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न्यूज क्लिपिंग्स् | जरूरी है विदेशी निवेश की जांच-- डा. भरत झुनझुनवाला

जरूरी है विदेशी निवेश की जांच-- डा. भरत झुनझुनवाला

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published Published on May 24, 2016   modified Modified on May 24, 2016
दुनिया के तमाम नेताओं और फिल्मी हस्तियों के नाम पनामा पेपर्स में उजागर हुए हैं. जवाब में ज्यादातर ने कहा कि उन्होंने कोई गैर कानूनी काम नहीं किया है. मूल रूप से इनके वक्तव्य सही हैं. हमारे देश के कानून के अनुसार, पनामा में कंपनी को पंजीकृत कराना और वहां व्यापार करना गलत नहीं है. गलत तब होता है, जब पनामा की कंपनी का उपयोग भारत में टैक्स की चोरी के लिए किया जाता है.

मान लीजिये, भारत में पंजीकृत आपकी कंपनी को 10 लाख रुपये की आय हुई. इस पर आपको तीन लाख रुपये का इनकम टैक्स अदा करना है. ऐसे में आपने युक्ति निकाली. आप पनामा गये और वहां एक कंपनी को पंजीकृत कराया.

फिर भारतीय कंपनी से नौ लाख रुपये का पेमेंट कमीशन अथवा रॉयल्टी के नाम पर अपनी ही पनामा-स्थित कंपनी को कर दिया. आपकी भारतीय कंपनी की आय 10 लाख से घट कर एक लाख रुपये रह गयी. इस पर आपने 30,000 रुपये का इनकम टैक्स भारत में अदा कर दिया. आपकी पनामा-स्थित कंपनी को नौ लाख रुपये की आय हुई. पनामा में टैक्स की दर मात्र पांच प्रतिशत है. इस प्रकार आपने पनामा में 45,000 रुपये का इनकम टैक्स अदा कर दिया. आपको कुल 75,000 रुपये का ही टैक्स देना पड़ा.

अब आपकी पनामा-स्थित कंपनी के बैंक खाते में 8,55,000 रुपये हैं. इसे वापस लाने के लिए आपने भारत में एक और कंपनी स्थापित की. इस रकम को आपने नयी कंपनी में विदेशी निवेश कर दिया. भारत सरकार प्रसन्न हो गयी कि 8,55,000 रुपये का विदेशी निवेश मिला है. पनामा सरकार भी प्रसन्न हुई. उन्हें 45,000 रुपये का टैक्स बिना श्रम के ही प्राप्त हो गया. संपूर्ण प्रक्रिया भारत और पनामा दोनों ही देशों में कानूनी है. फिर हल्ला किस बात का?

गड़बड़ी हुई भारतीय कंपनी द्वारा नौ लाख रुपये का कमीशन पनामा की कंपनी को देने में. भारतीय इनकम टैक्स अधिकारी पूछ सकता था कि यह कमीशन किस सेवा के एवज में दिया गया. जाहिर है कि पनामा की कंपनी द्वारा कोई सेवा नहीं दी गयी थी. इनकम टैक्स अधिकारी इस नौ लाख को आपकी आय में जोड़ सकता था. ऐसा होने पर पूरा प्रपंच आपके लिए घाटे का सौदा हो जाता. इस प्रकार की टैक्स की बचत करने में विश्व की तमाम कंपनियां लिप्त हैं. अमेरिका स्थित गूगल को वर्ष 2010 में 550 करोड़ यूरो का लाभ हुआ था. इसमें से 540 करोड़ रुपये गूगल अमेरिका द्वारा गूगल बरमूडा को रॉयल्टी के रूप में भेज दिया गया. बरमूडा में भी टैक्स की दरें कम हैं.

आय को मनचाहे देश में पहुंचाने का एक उपाय ट्रांसफर प्राइसिंग का भी है. इस प्रकार कमीशन, रॉयल्टी या ट्रांसफर प्राइसिंग के माध्यम से आय को स्थानांतरित करना पूरी तरह कानूनी है. इसे पकड़ने का रास्ता है कि इनकम टैक्स अधिकारी द्वारा इन पेमेंट की तह में जाया जाये. इस प्रकार की जांच से कमीशन, रॉयल्टी और ट्रांसफर प्राइसिंग से आय के फर्जी स्थानांतरण को पकड़ा जा सकता है और उस पर टैक्स वसूला जा सकता है. अत: पनामा पेपर्स का महत्व सिर्फ इस बात में है कि इससे भारत सरकार को पता चल सकता है कि किन मदों पर खर्च दिखा कर भारत से आय का फर्जी स्थानांतरण किया जा रहा है.

विषय का दूसरा पहलू भारत सरकार द्वारा विदेशी निवेश को आकर्षित करने का मोह है. सरकार चाहती है कि अधिक मात्रा में विदेशी पूंजी आये. यही वजह है कि आपकी पनामा स्थित कंपनी द्वारा जब 8,55,000 रुपये की रकम का आपकी ही दूसरी कंपनी में निवेश किया जाता है, तो भारत सरकार प्रसन्न होती है.

इस प्रसन्नता में भारत सरकार नहीं पूछती कि यह रकम किसने भेजी. विदेशी निवेश की जांच से पता चल सकता है कि इसमें बड़ा हिस्सा अपनी ही पूंजी की घर वापसी का है, जिसे राउंड ट्रिपिंग कहा जाता है. भारत सरकार को 8,55,000 रुपये का विदेशी निवेश दिखता है और 2,70,000 रुपये की आयकर का घाटा नहीं दिखता है.

विदेशी निवेश आकर्षित करने के पीछे मूल सोच है कि विदेशी कंपनियों के पास आधुनिक तकनीकें हैं, जो हमें मिल जायेंगी. आधुनिक तकनीक पाने की लालच में हम अपनी पूंजी की राउंड ट्रिपिंग को बढ़ावा दे रहे हैं.

विदेशी निवेश के हर प्रस्ताव का सही निरीक्षण करें, तो साफ हो जायेगा कि कितनी पूंजी वास्तव में नयी तकनीकों को लेकर आ रही है और कितनी पूंजी राउंड ट्रिपिंग से आ रही है. सरकार को चाहिए कि आयकर विभाग को दुरुस्त करे और विदेशी निवेश की जांच करे. तब पनामा के माध्यम से कर की चोरी समाप्त हो जायेगी, अन्यथा नहीं.


http://www.prabhatkhabar.com/news/columns/story/803847.html


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