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न्यूज क्लिपिंग्स् | छोटी-सी उम्र में लिया समाज बदलने का संकल्प, साइकिल पर चला रही चलंत पुस्तकालय

छोटी-सी उम्र में लिया समाज बदलने का संकल्प, साइकिल पर चला रही चलंत पुस्तकालय

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published Published on May 26, 2015   modified Modified on May 26, 2015
आज जिससे भी बात कीजिए, यही कहता है कि समाज में बहुत गिरावट आ गयी है. यह बात मानते सब हैं, पर करता कोई कुछ नहीं. लेकिन, लीक छोड़ चलनेवाले कुछ बिरले होते हैं, जो आलोचना भर से संतुष्ट नहीं होते और बदलाव के लिए कदम बढ़ा लेते हैं. ऐसी ही है बिहार की सुपुत्री साधना. उसने जो साधना शुरू की है, अगर वह एक आंदोलन की शक्ल ले ले, तो समाज में कुछ न कुछ सुधार जरूर होगा.

जितेंद्र, अररिया

न धन का मोह, न प्रशंसा की चाहत. बस गांव-समाज के चरित्र निर्माण की फिक्र है. यह फिक्रमंद इनसान कोई बूढ़ा-बुजुर्ग या साधु-महात्मा नहीं, बल्कि दसवीं में पढ़नेवाली एक लड़की है. छोटी सी उम्र में उसने बड़ा काम शुरू किया है. सफलता मिलेगी या नहीं, इससे बेपरवाह बिहार के अररिया जिले के डुमरबन्ना गांव की बेटी साधना अपने मिशन में जुटी है. वह अपनी स्कूली साइकिल पर एक चलंत पुस्तकालय चला रही है, जिसमें स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, श्रीराम शर्मा आचार्य जैसे महापुरुषों की किताबें होती हैं, जो धर्म व नीति का रास्ता बताती हैं. हर सप्ताह रविवार को वह अपने पुस्तकालय के साथ आसपास के लोगों तक पहुंचती है.

नशा छोड़ने के लिए करती है प्रेरित : पुस्तकालय चलाने भर से वह अपने कर्तव्यों की इतिश्री नहीं मान लेती. वह समय निकाल कर उन लोगों से मिलती है, जिन्हें नशे की लत है. उनकी बुरी आदतों को छुड़ाने के लिए वह उनके घर घंटों बैठ कर कांउसेलिंग करती है. प्रारंभ में तो लोगों ने साधना का मजाक बनाया, मगर आज उसके गांव के काफी लोग उसके मुरीद हो गये हैं. अब तो लोग रविवार का इंतजार करते हैं.

दान में मिलती हैं किताबें : अपने पुस्तकालय के लिए साधना विभिन्न प्रकाशकों को पत्र लिख कर किताबें दान करने के लिए प्रेरित करती हैं. उनके लिए हिंद स्वराज अभियान के संचालक, गांधीवादी राजीव बोरा भी दिल्ली के प्रकाशकों से किताबों का इंतजाम करवाते हैं. गांव के प्रबुद्ध लोगों का भी उसे पूरा समर्थन मिलता है. इनमें से कुछ ऐसे हैं जो बाहर जाते हैं तो किताबें ले कर आते हैं और साधना के चलंत पुस्तकालय को दान कर देते हैं.

बहन ने भी किया था शिक्षा के लिए काम : साधना एक गरीब परिवार से आती है. उसने राजकीय उच्च विद्यालय बिरपुर से दसवीं की परीक्षा दी है. उसके पिता उमानंद पाठक मध्य प्रदेश की एक डिटर्जेट फैक्टरी में काम करते हैं. मां गृहिणी हैं. बड़ी बहन नेहा पाठक ने गांव में हाई स्कूल की स्थापना के लिए किशोरी समूह बना कर आंदोलन चलाया था. आज उसके प्रयास का नतीजा है कि गांव में हाई स्कूल बन गया.

गांधीवादी राजीव बोरा से मिली प्रेरणा : समाज में फैली कुरीतियों को खत्म कर, लोगों के चरित्र निर्माण के लिए काम करने की प्रेरणा साधना को हिंद स्वराज किशोरी समूह के माध्यम से मिली. हिंद स्वराज अभियान के संचालक राजीव बोरा ने उसे इस काम के लिए प्रेरित एवं प्रोत्साहित किया. हिंदी स्वराज के स्थानीय संचालक दिलीप झा भी उसे पूरा सहयोग देते हैं.


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