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न्यूज क्लिपिंग्स् | गांवों में किफायती व गुणवत्तापूर्ण प्री-स्कूलिंग

गांवों में किफायती व गुणवत्तापूर्ण प्री-स्कूलिंग

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published Published on May 5, 2016   modified Modified on May 5, 2016
यह बात वर्ष 2002 की है़ आइआइटी मद्रास से इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर इनफोसिस में नौकरी कर रहे उमेश मल्होत्रा टीवी पर एक डॉक्यूमेंट्री देख रहे थे, जो ग्रामीण परिवेश में रहनेवाले बच्चों की शिक्षा से जुड़ा था़ तब उनके मन में एक विचार आया कि क्यों न ऐसे क्षेत्रों में लाइब्रेरी की शुरुआत की जाये, जिनमें बच्चे अपनी मर्जी से किताबें लेकर उन्हें पढ़ सकें.

इस योजना पर काम करते हुए उमेश ने अपने सहकर्मी राजीव कुछाल से कुछ रुपये उधार लेकर वर्ष 2003 में कर्नाटक के कडालुर में बच्चों के लिए पहली लाभकारी लाइब्रेरी की शुरुअात की़ धीरे-धीरे कर्नाटक के अन्य गांवों में भी इन लाइब्रेरीज का विस्तार होता गया़ थोड़े समय बाद उमेश ने गौर किया कि गांवों में बच्चों के लिए पढ़ाई की शुरुआत करने की मुफीद जगह, जिन्हें हम शहरों में प्री-स्कूल्स कहते हैं, प्राय: नहीं मिल पाती़ यूं तो सरकार ने आंगनबाड़ी के रूप में इसकी व्यवस्था कर रखी है, लेकिन उचित प्रबंधन के अभाव में इन जगहों पर बच्चों पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता, जितना उन्हें मिलना चाहिए़

ऐसे हुई शुरुआत : उमेश बताते हैं कि अगर बच्चे को शुरुआत में ही सीखने और पढ़ने का सही माहौल मिले, तो उसके अंदर शिक्षा के प्रति ललक जगती है और वह आनेवाले दिनों में चीजों को अच्छी तरह पकड़ता है़

फिर क्या था! उमेश ने गांवों में प्री-स्कूल्स चलाने के लिए थोड़ा रिसर्च किया, थोड़ी योजना बनायी और हिप्पोकैंपस लर्निंग सेंटर्स (एचएलसी) के नाम से अपना एक उद्यम शुरू किया़ बात पूंजी की आयी, तो उन्होंने एंजेल इनवेस्टर के रूप में फिर से राजीव कुछाल को ही चुना़ और वर्ष 2010 में एचएलसी ने अपना पहला प्री-स्कूल शुरू किया़ उमेश कर्नाटक के रहनेवाले हैं और इसीलिए उन्होंने इसकी शुरुआत वहीं से की़ आज कर्नाटक में हिप्पोकैंपस के 250 से ज्यादा सेंटर्स हैं. उमेश का दावा है कि उनका प्री-स्कूलिंग नेटवर्क राज्य में सबसे बड़ा है और वह ग्रामीण आबादी को लक्षित कर रहा है़ वह कहते हैं कि ये केंद्र शिक्षक के रूप में स्थानीय महिलाओं को जोड़ते हैं, जिससे स्स्थानीय समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित होती है़ कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी की जिम्मेदारी निभा रहे उमेश कहते हैं, एचएलसी प्रतिष्ठान और सामग्री की लागत कम रखता है, जिससे हमारी सेवाएं किफायती रहती हैं. हम उन ज्यादातर ग्रामीण इलाकों तक पहुंचते हैं, जहां ऐसी सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं.

