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न्यूज क्लिपिंग्स् | चमक-दमक के पीछे छिपी कालिख को पहचानें - धर्मेंद्रपाल सिंह

चमक-दमक के पीछे छिपी कालिख को पहचानें - धर्मेंद्रपाल सिंह

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published Published on Jan 19, 2016   modified Modified on Jan 19, 2016
आम धारणा यह है कि देश के बाहर जाने वाले काले धन का मुख्य स्रोत नेताओं या बड़े सरकारी अफसरों को मिलने वाली रिश्वत, घरेलू व्यापारियों द्वारा इनवॉइस में हेराफेरी से होने वाली दो नंबर की कमाई या हवाला कारोबार से उपजा पैसा है। लेकिन काले धन पर ग्लोबल फाइनेंशियल इंटिग्रिटी (जीएफई) की ताजा रिपोर्ट पढ़ने के बाद यह धारणा पुर्जा-पुर्जा होकर बिखर जाती है। जीएफई की हाल माह में जारी रिपोर्ट इलिसिट फाइनेंशियल फ्लो फ्रॉम डेवलपिंग कन्ट्रीज : 2004-2013 के अनुसार उक्त अवधि में भारत से कुल 510 अरब डॉलर (करीब 400 खरब रुपए) की काली कमाई बाहर गई और यह सारा धन बहुराष्ट्रीय कंपनियों (एमएनसी) का है। मतलब यह कि हमारे यहां धंधा कर रही विदेशी कंपनियां हर साल गैरकानूनन 40 खरब रुपए विदेशी बैंकों में जमा करती हैं। उक्त 510 अरब डॉलर में एक इकन्नी भी नेताओं, सरकारी अफसरों, घरेलू व्यापारियों या हवाला कारोबारियों की नहीं है। हां, यदि जीएफई के घोषित काले धन में उनका नंबर दो का पैसा जोड़ दिया जाए तो आंकड़ा और ऊंचा हो जाएगा।

सच यह है कि हर साल खातों में हेरा-फेरी कर एमएनसी भारी कर चोरी करती हैं और फिर यह पैसा बाहर भेज देती हैं। काले धन का मुख्य स्रोत यही पैसा है। विदेशी बैंकों में जमा कुल काले धन में एमएनसी की हिस्सेदारी 83.4 फीसदी है। भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2000 से 2015 के बीच 15 साल में देश को 399.2 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) मिला, जबकि इस अवधि के केवल दस वर्ष (2004-13) में काले धन के रूप में 510 अरब डॉलर बाहर चले गए। इस प्रकार महज दस बरस के भीतर भारत ने 112.8 अरब डॉलर का घाटा खाया। यह आंकड़ा ही एफडीआई की चमक के पीछे छिपी कालिख की पोल खोलने को काफी है।

अधिकांश एमएनसी ने ऐसा मकड़जाल बुन रखा है, जिसमें फंसकर विकासशील और गरीब देश छटपटा रहे हैं। माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, कोका कोला, पेप्सी जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की सैकड़ों सहायक कंपनियां हैं, जिनका नेटवर्क पूरी दुनिया में फैला है। कागजों पर सारी सहायक कंपनियां स्वतंत्र हैं, किंतु वास्तव में उनका नियंत्रण मूल कंपनी के हाथों में होता है। सहायक कंपनियों के जरिए मूल कंपनी ट्रांसफर प्राइसिंग का खेल खेलती है और टैक्स चोरी कर अधिक से अधिक मुनाफा बनाती है। माइक्रोसॉफ्ट या गूगल का उदाहरण लें, जो सेवा क्षेत्र में सक्रिय हैं। वे अपनी सहायक कंपनियों से लाइसेंस फीस, रॉयल्टी और ब्याज के नाम पर मोटा पैसा वसूलती हैं, जिससे उनका खर्चा बढ़ जाता है और मुनाफा घट जाता है। चूंकि मूल कंपनी का मुख्यालय विदेश में होता है, इसलिए पैसा बाहर चला जाता है। कई हाथों से घूमकर यह धन अंतत: मॉरिशस जैसे टैक्स हैवन देश में पहुंचता है। टैक्स चोरी के लिए गूगल और माइक्रोसॉफ्ट ने बरमूडा तथा पेप्सी ने मॉरिशस का सहारा ले रखा है। यह खेल फॉर्च्यून-500 में शामिल हर कंपनी खेल रही है। मजे की बात है कि यह सब कानून की कमजोरी का लाभ उठाकर किया जाता है।

