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न्यूज क्लिपिंग्स् | छुआछूत की भेंट चढ़ा नवजात, सदमे में जननी

छुआछूत की भेंट चढ़ा नवजात, सदमे में जननी

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published Published on Nov 2, 2014   modified Modified on Nov 2, 2014
डॉ. राजेंद्र छाबड़ा, कैथल। मुझे मत मारो, मुझे मेरे जिगर का टुकड़ा लौटा दो...। ये चीत्कार है उस बेबस जननी की जो गहरे सदमे की हालत में पिछले करीब एक माह से बिस्तर पर है। उसका कसूर केवल इतना है कि वह दलित है। इसी कारण उसके नवजात शिशु को जान देनी पड़ी। कई बार गुहार लगाने के बावजूद अभी तक आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

पीड़ित महिला कलावती जब शनिवार को होश में आई तो उसने यह खुलासा किया। उसने बताया कि 26 सितंबर को उसे प्रसव पीड़ा हुई। देर रात्रि जब परिवार के लोग उसे कलायत के सरकारी अस्पताल लेकर पहुंचे तो वहां मौजूद महिला स्वास्थ्य कर्मी आगबबूला हो उठी।

वह नहीं चाहती थी कि उसके रात्रि विश्राम में खलल पड़े और उसे डिलीवरी करानी पड़े। इसलिए उसे प्रसूता कक्ष में न केवल डराया गया बल्कि उसके साथ बुरी तरह से मार-पीट भी की गई। उसके मुताबिक बात सिर्फ यहीं खत्म नहीं हुई।

दलित वर्ग का होने के कारण उसका प्रसव महिला सफाई कर्मचारी से करवाया गया। साथ ही इसका खुलासा बाहर करने पर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी गई। कलावती का कहना है कि इसी लापरवाही में उसके बेटे के सांसों की डोर प्रसव के दौरान टूट गई। बेटे का सदमा और छुआछूत की पीड़ा महिला सहन नहीं कर पाई और वह डिलीवरी कक्ष से बाहर आते ही जमीन पर गिर पड़ी।

उसके मुताबिक मामले की कलई न खुले, इसके मद्देनजर उसे आनन-फानन में जिला अस्पताल जाने की नसीहत दे दी गई। साथ ही परिवार के लोगों को गुमराह करते हुए मृत बधो को जिंदा बताकर कपड़े में लपेट उन्हें दे दिया गया।

महिला के पति कश्मीरा राम ने बताया कि पत्नी कलावती व परिवार के अन्य सदस्यों के साथ जब वह बच्चे को लेकर कैथल (हरियाणा) के सरकारी अस्पताल में पहुंचे तो वहां मौजूद डॉक्टरों ने बताया कि बच्चा काफी पहले ही दम तोड़ चुका है।


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