी हो रही थी। कुल मिलाकर, आम जनता में सरकार के खिलाफ एक विरोधाभास था।


इस आंदोलन को शुरू करने के लिए अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बंबई (अब मुंबई) के गोवालिया टैंक मैदान में बुलाई गई। खुले अधिवेशन में नेताओं ने हजारों लोगों को संबोधित किया। यहीं पर गांधीजी ने अपना मशहूर मंत्र ‘करो या मरो' दिया। उन्होंने लोगों से कहा कि मैं अभी वायसराय से एक बार और बात करूंगा। पर अंग्रेज सरकार इंतजार के मूड में नहीं थी। 9 अगस्त, 1942 की सुबह उसने कई जगह छापा मारकर कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें गुप्त जगह पर भेज दिया। इस कार्रवाई ने लोगों में बहुत गुस्सा पैदा किया।

अगले छह-सात हफ्तों तक यह आंदोलन चला। बहुत बडे़ पैमाने पर लोगों ने इसमें हिस्सा लिया। कहीं पुलिस थानों पर हमले किए गए, तो कहीं डाकघरों, रेलवे स्टेशनों और कचहरियों पर। ब्रिटिश साम्राज्य के तमाम प्रतीकों को ढहाया जाने लगा। हालांकि बहुत सी जगहों पर लोगों ने शांतिपूर्ण सत्याग्रह किया और खुद को गिरफ्तारी के लिए पेश किया। आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेजों ने असाधारण तरीके अपनाए। फार्यंरग तो की ही गई, हवाई जहाज से भी प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई की गई। सामूहिक जुर्माना लगाया गया, गांव जलाए गए और लोगों को खूब मारा-पीटा गया। जब सरकारी अत्याचार के कारण खुला आंदोलन कमजोर हो गया, तो गुप्त रूप से यह आंदोलन चल पड़ा।

इस आंदोलन के दौरान एक नई चीज थी, ‘पैरेलल गवर्नमेंट' यानी समानांतर सरकार का उभरना। यह तीन जगहों पर हुआ- बलिया (उत्तर प्रदेश), सतारा (महाराष्ट्र) और मिदनापुर (बंगाल) में। वहां स्थानीय नेता और कार्यकर्ता मिलकर राष्ट्रीय सरकार चलाते थे, जिसमें स्कूल, कचहरी, पुस्तकालय आदि का उचित बंदोबस्त शामिल था। ब्रिटिश हुकूमत ने जेल में गांधीजी पर दबाव बनाने की बहुत कोशिशें कीं। वह चाहती थी कि आंदोलन में हो रही हिंसक घटनाओं की बापू निंदा करें। मगर गांधीजी ने कहा, ‘अंग्रेजों की भयानक हिंसा के कारण कुछ लोग हिंसक हो उठे हैं।' वह हिंसा के खिलाफ थे, पर यह भी समझते थे कि जब जबर्दस्त हिंसा का सामना करना पड़ता है, तो प्रतिहिंसा होती ही है।


‘अगस्त क्रांति' का नतीजा यह था कि दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होते-होते अंग्रेजों ने भारत छोड़ने की तैयारी शुरू कर दी। वे समझ गए कि उनके दिन अब गिनती के रह गए हैं। साल 1937 में तत्कालीन वायसराय लिनलिथगो ने दावा किया था कि हिन्दुस्तान में ब्रिटिश सरकार का परचम अगले 50 वर्षों तक लहराएगा। मगर 1942 के इस आंदोलन को देखकर अंग्रेजों को एहसास हो गया कि यदि वे ससम्मान विदाई चाहते हैं, तो उन्हें जल्द से जल्द हिन्दुस्तान को आजादी देनी होगी। वे नहीं चाहते थे कि इस तरह के किसी और आंदोलन का वे सामना करें। विश्व युद्ध का बहाना बनाकर और अपूर्व हिंसा का इस्तेमाल करके उन्होंने जैसे-तैसे इस आंदोलन को तो संभाल लिया था, मगर बुद्धिमानी इसी में थी कि विदाई की तैयारी की जाए।


ऐसा हुआ भी। शिमला कॉन्फ्रेंस, कैबिनेट मिशन, माउंटबेटन योजना, संविधान सभा- ये सब ‘भारत छोड़ो' आंदोलन के कारण ही संभव हो सके, और 15 अगस्त, 1947 को हम एक आजाद मुल्क बन गए। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)


https://www.livehindustan.com/blog/story-historian-mridula-mukherjee-article-in-hindustan-on-08-august-2112972.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close