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न्यूज क्लिपिंग्स् | छत्तीसगढ़ में हर 24 घंटे में एक बुजुर्ग कर रहा आत्महत्या की कोशिश

छत्तीसगढ़ में हर 24 घंटे में एक बुजुर्ग कर रहा आत्महत्या की कोशिश

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published Published on Sep 14, 2015   modified Modified on Sep 14, 2015
रायपुर। कहते हैं कि बुजुर्गों से घर में समृद्धि-शांति बनी रहती है, लेकिन बुजुर्ग खुद बेहद तनाव में हैं। अकेलेपन के शिकार हैं और बुढ़ापे में उनकी देख-रेख करने वाले साथ छोड़ रहे हैं। यही वजह है कि बुजुर्ग मौत को गले लगाने को मजबूर हैं। प्रदेश में हर 24 घंटे में एक बुजुर्ग आत्महत्या की कोशिश कर रहा है। यह आंकड़ा है संजीवनी 108 एंबुलेंस सेवा का।

1 अगस्त 2014 से 31 अगस्त 2015 के बीच कुल 9568 लोगों ने आत्महत्या की कोशिश की, जिन्हें अस्पताल पहुंचाया गया। इनमें 370 बुजुर्ग हैं, जिनकी उम्र 60 साल या उससे अधिक है। ये आंकड़ा कुल मौत का भले ही 3.7 प्रतिशत हो, लेकिन समाज के सामने बड़ा सवाल खड़ा कर रहा है हमारे बुजुर्ग आज की युवा पीढ़ी के बीच कितना तनाव महसूस करते हैं। जानकारों का कहना है कि बुजुर्गों की स्थिति दिन-ब -दन गंभीर होती चली जा रही है, क्योंकि सहारा देने की उम्र में उन्हें बेसहारा छोड़ दिया जा रहा है।

युवाओं की संख्या सर्वाधिक

आत्महत्या का प्रयास करने वालों में सर्वाधिक संख्या युवाओं की है। आंकड़े के अनुसार सालभर में 2939 आत्महत्या की कोशिश के प्रकरण 20 से 29 साल के बीच आयु वालों के हैं। आत्महत्या की कोशिश करने वाले 30-39 आयु वालों में की संख्या 1862 है और 40-49 आयु वर्ग के लोगों की संख्या 1139 है।

युवा भारत को हैरान करने वाला आंकड़ा

एक आंकड़ा युवा कहलाने वाले भारत के लिए हैरान करने वाला है, अकेले छत्तीसगढ़ में 19 साल से कम आयु वर्ग के 2719 युवाओं ने आत्महत्या की कोशिश की है। यह आंकड़ा 365 दिन का ही है। जब एक प्रदेश की ये स्थिति है तो पूरे देश की क्या होगी? युवाओं में तनाव की अलग वजहें हैं।

108 में मृत्यु की जानकारी नहीं

108 को कॉल आता है, हम मरीज को तत्काल नजदीकी अस्पताल में पहुंचाते हैं। ये सभी वे केस हैं, जिनमें जहर सेवन, फांसी लगाना, केमिकल पॉइजनिंग से आत्महत्या की कोशिश शामिल हैं। इनमें से कितने की मृत्यु हुई, इसकी जानकारी हमें नहीं है। बुजुर्गों द्वारा आत्महत्या की कोशिश क्यों की जा रही है, तत्काल सोचने की जरूरत है। शिबु कुमार, पीआरओ, 108 संजीवनी एक्सप्रेस सेवा

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. सोनिया परियल और मनोचिकित्सक डॉ. मनोज साहू के उपचार के दौरान के अनुभव-

अकेलापन- समाज में बड़ी तेजी से एकल परिवार के कॉन्सेप्ट ने घर किया है, जिसकी वजह से बच्चे माता-पिता को साथ रखना नहीं चाहते। उन्हें समय नहीं दे पाते। पहले बुढ़ापा नाती-पोतों को खिलाने में बीत जाया करता था, लेकिन अब बेटे के दूर रहने से नाती-पोते भी बुजुर्गों के साथ नहीं हैं। ऐसे में तनाव बढ़ता जाता है, अकेलापन हावी हो जाता है।

आर्थिक स्थिति- पूरा जीवन बच्चों की परवरिश में गुजार दिया, लेकिन बुढ़ापे के लिए कुछ भी नहीं जोड़कर रख पाए यह सोचते हुए कि बच्चे तो बुढ़ापे की लाठी होंगे। लेकिन जब वे साथ नहीं होते तो आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगती है, लाइफ-स्टाइल मैनेज नहीं हो पाता और व्यक्ति तनाव में चला जाता है।

शारीरिक अक्षमता- बुढ़ापे के साथ बीमारियों का घर करना तय है। ऐसे में सहारे की दकरार होती है, जो नहीं मिलता और फिर शारीरिक अक्षमता जीवन को समाप्त करने की ओर धकेलती है।

पीढ़ियों का अंतर- पीढ़ियों का अंतर यानी जनरेशन गेप, विचारधारा का मेल न खा पाना। इसकी वजह से झगड़े बढ़ते जाते हैं और माता-पिता को बच्चे घर से निकालना या वृद्धाश्रम में छोड़ देना ही विकल्प समझते हैं, जो उनके लिए बड़ा आघात होता है।

 


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