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न्यूज क्लिपिंग्स् | खादी से पलेंगे 50 हजार परिवार

खादी से पलेंगे 50 हजार परिवार

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published Published on Jun 22, 2012   modified Modified on Jun 22, 2012

झारखंड का कुचाई सिल्क व तसर आज पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो रहा है. इसकी चमक और धमक पश्चिम के देशों में भी महसूस की जा रही है. कोकून उत्पादन में झारखंड अव्वल है. आंकड़े बताते हैं कि दुनिया का 60 प्रतिशत कोकून भारत में उत्पादित होता है. और भारत का 60 प्रतिशत कोकून झारखंड में. लाह उत्पादन में भी झारखंड की स्थिति काफी अच्छी है. इसके अलावा यहां सैकड़ों प्रकार के ऐसे वन उत्पाद व अन्य चीजें हैं, जिससे ग्रामीण उद्योग को गति दी जा सकती है.

2004 में गठित झारखंड खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड इसके लिए नयी योजनाएं तैयार कर रहा है. ताकि गांव के लोगों को गांव में रोजगार मिले व उनकी आत्मनिर्भरता बढ़ सके. झारखंड खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष जयनंदू से बोर्ड की योजनाओं एवं भावी कार्यक्रमों पर हमारे संवाददाता राहुल सिंह ने उनसे खास बातचीत की. जयनंदू झारखंड खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष के साथ ही खादी एवं ग्रामीण उद्योग आयोग के सदस्य व उसके पूर्वी जोनल कमेटी के अध्यक्ष भी हैं. प्रस्तुत है बातचीत का प्रमुख अंश :
झारखंड का सिल्क व खादी दुनिया भर में लोकप्रिय हो रहा है. इसके विकास के लिए नया क्या हो रहा है?
पहले झारखंड में सिर्फ कच्च माल होता था. सूत या थोड़े-बहुत कपड़े तैयार होते थे. उसे हमने सिल्क उत्पादन व रेडिमेड कपड़ों में बदला. राज्य में फैशन डिजाइनिंग सेंटर खुलवाया. झारखंड का सिल्क आज पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो रहा है. सरकार भी इस पर गंभीर है. मुख्यमंत्री भी इसके लिए समय-समय पर निर्देश देते हैं. हम उनके मार्गदर्शन पर बेहतर करने की कोशिश करते हैं.
खरसावां में निफ्ट से व उद्योग विभाग से मिलकर केंद्र खोला. हमने उस एमओयू का 15 साल के लिए विस्तार किया. सिल्क पार्क व खादी पार्क का वहां विस्तार किया जा रहा है. प्रदेश में एक साथ 500 शर्ट प्रतिदिन बन रहे हैं. ये शर्ट आज बड़े प्रसिद्ध हो रहे हैं. इनकी अच्छी मांग है.
झारखंड में कितने ग्रामीण परिवार वस्त्र निर्माण उद्योग से जुड़े हैं. इसका वार्षिक टर्न ओवर क्या है?
कोकुन उत्पादन से बड़ी संख्या में राज्य भर में लोग जुड़े हैं. सूत कताई करने वाले भी अच्छी संख्या में हैं. रेशम निदेशालय भी सूत का काम कर रहा है. रेडिमेड गारमेंट निर्माण कार्य में भी लोग काम कर रहे हैं. कोकुन से लेकर सूत निर्माण व उसके विपणन में कम से कम 50 हजार लोग पूरे राज्य में जुड़े हैं. यह संख्या किसानों की संख्या छोड़ कर है.
आप लोग एसी आउटलेट (वातानुकूलित दुकानें) खोलने की योजना पर काम कर रहे हैं. दूसरे राज्यों में भी केंद्र खोला गया है. क्या विदेशों में भी इस तरह के केंद्र खोलने की योजना है?