आज पूरी दुनिया के कानून उन देशों और लोगों के अनुकूल गढ़े गए हैं, जिनके पास दौलत है। विश्व व्यापार पर एमएनसी का कब्जा है। मजे की बात है कि उन्होंने तिजारत की आड़ में टैक्स चोरी के एक से बढ़कर एक नायाब तरीके खोज रखे हैं। हर एमएनसी की सैकड़ों सहायक कंपनियां आपस में जमकर व्यापार करती हैं। दुनिया के कुल व्यापार में उनके इस आपसी लेनदेन की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत से भी अधिक है। इसका अर्थ यह भी है कि विश्व व्यापार में महज 40 फीसदी काम ही खरा है, बाकी 60 प्रतिशत तो कर चोरी और कालाधन कमाने की नीयत से हो रहा है।

इस कुचक्र की चपेट में आने से यूरोपियन यूनियन के राष्ट्रों को प्रति वर्ष करीब 11.1 खरब यूरो (806 खरब रुपए) की चोट लग रही है। अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के विकासशील देशों को होने वाला घाटा तो और अधिक है। टैक्स जस्टिस नेटवर्क (टीजेएस) ने निम्न और मध्य आय वर्ग के 139 देशों का अध्ययन किया है, जिसमें चौकाने वाले तथ्य सामने आए। वर्ष 1970 और 2010 की बीच की अवधि के दौरान विदेशी निवेश करने वाली बड़ी कंपनियों ने जिस देश में जितना धन लगाया, उससे कहीं अधिक कमाकर बाहर भेजा। 2010 में इन राष्ट्रों के मुट्ठीभर अभिजात्य वर्ग के पास 70.3 से लेकर 90.3 खरब डॉलर (4682-6014 खरब रुपए) की अघोषित दौलत थी, जबकि कर्ज की रकम 40.8 खरब डॉलर (2717 खरब रुपए) थी। अंगुलियों पर गिने जाने वाले धन्ना सेठों के पास पूरे देश पर चढ़े कर्जे से अधिक तो काला धन ही था।

फिलहाल दुनिया में दो तरह के कर कानून मॉडल हैं। पहले मॉडल का हिमायती यूएन है, जो स्रोत देश में ही आय पर कर लगने का हिमायती है। यह मॉडल विकासशील देशों के अनुकूल माना जाता है। दूसरा मॉडल आर्गेनाइजेशन फॉर इकोनोमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) का है, जिसमें किसी देश के नागरिक को तो दुनिया के किसी भी कोने से हुई आय पर कर चुकाना पड़ता है, लेकिन विदेशी नागरिक को केवल घरेलू आय पर टैक्स चुकाना पड़ता है। यह मॉडल एमएनसी को सुहाता है, क्योंकि उनके मालिक जिस देश में रहते हैं, अकसर उस देश के नागरिक नहीं होते, इस कारण टैक्स से बच जाते हैं। उनकी आय का बड़ा हिस्सा अन्य देशों से आता है। वहां भी उन्हें एनआरआई का दर्जा प्राप्त होता है, इस वजह से वे कर से बच जाते हैं। डबल टैक्सेशन अवॉइडेंस एग्रीमेंट में मौजूद विरोधाभासों का लाभ उठाकर ही भारत में वोडाफोन और नोकिया ने भारी कर चोरी की है।

-लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं।

 


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