Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | जनहित याचिका के ऐतिहासिक नतीजे

जनहित याचिका के ऐतिहासिक नतीजे

Share this article Share this article
published Published on Jan 30, 2014   modified Modified on Jan 30, 2014

हम अपने संविधान की चाहे जितनी आलोचना कर लें और इसे जितना बेकार कह लें, सच यह है कि अब तक इसने ही देश के नागरिकों को सम्मान से जीने का अधिकार दिया है और उस अधिकार के अतिक्रमण को दूर करने का रास्ता भी इसी ने दिया. इसका एक बड़ा उदाहरण है जनहित याचिका. यह जनता के संवैधानिक अधिकारों के इस्तेमाल और अदालत के कानूनी अधिकार से ही संभव हुआ है.

यह मुकदमे का एक प्रकार है, जो सामान्य मुकदमे से अलग है. इसके जरिये ऐसे विषयों पर न्यायालय से हस्तक्षेप और निर्देश की मांग की जाती है, जो व्यापक जनहित से जुड़े हों. यह लोकहित की रक्षा के लिए मुकदमे का एक ऐसा प्रावधान है, जिसने देश की जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों को बड़ी ताकत दी है. इसके अब तक के इस्तेमाल और नतीजों को देखें, तो साफ पता चलता है कि इसके जरिये लोकहित, संविधानहित और राष्ट्रहित में आम जनता ने सरकार, संसद, सेना, प्रशासन और न्यायालय के कामकाज के तौर-तरीकों में हस्तक्षेप किया है.  झारखंड और बिहार में बालू घाटों की बंदोबस्ती को लेकर दायर जनहित याचिकाएं सुर्खियों में रहीं. झारखंड में सरकार बैक फुट पर रही, जबकि बिहार का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है.

पटना हाई कोर्ट के 16 दिसंबर के अंतरिम आदेश के खिलाफ हेमंत कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जिस पर अगले माह (फरवरी) में सुनवाई होनी है. अभी पुलिसकर्मियों के निलंबन की मांग को लेकर धरना देने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार के कानून मंत्री सोमनाथ भारती के खिलाफ अधिवक्ता एमएल शर्मा एवं अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है. इस पर शुक्रवार, 24 जनवरी को सुनवाई शुरू हुई. सूचना का अधिकार अधिनियम आने के बाद गुणवत्तापूर्ण जनहित याचिका दाखिल करने की दर बढ़ी है. इसकी वजह है कि लोगों को सरकारी तंत्र से वैसी जानकारी और दस्तावेज प्रमाणिक रूप में मिलने लगे हैं, जिन्हें इससे पहले गुप्त बात अधिनियम, 1923 का हवाला देकर गोपनीय करार दिया जाता था और जनता से सही सूचना छुपायी जाती थी. अगर देखें, तो जनहित याचिका दाखिल करने का अधिकार लोकतंत्र का पांचवां स्तंभ है. हम इस अंक में इसी विषय पर विस्तार से बात कर रहे हैं.

आरके नीरद
भारतीय संविधान ने देश के प्रत्येक नागरिक को कुछ मूल अधिकार दिये हैं. इनकी संख्या छह है. इनमें स्वतंत्रता, समानता, शिक्षा और सांस्कृतिक तथा धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार एवं शोषण के खिलाफ अधिकार और मूल अधिकार पाने के उपाय.

जब भी किसी आम या खास नागरिक के इनमें से किसी अधिकार कर हनन होता है, तो वह याचिका दायर कर सकता है. इसके जरिये वह अपने संवैधानिक मूल अधिकारों की रक्षा के लिए गुहार लगा सकता है.

याचिका दो तरह की
याचिका दो तरह की है. एक व्यक्तिगत हित और दूसरा जनहित. जब ऐसे किसी विषय का संबंध व्यापक जनहित से हो, उसे जनहित याचिका कहते हैं. व्यक्तिगत हित की याचिका और जनहित याचिका में एक बुनियादी अंतर और है. जब कोई व्यक्ति अपने किसी मूल अधिकार के हनन के  खिलाफ याचिका दायर करता है, तो उसे केवल यह सिद्ध करना होता है कि उस मामले से उसका हित जुड़ा हुआ है. जैसे प्रोन्नति, वेतन, शिक्षा और रोजगार के अवसर आदि. जब जनहित याचिका दायर कर जाती है, तब व्यक्ति को यह सिद्ध करना होता है कि कैसे मामला जनहित यानी आम लोगों के हितों से जुड़ा है. पर्यावरण संरक्षण, भोजन का अधिकार, जीने का अधिकार आदि. दोनों मामले अलग-अलग हैं. निजी हित से जुड़े मामलों में दायर याचिका को पर्सनल इंट्रेस्ट लिटिगेशन कहते हैं. कोर्ट को यह तय करने का अधिकार है कि याचिका पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन या पर्सनल इंट्रेस्ट लिटिगेशन.

