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न्यूज क्लिपिंग्स् | जजों की कमी से लंबित हो रहे मुकदमे

जजों की कमी से लंबित हो रहे मुकदमे

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published Published on Dec 29, 2009   modified Modified on Dec 29, 2009

लखनऊ। भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति केजी बालाकृष्णन ने कहा कि अदालतों में लंबित मुकदमों की फेहरिस्त जजों की कमी की वजह से बढ़ती जा रही है। अदालतों में अवस्थापना सुविधाओं की कमी शिद्दत से महसूस की जा रही है। न्यायालयों में पर्याप्त संख्या में कोर्ट नहीं हैं। दु:खद तो यह है कि कई राज्य सरकारें अदालतों के विकास में दिलचस्पी नहीं ले रही हैं। यदि अदालतों में स्वीकृत संख्या के अनुरूप जजों की तैनाती हो जाए तो लंबित मुकदमे कम समय में ही निपटाए जा सकते हैं।

न्यायाधीश बालाकृष्णन ने बुधवार को यहां गोमतीनगर में हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के नये भवन की नींव रखी। भूमि पूजन व शिलान्यास समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट में जजों की स्वीकृत संख्या 160 है। लेकिन जगह की कमी के कारण सभी पदों पर नियुक्तियां नहीं हो पा रही हैं। हाईकोर्ट में तो दस जजों को नियुक्त करने के लिए स्थान उपलब्ध हैं लेकिन लखनऊ पीठ में ऐसी कोई गुंजाइश नहीं है। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट में किसी जज की नियुक्ति से संबंधित कोई भी पत्रावली उनके पास लंबित नहीं है। उनके मुताबिक 70 फीसदी मुकदमे मुनासिब समय में निपट जाते हैं।

हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश चंद्रमौलि कुमार प्रसाद ने कहा कि उच्च न्यायालय में स्वीकृत पदों के सापेक्ष सिर्फ पचास फीसदी पदों पर ही जज तैनात हैं। इसकी एक प्रमुख वजह स्थानाभाव है। इस साल हाईकोर्ट में 46630 मुकदमे बढ़े हैं।

सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस सगीर अहमद और न्यायमूर्ति बृजेश कुमार ने कहा कि समय के साथ मुकदमों, वादकारियों, वकीलों व जजों की संख्या बढ़ी है। लखनऊ पीठ का वर्तमान परिसर न्यायिक व्यवस्था पर बढ़ते बोझ को उठाने में नाकाफी साबित हो रहा है।


http://in.jagran.yahoo.com/news/national/politics/5_2_6063681/
 

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