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न्यूज क्लिपिंग्स् | चौधराहट के जुगाड़ में बदलते लोग--- विजय विद्रोही

चौधराहट के जुगाड़ में बदलते लोग--- विजय विद्रोही

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published Published on Jan 4, 2016   modified Modified on Jan 4, 2016

हरियाणा में पंचायत चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। इस उम्मीद में उम्मीदवारों की न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता तय की गई है कि इससे पढे़-लिखे लोग ही चुनाव में उतरेंगे और जन-प्रतिनिधि बनेंगे। इस नियम ने सरपंची की चाह रखने वाले कई लोगों के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है। हर जगह तरह-तरह से इसके तोड़ निकाले जा रहे हैं। इसके चलते समाज में ऐसे बदलाव होते भी दिख रहे हैं, जिनके बारे में पहले सोचा ही नहीं गया था। सबसे दिलचस्प मामला है मेवात क्षेत्र में पुन्हाना ब्लॉक के सिंगार गांव का। अभी तक यहां केसरपंच थे हनीफ मोहम्मद। इस बार उनकी सीट महिलाओं के लिए आरक्षित हो गई। पत्नी जाहिरा अनपढ़ हैं और घर में कोई 21 साल की आठवीं पास लड़की भी नहीं, जिसे सरपंच का चुनाव लड़वाया जा सके। जाहिरा बताती हैं कि उनसे पति का दुख देखा नहीं गया। चौधराहट जाती रही, तो क्या इज्जत रह जाएगी गांव में? लिहाजा जाहिरा ने ही सुझाव दिया और हनीफ मोहम्मद ने दूसरा निकाह कर लिया। दूसरी पत्नी साजिदा आठवीं पास हैं। हैरानी की बात यह है कि जाहिरा ही अपने साथ अपनी सौतन साजिदा को सरपंच चुनाव का पर्चा भरवाने लेकर गईं। हनीफ का कहना है कि वह ऐसा नहीं करते, तो गांव का विकास रुक जाता। गांव के लोगों का भी आमतौर पर कहना है कि हनीफ ने सरपंच के रूप में अच्छा काम किया है और अब मजबूरी में उन्हें दूसरी शादी करनी पड़ रही है, तो इसमें खराबी नहीं देखी जानी चाहिए।

 

मेवात के ही अकलीमपुर गांव के पूर्व सरपंच हैं दीन मोहम्मद। 51 साल के दीन के आठ बच्चे हैं। उनके गांव की भी सरपंच की सीट महिला के लिए आरक्षित हो गई। दीन मोहम्मद की पत्नी महरम और मां फजरी, दोनों ही अनपढ़ हैं, लिहाजा दोनों ही चुनाव लड़ नहीं सकतीं। दीन मोहम्मद ने अपने बेटे के लिए एक आठवीं पास लड़की की तलाश की और उसकी शादी कर दी। इरादा यही था कि पुत्रवधू को सरपंच के लिए लड़वाया जाए। लेकिन एक चूक हो गई। पुत्रवधू 20 साल की निकली, जबकि सरपंच के लिए 21 साल का होना जरूरी है। इस पर खुद दीन मोहम्मद ने 22 साल की आठवीं पास शाजिया से दूसरी शादी कर ली है। शाजिया अब अकलीमपुर से सरपंच का चुनाव लड़ रही हैं। घर में दीन मोहम्मद की मां और पहली पत्नी, दोनों इसके पक्ष में नहीं थे, लेकिन अपनी चौधराहट बचाने की दीन मोहम्मद की जिद के आगे किसी की नहीं चली।

 

