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न्यूज क्लिपिंग्स् | जब भ्रष्टाचार संस्थागत रूप लेता है- बीके चतुर्वेदी

जब भ्रष्टाचार संस्थागत रूप लेता है- बीके चतुर्वेदी

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published Published on Jul 18, 2015   modified Modified on Jul 18, 2015
तीन दशक से भी पहले मध्य प्रदेश में सरकारी नौकरियों और मेडिकल एवं इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिला संबंधी परीक्षा आयोजित करने के लिए व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापम) की स्थापना की गई थी। वह विचार बुरा नहीं था। आम तौर पर इस तरह के चयन से पारदर्शिता और निष्पक्षता को ही बढ़ावा मिलता है। हालांकि इसका एहसास नहीं था कि सरकारी क्षेत्र के एक संगठन में रोजगार देने की इतनी शक्ति को केंद्रीकृत करने से भ्रष्टाचार और अराजकता बढ़ सकती है।

बारहवीं पंचवर्षीय योजना के मुताबिक, मार्च, 2012 के अंत तक देश में दो लाख अस्सी हजार डॉक्टरों और ग्यारह लाख नर्सों की कमी थी। इतने बड़े पैमाने पर कर्मियों की आपूर्ति में अंतर के साथ सरकारी सेवाओं में बड़े पैमाने पर नियमित भर्तियां और नौकरी ढूंढते बेरोजगार युवाओं की बढ़ती संख्या स्पष्ट रूप से भ्रष्टाचार के लिए विराट अवसर थी। इस घोटाले में जितने बड़े पैमाने पर निष्पक्ष चयन को बाधित किया गया, वह चौंकाने वाला है।

अब यह कहा गया है कि इस रैकेट में राज्यपाल, प्रौद्योगिकी शिक्षा मंत्री, व्यापम के अधिकारी, बड़ी संख्या में बिचौलिये और कुछ उम्मीदवार शामिल थे। इस घोटाले को अंजाम देने के लिए जो तरीका अपनाया गया, वह बेहद चतुराई भरा था। दाखिले के लिए प्रश्नपत्रों को हल करने वाले मेधावी छात्र उम्मीदवारों के रूप में परीक्षा में शामिल होते थे। परीक्षा में बैठने की व्यवस्था इस तरह से की जाती थी कि चुने हुए अच्छे छात्र संबंधित लाभार्थी उम्मीदवारों के बगल में बैठें, ताकि वे उन्हें नकल करने दें या कॉपी की अदला-बदली कर सकें। कुछ मामलों में तो उत्तर पुस्तिका बिल्कुल खाली छोड़ दी जाती थी, जिसे बाद में कुछ चुनींदा कर्मचारी भरते थे। यह कदाचार एक दशक से ज्यादा समय से चल रहा था। अब तक करीब दो हजार लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं और इस घोटाले से जुड़े करीब 45 लोगों की मौत हो चुकी है। अब इस घोटाले की जांच की जिम्मेदारी सीबीआई के पास है।

सरकारी नौकरी की इच्छा उत्तर भारत में बहुत ज्यादा है। अभिभावक और छात्र सरकारी नौकरी पसंद करते हैं और इसके लिए हर तरह के समझौते करने को तैयार हैं। इसी चाहत के कारण ऐसी भर्तियों में नकल और भ्रष्टाचार बढ़ा है। कुछ साल पहले हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला शिक्षकों की भर्ती से जुड़े एक घोटाले में दोषी पाए गए थे। हाल ही में दिल्ली के शिक्षा मंत्री की गिरफ्तारी हुई, और प्रारंभिक जांच में पाया गया कि उनकी कई डिग्रियां और प्रमाणपत्र फर्जी हैं। पिछले महीने बिहार में करीब 1,400 शिक्षक तब इस्तीफा देने को बाध्य हुए, जब फर्जी डिग्री के आधार पर नौकरी हासिल कर लेने के जुर्म में उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने की शुरुआत हुई।