विदेश में अभी हमने अपने आउटलेट नहीं खोले हैं. पर इस पर विचार किया जा सकता है. देश में कई जगहों पर हमने एसी आउटलेट खोला है. जमशेदपुर में हमारा आउटलेट सबसे बड़ा है. दिल्ली में कनाट प्लेस पर रीगल बिल्डिंग में स्थित खादी आयोग के आउटलेट के बाद यह अपनी तरह का देश का दूसरा सबसे बड़ा आउटलेट है. इसको लोग पसंद कर रहे हैं. राजधानी रांची में भी हमारा एसी आउटलेट है.
ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम योजना की झारखंड में क्या स्थिति है? कितने लोग इससे जुड़े हैं और आगे की क्या योजना है?
जारी वर्ष में इस योजना के तहत हमलोगों ने 68 करोड़ रुपये सब्सिडी देने का लक्ष्य रखा है. राज्य में 2900 छोटे-बड़े उद्योग लगाने का लक्ष्य है. इससे 50 हजार लोगों को रोजगार मिलेगा. पिछले वित्तीय वर्ष में हमने 38 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी, जबकि 2300 औद्योगिक यूनिटें लगीं. केंद्र ने इस उपलब्धि को देखते हुए इस साल का लक्ष्य दोगुणा कर दिया. इस विषय पर हमलोगों ने कार्यशाला भी आयोजित की. हमने दिसंबर तक दिये गये लक्ष्य को पूरा करने का निर्णय लिया है.
आपकी एक टिप्पणी है कि खादी एक मात्र तरीका है भारत के गांवों को आत्मनिर्भर बनाने का. झारखंड में हम इस पर कहां सफल हो पा रहे हैं?
गांधीजी के सिद्धांत के अनुसार ही विकास हो सकता है. इसके लिए हम संस्थाओं को सक्रिय कर रहे हैं. मैं खुद नियमित रूप से गांव जाता हूं और स्थिति का आकलन करता हूं. बढ़ईगिरी, मधुमक्खी पालन, बांस का काम जैसे रोजगार माध्यमों का हम विस्तार करने की कोशिश कर रहे हैं. यह वर्ष हमलोग रोजगार वर्ष के रूप में मना रहे हैं. कोल्हान, उत्तरी छोटानागपुर, संताल परगणना में सिल्क, मधुमक्खी पालन व एक अन्य उद्योग का चयन कर उसके विस्तार के लिए काम किया जायेगा.
झारखंड में लाह की खेती भी बड़ी मात्र में होती है. इसके लिए क्या योजना है?
लाह पर आधारित उद्योगों के विस्तार के लिए प्रोजेक्ट पर हम मंथन कर रहे हैं. विशेषज्ञों के साथ विस्तार से चर्चा हो रही है. हमारी योजना है कि हम सिल्क, लाह, मधुमक्खी पालन, हर्बल उत्पाद को फोकस कर आगे बढ़ें. स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) का सहारा लेकर हम उन क्षेत्रों में जायेंगे, जहां कोई नहीं गया. हमारी कोशिश है कि गांधी जी का चरखा गांव-गांव तक पहुंचे. राज्य व केंद्र दोनों स्तर पर मैं जिम्मेवारियां निभा रहा हूं. इसलिए समन्वय की परेशानी नहीं है. आने वाले दिनों में इसके बेहतर नतीजे दिखेंगे.
खादी की बात करते समय कई बार ग्रामोद्योग पीछे छूट जाता है. जबकि यह एक विस्तृत क्षेत्र है. खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड उसके लिए क्या कर रहा है?
ग्रामीण उद्योगों को विस्तार देने के लिए हम हर कोशिश कर रहे हैं. करंज का शहद दूसरी जगह शायद ही बनता हो, पर हमारे यहां तैयार होता है. 250 उद्यमियों को हम मधुमक्खी पालन के लिए मदद दे रहे हैं. अभी हम जिले स्तर पर फेडरेशन बना रहे हैं, फिर राज्य स्तर पर बनायेंगे. मार्केटिंग, पैकेजिंग, ब्रांडिंग व फिल्टर पर काम हो रहा है. हम हर्बल प्रोडक्ट के लिए भी काम करेंगे. देश के विशेषज्ञों को लाकर इस काम में मदद लेंगे. उत्तराखंड व जम्मू कश्मीर में हर्बल प्रोडक्ट पर जिस तरह काम हो रहा है, उसी तरह हम भी काम करेंगे.

http://www.prabhatkhabar.com/node/172763?page=show


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