पुन्हाना के समाज सेवक और पत्रकार यूनुस अलवी बताते हैं- अकेले मेवात में 56 शादियां पिछले चार महीनों में इसी तरह की हुई हैं। इनमें 12 शादियां तो हनीफ मोहम्मद जैसी हैं, जहां दूसरी शादी खुद की गई। बाकी 42 मामले ऐसे हैं, जहां पूर्व सरपंचों ने अपनी सरपंची बनाए रखने के लिए अपने नाबालिग या बालिग बेटों की शादियां आठवीं पास लड़की से कराई। यहां के गांवों में एक बार सरपंच बनने के बाद उस पद से खुद को आदमी जिंदगी भर मुक्त नहीं कर पाता। अपनी दबंगता और चौधराहट को बनाए-बचाए रखने के लिए हर मुमकिन कोशिश की जाती है। पैसा भी पानी की तरह बहाया जाता है। आजकल पंचायतों में विकास के लिए पैसा बहुत आने लगा है।कुछ बड़ी पंचायतों का सालाना बजट तो करोड़ रुपये के भी पार होता है। मेवात में दहेज का चलन बहुत है। कहा जाता है कि लड़का दसवीं पास है, तो मोटरसाइकिल और बीए पास होने पर कार मिलना तय है। लेकिन पंचायत चुनाव के सख्त नियमों ने पढ़ी-लिखी बहुओं की मांग बढ़ा दी है। नूंह जिले में हुसैनपुर गांव के सरपंच फतेह मोहम्मद इस बार चुनाव नहीं लड़ पाएंगे, क्योंकि सीट महिला के लिए सुरक्षित हो गई है। उनके घर में कोई बेटी नहीं है। एक बेटा है, जो बीटेक है। फतेह पड़ोसी राजस्थान से बेटे के लिए आठवीं पास लड़की ले आए हैं। बीटेक बेटे की शादी में फतेह को आसानी से 20 से 25 लाख का दहेज मिल सकता था, लेकिन बिना दहेज के ही फतेह बेटे की शादी के लिए तैयार हो गए। फतेह मोहम्मद पिछला चुनाव सिर्फ एक वोट से हार गए थे, वह भी एक महिला जमीला बानो से। इस बार महिला सीट है और जमीला फिर से चुनाव लड़ रही हैं। फतेह को पिछली हार का बदला चुकाना है। उनकी यह बदले की भावना किसी भी दहेज से बड़ी है।

 

पुन्हाना के निर्दलीय विधायक रहीश खान भी मानते हैं कि चुनावों के चक्कर में बिना दहेज शादियां हो रही हैं। उनके अनुसार, अकेले उनके इलाके में ऐसी 200 शादियां हो चुकी हैं, जहां लड़के वाले चाहते तो आराम से 20 लाख रुपये तक दहेज ले सकते थे। पहली बार शिक्षा आर्थिक लेन-देन से बड़ी हो गई है। उनका कहना है कि नए नियमों के बाद अब न सिर्फ लोग लड़कियों को पढ़ाएंगे, बल्कि उनकी इज्जत भी बढ़ेगी, साथ ही लिंग अनुपात भी सुधरेगा। हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि आठवीं पास लड़की को सरपंच तो बनाया जा सकता है, लेकिन सरपंची तो पति, पिता या ससुर ही करेगा।

 

बिना दहेज की शादियां भी अभी चुनावी साल में हो रही हैं। पर क्या अगले चार साल भी लोग ऐसी शादियां करेंगे? हरियाणा में साक्षरता का प्रतिशत 76 है, लेकिन महिला साक्षरता 37 के आसपास ही है। गांव-देहात में यह आंकड़ा घटकर 25 के आसपास रह जाता है। जाहिर है, और कुछ हो या न हो, इस पर तो असर पडे़गा ही। यह सोच तो बनेगी ही कि बुनियादी लोकतांत्रिक संस्थाओं में महिलाओं को भूमिका देनी पड़ेगी। ज्यादा महिलाएं पढ़ेंगी और सार्वजनिक जीवन में सक्रिय होंगी, तो धीरे-धीरे कुछ बदलाव खुद ही आएगा और कुछ वे भी लाएंगी।

 

हरियाणा में पंचायती चुनाव के नए नियमों का असर सिर्फ इतना नहीं है। न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता के साथ-साथ कुछ अन्य शर्तें भी पंचायत चुनाव में उतरने वाले उम्मीदवारों पर लगाई गई हैं। उम्मीदवार के दो बच्चे से ज्यादा नहीं हो सकते , घर पर शौचालय होना जरूरी है और सहकारी बैंक के कर्जे से लेकर बिजली का कोई बिल बकाया नहीं होना चाहिए। खबरें आ रही हैं कि बैंकों से एनओसी लेने के लिए उम्मीदवारों को पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं।

 

अन्य राज्यों की तरह हरियाणा में भी गांव में रसूखदार लोग बिजली का बिल अदा करने में आनाकानी करते हैं, लेकिन सरपंच, पंच प्रधान बनने के लालच में वे बिजली के बकाया बिल भी अदा कर रहे हैं। अब तक हरियाणा बिजली विभाग को इस कारण 30 करोड़ रुपये से ज्यादा मिल चुके हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री को लगता है कि नए नियमों के कारण हरियाणा में एक लाख नए शौचालय बन जाएंगे। साफ है, हरियाणा में बदलाव ने इस बार एक अलग ही दरवाजे से दस्तक दी है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)


http://www.livehindustan.com/news/guestcolumn/article1-people-lobbying-for-change-510736.html


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