प्राथमिक स्तर पर बड़ी संख्या में छात्रों की शिक्षा का स्तर बहुत खराब है। गैरसरकारी संगठन प्रथम के मुताबिक, पांचवीं कक्षा के बहुत से छात्र सामान्य जोड़ का सवाल भी नहीं बना पाते, और दूसरी कक्षा का सामान्य पाठ नहीं पढ़ पाते। एनसीईआरटी ने भी अपने अध्ययन में ऐसा ही पाया। दो वर्ष पहले ओईसीडी द्वारा शिक्षा का स्तर जांचने के लिए कराए गए पीसा टेस्ट में हमारे छात्र अन्य देशों की तुलना में कमजोर पाए गए। शिक्षा की कमजोर बुनियाद, शिक्षण की खराब गुणवत्ता और छात्रों की उदासीनता की वजह से हमारे विश्वविद्यालय और कॉलेज रोजगार के लिए अयोग्य युवाओं की बड़ी फौज तैयार कर रहे हैं, जिनमें से ज्यादातर परीक्षाओं में सामूहिक नकल के जरिये उत्तीर्ण होते हैं।

पिछले दशक में उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान एवं मध्य प्रदेश में निजी तकनीकी शिक्षण संस्थानों का तेजी से प्रसार हुआ है, जो चिकित्सा, इंजीनियरिंग एवं मैनेजमेंट में डिग्रियां प्रदान करते हैं। इसने सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार के लिए दरवाजा खोल दिया। अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) के वरिष्ठ अधिकारियों को भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करना पड़ा है। छात्रों की तरफ से दिए जाने वाले बेहिसाब डोनेशन और शिक्षा का बहुत खराब स्तर कई तकनीकी संस्थानों की विशेषता है।

व्यापम घोटाला केंद्र एवं राज्य सरकारों को याद दिलाता है कि शैक्षणिक प्रशासन में भारी अव्यवस्था है, जिसमें सुधार के लिए तत्काल कुछ उपाय जरूरी हैं। सबसे पहले तो केंद्र एवं राज्यों को शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने और कदाचार से कोई समझौता न करने के लिए एक नीति बनानी चाहिए। जरूरत पड़ने पर परीक्षा व्यवस्था की निगरानी के लिए स्वतंत्र पर्यवेक्षक राज्यों में भेजना चाहिए। दूसरे, परीक्षा नहीं लेने की नीति को तुरंत बदलना चाहिए। तीसरा, मेडिकल एवं इंजीनियरिंग कॉलेजों की सभी प्रवेश परीक्षाओं की निगरानी बाहरी परीक्षकों एवं पर्यवेक्षकों से करानी चाहिए। हमें दो चरण की परीक्षा के बारे में विचार करना चाहिए, जिसमें पहले चरण में कमजोर छात्रों को छांटने के लिए वस्तुनिष्ठ परीक्षा हो। चौथी बात, मैनेजमेंट कोटे को कुल सीटों के एक चौथाई तक सीमित करना चाहिए और बाकी सीटों को कॉमन मेरिट सूची के उन उम्मीदवारों से भरा जाना चाहिए, जो बारहवीं की परीक्षा में मेरिट लिस्ट में आने से विफल रहे। शिक्षकों, कांस्टेबलों या अन्य सामान्य श्रेणी की भर्ती के लिए विभिन्न जिलों या अनुमंडलों में वस्तुनिष्ठ परीक्षा आयोजित करनी चाहिए और परिणाम की घोषणा उसी दिन अंत में या कुछ दिनों में कर देनी चाहिए। छठी बात, केंद्र सरकार अन्य शिक्षण संस्थानों में शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने की तुलना में आईआईटी एवं आईआईएम जैसे संस्थानों के नियमन में ज्यादा दिलचस्पी ले रही है। इस परिपाटी को बदलना चाहिए।

-लेखक कैबिनेट सचिव, योजना आयोग के सदस्य और शिक्षा सचिव रहे हैं


http://www.amarujala.com/news/samachar/reflections/columns/when-institutional-corruption-take-place-hindi/


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