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न्यूज क्लिपिंग्स् | जलवायु परिवर्तन से बिहार में खेती के बुरे दिन

जलवायु परिवर्तन से बिहार में खेती के बुरे दिन

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published Published on Jan 10, 2020   modified Modified on Jan 10, 2020
ग्लोबल वार्मिंग में कोई ख़ास योगदान ना होने के बावजूद, बिहार को जलवायु परिवर्तन के अंजाम भुगतने पड़ रहे हैं। जलवायु परिवर्तन का सबसे ज़्यादा असर बिहार में खेती पर पड़ा है। बेमौसम बरसात, मॉनसून की बारिश का लगातार कम होना और तापमान में लगातार बढ़ोत्तरी ने बिहार की खेती की तस्वीर बदल कर रख दी है। कभी फ़ायदे का सौदा कही जाने वाली खेती में अब नुकसान के अलावा कुछ नहीं बचा है। 

राजधानी पटना से कुछ ही दूर स्थित मोकामा टाल क्षेत्र दाल की खेती के लिए मशहूर है। आमतौर पर यहां अक्टूबर के मध्य से 15 नवंबर तक दलहन की बुआई हो जाती है। इस साल किसानों को लगा था कि समय से बुआई हो जाएगी, क्योंकि सितंबर में मॉनसून की विदाई से हफ़्ते भर पहले बारिश बंद हो गई थी। लेकिन, चौथे हफ़्ते में तीन दिन में ही करीब 350 मिलीमीटर बारिश हो गई, जो बिहार में मॉनसून के सीज़न में होने वाली औसत बारिश का क़रीब 30% था। अचानक हुई इस बारिश से मोकामा टाल क्षेत्र में इतना पानी भर गया, जो अभी तक नहीं निकल पाया है। 

मोकामा टाल क्षेत्र के 69 वर्षीय अरविंद सिंह ने 70 के दशक में सरकारी नौकरी की जगह खेती को चुना। उन्हें 40 बीघा ज़मीन में खेती-बाड़ी का जिम्मा विरासत में मिला। कुछ दशकों तक तो सब कुछ ठीक रहा, लेकिन अब वह अपने फ़ैसले पर अफ़सोस करते हैं।

“90 के दशक तक खेती-किसानी फ़ायदे का सौदा हुआ करती थी, लेकिन अब मौसम की अनिश्चितता इतनी बढ़ गई है कि कई बार भारी नुक़सान उठाना पड़ता है। अब मुझे लगता है कि खेती की जगह सरकारी नौकरी चुन लेता, तो फ़ायदे में रहता,” अरविंद सिंह कहते हैं।

“बारिश का पानी नहीं निकलने से 7,500 बीघे में इस बार दलहन की बुआई नहीं हो सकी है। इसमें मेरा भी खेत शामिल है,” बेमौसम हुई बारिश पर अरविंद सिंह ने कहा।

जलवायु परिवर्तन ने अरविंद सिंह की तरह ही बिहार के लाखों किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं। 

मॉनसून में बदलाव

बिहार का भौगोलिक क्षेत्रफल 93.60 लाख हेक्टेयर में फैला हुआ है। इनमें से 79.46 लाख हेक्टेयर ज़मीन में खेती की जाती है। राज्य की 90 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है और उनकी कमाई का मुख्य ज़रिया खेती है। इनमें सीमांत और छोटे किसान 90% से ज़्यादा हैं। खेती से उन्हें इतनी कमाई भी नहीं हो पाती है कि परिवार पाल सकें और दूसरी तरफ़ मौसम में लगातार हो रहे बदलावों से खेती में अनिश्चितताएं और बढ़ गई हैं। खेती के इस संकट ने पलायन भी बढ़ाया है।

मौसम में बड़े बदलाव का संकेत पिछले एक दशक में बारिश के पैटर्न में उलटफेर में मिलता है। बिहार में खेती पूरी तरह बारिश पर निर्भर है, इसलिए इसका खेती पर व्यापक प्रभाव पड़ रहा है।

एक जून से 30 सितंबर तक बिहार में औसतन 1,027.6 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि पिछले 10 साल (साल 2010 से 2019 तक) में सिर्फ़ दो बार ऐसे मौके आए, जब औसत से ज़्यादा बारिश दर्ज की गई। साल 2011 में 1057.6 मिलीमीटर और इस साल 1050.4 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई। सबसे कम 723.4 मिलीमीटर बारिश साल 2013 में दर्ज की गई थी, जो औसत से 30 प्रतिशत कम थी।
 
पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 

उमेश कुमार रॉय, https://indiaspendhindi.com
 

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