Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | खूबसूरत दिल्ली की बदरंग हकीकत

खूबसूरत दिल्ली की बदरंग हकीकत

Share this article Share this article
published Published on Mar 23, 2010   modified Modified on Mar 23, 2010

नई दिल्ली [श्रीपाल जैन]। अक्टूबर 2010 में कामनवेल्थ गेम्स के आयोजन की कामयाबी के लिए दिल्ली और केंद्र सरकार सिंगापुर और पेरिस की तर्ज पर दिल्ली को विश्वस्तरीय शहर बनाने में जुटी हुई हैं। जगह-जगह फ्लाई ओवर, सब-वे, फुट ब्रिज, जल निकासी लाइन, पार्किग स्थल, मेट्रो लाइन, सड़कों को चौड़ा एवं बेहतर बनाने के कार्य युद्धस्तर पर चल रहे हैं।

इससे दिल्ली के आम बाशिंदों को बेहतर बुनियादी सुविधाएं मिलने पर भला किसी को क्या ऐतराज हो सकता है, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि इस सबकी अत्यंत महंगी कीमत आम जनता को चुकानी पड़ रही है। न सिर्फ बस किराए और पानी के बिल बहुत महंगे हो गए, बल्कि साधारण मकानों [चाहे डीडीए या अनियमित कालोनियां हों] की कीमतें भी आसमान छू गई हैं। आते-जाते वाहनों से सड़कें इतनी व्यस्त हो गई हैं कि अनेक पैदल यात्री रोजाना दुर्घटना के शिकार होते हैं।

कहने का मतलब यह है कि सुविचारित योजनाओं के अभाव में आम नागरिक बेहाल है, जबकि मध्यवर्ग, उच्च मध्यवर्ग, उच्चतर वर्ग, रीयल एस्टेट के मालिक-कारोबारी और उद्यमी मोटे फायदे की मलाई पा रहे हैं।

बढ़ती आबादी के मद्देनजर दिल्ली के विकास में गति लाना समय की महत्वपूर्ण जरूरत है, लेकिन यह काम बरसों पहले शुरू होना चाहिए था। इसमें संदेह नहीं कि देर से किए जा रहे विकास कार्यो से सौंदर्यबोध की दृष्टि से शानदार दिल्ली का निर्माण होगा, बुनियादी सुविधाओं का विस्तार होगा, यातायात में अनुशासन संभव होगा। इस बूते हम दिल्ली में कामनवेल्थ गेम्स का आयोजन सफलतापूर्वक कर सकते हैं। दुनिया के सामने हम गर्व से साबित कर सकेंगे कि भारत ने इस महत्वपूर्ण गेम्स का आयोजन बेहद सफलतापूर्वक किया। इसके आर्थिक लाभ हमें तुरंत और भविष्य में भी मिलेंगे, लेकिन लेट-लतीफी और हड़बड़ी में किए गए कार्यो से गरीब और आमलोगों की आजीविका किस कदर बर्बाद हुई है, इसकी कल्पना भर की जा सकती है।

क्या हमारे विकास एजेंडे में सिर्फ गेम्स का सफल आयोजन है या आम नागरिक का हित सर्वोपरि है? इस बहस से हम जी चुराते रहे हैं। सारा जोर गेम्स के लिए विकास कार्यो को जल्दी से जल्दी पूरा करने और सुरक्षा प्रबंधों की बहसों की तरफ मोड़ा गया है।

पहले परिवहन के उदाहरण को ही लें। देश के शेष तीन महानगरों- मुंबई, चेन्नई और कोलकाता में कुल संख्या में जितने वाहन हैं, उससे कहीं अधिक वाहन अकेले दिल्ली में हैं। इनके पार्किग स्थल और सड़कों पर आवागमन ही शहर का बहुत बड़ा हिस्सा समेट लेता है और पैदल यात्रियों के लिए कितनी कम जगह बचती है, यह कल्पना करना मुश्किल नहीं है। बरसों से सार्वजनिक परिवहन की दिल्ली में बदहाली किसी से छिपी नहीं है।

दूसरा सवाल यह है कि जब बसों-कारों-ट्रकों के लिए सड़कों-फ्लाई ओवरों का निर्माण हो रहा है तो पैदल-पथ और साइकिल-पथ क्यों नहीं बनाए गए, जबकि उनसे ऊर्जा की बचत होती और पर्यावरण संरक्षण भी होता है? विशाल पैमाने पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के खतरे के मद्देनजर दुनिया के कई देश ऊर्जा संरक्षण पर जोर दे रहे हैं, जबकि भारत विपरीत दिशा में जाकर जाने-अनजाने ऊर्जा उपभोग में वृद्धि के साथ-साथ प्रदूषण बढ़ाता जा रहा है।

दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के शहरों में बड़ी मात्रा में प्रदूषण फैलाने वाले कौन लोग हैं, यह भी गौर करने लायक है। कुछ साल पहले आवासीय कालोनियों में चलने वाली फैक्ट्रियों को इस आधार पर शहर के बाहर ले जाया गया कि वे प्रदूषण फैलाती हैं।

यमुना पुश्ता पर बसे लगभग 40,000 परिवारों को भी कुछ समय पहले सात दिन के भीतर इस तर्क के आधार पर बेदखल किया गया कि सार्वजनिक भूमि पर उनके अतिक्रमण से यमुना में बड़े पैमाने पर गंदगी फैली है, लेकिन यह कम आश्चर्यजनक नहीं है कि प्रदूषण में इन परिवारों का हिस्सा महज 20-25 फीसदी रहा होगा, जबकि दिल्ली के पाश व डीडीए मकानों की सीवेज लाइन की गंदगी का हिस्सा 50 फीसदी से भी अधिक रहा है। यमुना पुश्ता से हटाए गए अधिकांश लोगों ने न सिर्फ अपने सिर से छत, बल्कि आजीविका भी गंवाई। इनमें से बहुत कम परिवारों को वैकल्पिक जगहों पर बसाया गया, क्योंकि कई साल पहले के सर्वेक्षण में उनका नाम दर्ज नहीं था। कई के पास राशन कार्ड नहीं थे।

आवासीय कालोनियों में चलने वाले उद्योगों का भारी खामियाजा आजीविका से हाथ धोने के रूप में उनके मजदूरों को भुगतना पड़ा, जबकि लघु फैक्टरी मालिकों और रीयल एस्टेट के कारोबारियों ने वहां ऊंची इमारतें खड़ी कर खूब चांदी काटी। आबादी के बढ़ते दबाव के कारण दिल्ली से बाहर निकटवर्ती नोएडा, गुड़गांव, फरीदाबाद के क्षेत्रों में आवास की भारी मांग पैदा हुई। इससे इनमें जमीन-जायदाद के दाम बेहिसाब ढंग से बढ़े और इसका मोटा फायदा भी रीयल एस्टेट के कारोबारियों को हुआ।

उच्च वर्ग, उच्च मध्यवर्ग और मध्यवर्ग के लोगों की क्रय शक्ति होने से वे महंगी जमीन-जायदाद खरीदने-रहने में समर्थ हैं, सरकारी बसों की व्यवस्था न होने पर वे अपने निजी वाहनों से दूर-दराज तक आवागमन कर सकते हैं, लेकिन नीति निर्धारकों को यह सोचने की कतई फुरसत नहीं कि आवासीय दृष्टि से विकसित हो रहे इन क्षेत्रों में गरीब या आमलोग कहां और किस हाल में रह पाएंगे? क्या वे बसों का बढ़ा किराया, पानी-बिजली के महंगे बिल और आटा-सब्जियों-चीनी के आसमान छूते दाम, महंगा मकान किराया, बच्चों के स्कूलों की मोटी फीस चुकाने में सक्षम हैं?

आखिर आम दिल्लीवासी या राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के निवासी इस कमरतोड़ महंगाई में अपने परिवार का गुजारा कैसे चला सकता है?

क्या सरकार का कोई दायित्व नहीं कि वह गरीब या आमलोगों के कल्याण के लिए फौरी कदम उठाए? सरकार के विभिन्न खर्चीले अभियानों और लंबे-चौड़े दावों के बावजूद अभी तक न तो सभी लोगों के राशन कार्ड बने हैं, न ही मतदाता पहचान पत्र, न तो उनके लिए पर्याप्त स्कूल हैं, न ही चिकित्सा और परिवहन सुविधाएं। सरकार की सारी ऊर्जा दिल्ली को चमकाने के लिए रंगरोगन में लगी है, जबकि प्रत्येक नागरिक चाहे वह अमीर हो या गरीब, उसे अंदरूनी रूप से समर्थ बनाया जाना चाहिए।

यह तभी मुमकिन है, जब समावेशी विकास को तरजीह दी जाए। दिल्ली में आम लोगों के लिए सस्ती चिकित्सा, शिक्षा और परिवहन सुविधाओं की अनदेखी यही प्रकट करती है कि देर-सवेर इस शहर में गरीबों का जीवन दुश्वार हो जाएगा। दिल्ली सरकार हो या केंद्र सरकार, उनके विकास एजेंडे और नीतियों की घोषणा में आम जनता को तवज्जो देने की लंबी-चौड़ी घोषणाएं तो बहुत की जाती हैं, लेकिन उन पर मुस्तैदी से अमल देखने को नहीं मिलता। क्या यह राजनीतिक नेतृत्व की इच्छाशक्ति की कमजोरी जाहिर नहीं करता?