न्यायालय की व्याख्या से निकली जनहित याचिका
सबसे दिलचस्प यह है कि जिस तरह संविधान में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में मीडिया या पत्रकारिता का उल्लेख नहीं है, लेकिन उसने अपनी सक्रियता, प्रभाव और परिणाम के आधार पर यह स्थान प्राप्त किया है. उसी प्रकार जनहित याचिका की संविधान में कोई परिभाषा नहीं है. उस व्याख्या से उत्पन्न हुआ है, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने जनहित से जुड़े अलग-अलग मुकदमों की समीक्षा में व्यक्त किया. ठीक सूचनाधिकार की तरह इसमें इसकी जरूरत नहीं होती कि कोई पीड़ित व्यक्ति स्वयं अदालत में पेश हो. कोई दूसरा व्यक्ति भी पीड़ित की ओर से न्यायालय में जनहित दायर कर सकता है. न्यायालय स्वयं भी ऐसे मामले में संज्ञान ले सकता है और लेता रहा है. जनहित याचिका का प्रयोग किसी भी ऐसे क्षेत्र में हो सकता है, जो किसी नागरिक के मौलिक अधिकार और कर्तव्य में बाधा पैदा करता है या जिससे संवैधानिक और न्यायिक प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है. बाल मजदूरी, बंधुआ मजदूरी, बाल पोषण, मध्याह्न् भोजन, आपदा प्रबंधन, सामाजिक सुरक्षा, भूख से मौत एवं खाद्य सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण एवं प्राकृतिक संसाधनों के दोहन एवं उत्खनन, नागरिक सुविधा एवं सुरक्षा, शहरी विकास, उपभोक्ता संरक्षण, शिक्षा के अवसर और नीतियां, निष्पक्ष और निर्भीक चुनाव, राजनीति और मानवाधिकार तथा न्यायालय से जुड़े मामले जनहित के विषय बनते रहे हैं. इसने न्यायिक सक्रियता को भी बढ़ाया है.

विषयों पर जनहित याचिका दाखिल की जा सकती है
आवासीय इलाकों में घरों की छतों पर मोबाइल कंपनियों के टावर. यह मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है. ज्यादातर मकानों का निर्माण इस तरह के टावर लगाने के लिए नहीं किया गया है. ऐसे मकान व्यावसायिक उपयोग के लिए भी नहीं हैं तथा उनके नक्शे में मोबाइल  टावर लगाने का प्लान नहीं है. यह कानूनी तौर पर गलत है.

झारखंड और बिहार के निजी स्कूलों में बच्चों की किताब, कॉपी, पोशाक, बैग आदि भी बेची जाती है. इसके लिए आपूर्तिकर्ता और विद्यालय प्रबंधन के बीच गुप्त समझौता रहता है. जिला शिक्षा  अधीक्षक और जिला शिक्षा पदाधिकारी की भी इसमें मौन सहमति होती है. बुक स्टोर में इस तरह की किताब और कॉपी की खरीद पर आपको 10 से 15 प्रतिशत तक  छूट मिलती है, लेकिन स्कूल के अंदर बेची जाने वाली किताब-कॉपी पर कोई  छूट दी जाती है. इसमें लाखों रुपये का खेल होता है, जबकि कोर्ट कह चुका है कि स्कूलों का व्यवसायीकरण नहीं हो सकता.

 

निजी बसों में मोटर वाहन अधिनियम और परमिट की शर्तो का पालन नहीं होता. बस के चालक और कंडक्टर की पहचान के लिए कुछ भी व्यवस्था नहीं है. वे न तो खास पोशाक में होते हैं और न ही उनकी कमीज पर कोई नामपट्ट होता है, जिससे कि उन्हें पहचाना जा सके. यह सीधा-सीधा मौलिक अधिकार का उल्लंघन है. एक पुलिस पदाधिकारी को वरदी मिलती है और उन्हें अपनी कमीज पर अपना नेम प्लेट लगाना होता है, जबकि इन बस चालकों और कंडक्टरों के लिए ऐसी कोई बाध्यता नहीं है.

http://www.prabhatkhabar.com/news/83438-story.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close