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न्यूज क्लिपिंग्स् | खनकती चूड़ियों के बीच हरित क्रांति

खनकती चूड़ियों के बीच हरित क्रांति

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published Published on Jan 26, 2010   modified Modified on Jan 26, 2010

संझौली, रोहतास [प्रमोद टैगोर]। पहले जारी होता था सासू जी का फरमान-बहू, घर से बाहर मत निकलना, खानदान की नाक कट जाएगी। पर, अब ऐसी बात नहीं। बदलते परिवेश के साथ जमाना काफी बदला है। सासूजी खेत की मेड़ पर बच्चों की देखभाल कर रही हैं और बहुरिया खेती का काम।

रोहतास जिले के संझौली प्रखंड के मथुरापुर गांव में महिलाएं पूरी तरह आत्मनिर्भर बन गयीं हैं। इनके हाथों की खुरपी, कुदाल, टोकरी ने हरित क्रांति को बल दिया है। झुंड की झुंड महिलाएं खेतों में काम करते नजर आती हैं।

कभी घूंघट में रहने वाली बहुरिया आत्मनिर्भरता की मिसाल बन गई है। सब्जी की खेती कर औरों के लिए प्रेरणास्रोत बनीं 'गृहस्थी' का वास्तविक किरदार निभा कर घर की माली हालत को मजबूत कर रही हैं। खेतों में गूंजती चूड़ियों की खनक से राहगीरों की नजर अनायास ही उधर टिक जाती है।

मेहनत से ये महिलाएं आलू, बैंगन, गोभी, टमाटर, मिर्च, सेम जैसी सब्जियों की खेती कर रही हैं। मैट्रिक पास कुंती बताती है कि महंगाई में सिर्फ पति की कमाई से गृहस्थी की गाड़ी खींच पाना संभव नहीं है। पति-पत्नी न कमाएं तो जिंदगी से तंगहाली दूर नहीं हो सकती। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई में भी खर्च है।

सरस्वती देवी, मीना देवी, ऊषा देवी, मानती देवी, कौशल्या देवी, लीलावती समेत कई आज गृहस्थी की गाड़ी खींचने में पस्त पुरुषों का सहारा बन गई हैं। इनके हौसले को देख स्वयं सेवीसंस्था कस्तूरबा के सचिव डा. पारसनाथ इनके पथ प्रदर्शक बने। उन्हें इकट्ठा कर स्वयं सहायता समूहों का गठन किया। शुरू में आपस में थोड़ा पैसा इकट्ठा कर सब्जी की खेती शुरू की गयी। अंतत: उनकी मेहनत रंग लाई।

इन्हें एक ही बात खलती है कि अब तक उन्हें कोई सरकारी सहायता नहीं मिली। जबकि बैंकों में खाते भी खुल गये हैं। मुखिया सावित्री देवी इसे पूरी तरह महिलाओं की जीत मानती हैं। कहती है उन्हें अनुदान दिलाने की कार्यवाई की जा रही है।

डीएम अनुपम कुमार कहते हैं कि अनुदान में आनाकानी करने वाले बैंक अफसरों पर कार्रवाई होगी।


http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6134532.html
 

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