वाकई दिल्ली है सबसे खास!

'दिल्ली रहने के लिए लिहाज से देशभर में सबसे बढि़या शहर है। किसी भी दूसरे शहर के मुकाबले यहा शिक्षा सुविधाएं बेहतर हैं। लोगों की जान-माल की हिफाजत का इंतजाम यहा देशभर में सबसे अच्छा है और आथिर्क वातावरण भी अव्वल है।' यह हम नहीं कह रहे, बल्कि भारतीय उद्योग परिसंघ यानी सीआईआई और इंस्टीट्यूट आफ काम्पिटेटिवनेस की ओर से तैयार एक सूची में बताया गया है। पर दिल्ली से वाकिफ लोग दिल्ली हकीकत बखूबी जानते होंगे।

बहरहाल, यह सूची देश के बेहतर शहरों की है और इसे नाम दिया गया है इंडेक्स 2010। एक दिलचस्प तथ्य यह है कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, कई अन्य सरकारी अस्पतालों और निजी अस्पतालों से लैस दिल्ली स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में फिसड्डी साबित हुई है।

देश के बेहतरीन शहरों की इस सूची में स्टील सिटी जमशेदपुर सबसे निचले पायदान पर है। 37 शहरों की इस सूची में दिल्ली के बाद देश की व्यावसायिक राजधानी मुंबई दूसरे नंबर पर है। इस सूची को रहन-सहन के स्तर, सामाजिक-सास्कृतिक माहौल, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं जैसे मानकों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है।

दिल्ली को शिक्षा सुविधाओं, सुरक्षा, आर्थिक वातावरण जैसे मानकों के आधार पर पहले नंबर पर रखा गया है। आवासीय विकल्प, सामाजिक-सास्कृतिक माहौल से जुड़े मानकों पर इसे दूसरा पायदान हासिल हुआ है। हालाकि, स्वास्थ्य से जुड़ी सुविधाओं के मामले में दिल्ली फिसड्डी साबित हुई है और इसे इस मामले में 17वा पायदान मिला है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि रहने के लिहाज से दिल्ली ने मुंबई, चेन्नई, बेंगलूर, कोलकाता, हैदराबाद, अहमदाबाद, पुणे और गुड़गाव को पीछे छोड़ा है। इन शहरों को सूची में दूसरे से लेकर नौवा स्थान हासिल हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि फरीदाबाद, लुधियाना, पटना, विशाखापत्तनम और जमशेदपुर को इस सूची में अंतिम छह स्थान हासिल हुए हैं।

सेंटर फार मानिटरिंग आफ इंडियन इकनामी जैसे संस्थान के आकड़ों का इस्तेमाल करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि इस लिस्ट में चंडीगढ़ को 14वा स्थान मिलना वाकई चौंकाने वाला है। इस सुंदर शहर को रहने के लिए और ज्यादा बेहतर बनाने की जरूरत है। सामाजिक, सास्कृतिक और राजनीतिक माहौल के पैमाने पर मुंबई को भौगोलिक स्थिति का फायदा मिला है और यह शहर इस मानक पर पहले नंबर पर है। हालाकि इसे दिल्ली से कड़ी चुनौती मिली है।

यहां दिलचस्प यह भी है कि इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली देशभर में सबसे सुरक्षित शहर है, जबकि यों ही दिल्ली को अपराध की भी राजधानी नहीं कहा जाता रहा है। हालाकि गुड़गाव और नोएडा के आकड़े इस मामले में सबसे खराब हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, रहने के लिहाज से बेहतर शहर वह है, जहा शारीरिक, सामाजिक और मानसिक लिहाज से बेहतर सुविधाएं हों। साथ ही उस शहर में किसी व्यक्ति के विकास के लिए तमाम साधन उपलब्ध हों।


http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6279085/
 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close