आंकड़ों की नजर में

एचएलसी हर बच्चे से 4000 से 7000 रुपये सालाना लेती है़ पार्टनर स्कूल फीस चुका कर प्रोग्राम खरीदते हैं. हर सेंटर पर निवेश लागत 80,000 से एक लाख रुपये के बीच है और परिचालन लागत 80,000 रुपये प्रतिवर्ष है. एचएलसी के 300 प्री-स्कूल्स में छात्रों की संख्या लगभग 11,000 और शिक्षकों की संख्या 600 से अधिक हो गयी है़ हाल में इसने महाराष्ट्र में केंद्र खोले, जिनमें नागपुर में आठ पार्टनर स्कूल और सांगली में पांच एचएलसी स्कूल शामिल हैं. एचएलसी फ्रेंचाइजी मॉडल और स्कूलों के साथ साझेदारी के मॉडलों पर काम करती है. संस्थान इन प्री-स्कूलों, रुचि रखने वाले लोगों और स्वयंसेवी समूहों को संस्थान के अंदर तैयार की गयी पठन सामग्री और प्रशिक्षण मुहैया कराता है. यह 50 निजी स्कूलों और 50 आंगनबाड़ी से करार कर चुका है़

जुड़े नामी निवेशक

बात करें पूंजी की, तो हिप्पोकैंपस दो चरणों में 21 करोड़ रुपये जुटा चुकी है़ इसके निवेशकों में एशियन डेवलपमेंट बैंक, यूनाइटेड सीड बैंक और एक्यूमन जैसे नाम शामिल हैं. एशियन डेवलपमेंट बैंक के निवेश विशेषज्ञ अनिरुद्ध पाटिल के अनुसार, उमेश ने ऐसे कारोबार में निवेश किया है, जिसके विस्तार की संभावनाएं हैं और जो फायदेमंद है़ साथ ही यह अहम सामाजिक जरूरत भी पूरी कर रहा है. यह एक स्केलिंग मॉडल है, जो स्थानीय समुदायों और उनकी जरूरतों को पूरा करता है, नये शिक्षक तैयार करता है और असाधारण शिक्षा नतीजे देता है और अपने कार्यक्रमों की देश भर में मांग पैदा कर रहा है.

शहरी प्री-स्कूल्स से अलग

अामतौर पर प्रचलित प्री-स्कूल संचालित करनेवाली कंपनियों से एचएलसी को जो चीज अलग करती है, वह है ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी पहुंच़ ये कंपनियां केवल शहरी क्षेत्रों तक सीमित हैं. इसके अलावा इन स्कूलों में केवल अंगरेजी माध्यम में शिक्षा दी जाती है, लेकिन एचएलसी दो भाषाओं में प्रशिक्षण मुहैया कराती है़ उमेश कहते हैं कि हम बच्चों को अंगरेजी पढ़ाते हैं, लेकिन हमारी कक्षाएं मुख्य रूप से स्थानीय भाषाओं में चलती हैं. ताकि बच्चे क्या सीख रहे हैं, उस पर उनके अभिभावक न सिर्फ ध्यान रख सकें, बल्कि उसमें शामिल भी हो सकें.

यह है कार्यप्रणाली

यहां यह जानना जरूरी है कि प्री-स्कूलिंग की जरूरतें पूरी करने के साथ ही यह महिलाओं के लिए भी रोजगार सृजन करती है, जिन्हें 15 दिन का प्रशिक्षण दिया जाता है. उमेश कहते हैं, मॉन्टेसरी ट्रेनिंग के छह महीनों के दौरान सिखायी जाने वाली चीजें और दो साल के अनुभव को हमारे यहां दो-सप्ताह के पाठ्यक्रम में समेट दिया जाता है. यह मॉडल शिक्षकों को प्री-सर्विस और इन-सर्विस ट्रेनिंग मुहैया कराने के लिए तैयार किया गया है.

एचएलसी ने मूल्यांकन की एक पद्धति विकसित की है, जिसे स्टेप नाम दिया गया है. इसके जरिये बच्चों को उनके स्तर - स्टार्टर, टेंटेटिव, एक्सीलेंट और पार-एक्सीलेंट लेवल्स के मुताबिक रेटिंग दी जाती है. हर महीने इनके विश्लेषण से कमजोर पक्ष का पता चलता है, जिसके बाद इन्हें शिक्षक हल करते हैं.


http://www.prabhatkhabar.com/news/vishesh-aalekh/story/794222.html


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