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न्यूज क्लिपिंग्स् | जीविका की राह दिखाने वाली पहाड़ी बनी जानलेवा ठिकाना

जीविका की राह दिखाने वाली पहाड़ी बनी जानलेवा ठिकाना

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published Published on Jul 25, 2013   modified Modified on Jul 25, 2013
रांची, ईएनएस। लातेहार के कूमनडीह जंगल में बीते दिनों माओवादियों के खिलाफ अभियान खत्म होने के बाद भी सरकारी अमले या किसी अन्य ने बरकाडीह पंचायत के ग्रामीणों को यह नहीं बताया कि वे बियांग पहाड़ी से परे रहें। माओवादियों की ओर से भी इस तरह की कोई चेतावनी नहीं दी गई थी। लेकिन बीती 14 जुलाई को जसपतिया देवी (45) की यहां बिछी बारूदी सुरंग फटने से पैर उड़ गए तो सब सकते में आ गए। इस हादसे के बाद पूरे इलाके में दहशत है। कभी यह पहाड़ी लोगों के लिए जीवनदायिनी थी। अब यह मौत का फंदा बन गई है। जसपतिया देवी अपने पति के साथ इस पहाड़ी पर गई थी।
चौदह जुलाई को जब जसपतिया देवी इस पहाड़ी पर चढ़ी तो उसे खतरे का कतई अंदेशा नहीं था। दरअसल यहां माओवादियों के बिछाए प्रेशरबम पर पैर रखते ही वह हादसे का निशाना बन गई। यहां माओवादियों ने अपनी किलेबंदी मजबूत करने के लिए ऐसा कर रखा था। लेकिन बीते दिनों यहां चलाए गए सुरक्षा दस्तों के अभियान के बाद माओवादियों ने यहां अपने शिविर छोड़ दिए और भाग गए। उनके जाने के बाद सुरक्षा दस्तों ने पहाड़ी पर चढ़कर उनके शिविरों को नष्ट कर दिया। पर बारूदी सुरंगों को हटाने का काम नहीं किया गया। इसका नतीजा है कि सौ वर्ग किलोमीटर के दायरे में असंख्य बारूदी सुरंगें फैली हुई हैं, जिनसे कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है।
जसपतिया देवी के 20 वर्षीय पुत्र वीर कुमार सिंह ने बताया कि उसके माता-पिता गांवजोबला से दस किलोमीटर दूर स्थित इस पहाड़ी पर महुए की डोरी बीनने गए थे। सुबह आठ बजे के करीब जब वे वापस लौट रहे थे, तो मां कुछ कदम आगे थी। अचानक एक धमाका हुआ और वह हवा में उछल गई। जसपतिया इस समय रांची के राजेंद्र इंस्टीट्यूट आॅफ मेडिकल साइंसेस में भरती है। उसका दायां पैर घुटने के नीचे से काटना पड़ा है। बायां पैर भी काटना पड़ सकता है।

बियांग पहाड़ी को सरकारी तौर पर राजगढ़ पहाड़ी कहा जाता है। इस पहाड़ी का ग्रामीणों के लिए महत्त्व इसलिए भी है कि यह उनकी जीविका का सहारा है। शायद यही वजह है कि माओवादियों के खिलाफ अभियान समाप्त होने के तीन बाद ही जसपतिया और उसके पति को यहां जाने की जरूरत पड़ गई। ग्रामीण यहां महुआ की फली और तेदूं पत्ते बीनने के लिए आते रहे हैं और इससे उनकी बसर होती है। इसी पहाड़ी से लोगों को लकड़ी और बांस मिलते हैं।
बहरहाल जसपतिया के साथ हुए हादसे के बाद मैदानी इलाके में पड़ने वाली बरकादीन पंचायत के ग्रामीण सहमे हुए हैं। अब पहाड़ी पर चढ़ने की उनकी हिम्मत नहीं हो रही है। कुमनदीन रेलवे स्टेशन से लेकर करुमखेटा तक के रास्ते पर लोगों को यही हिदायत दे दी गई है कि वे बियांग की पहाड़ी पर कदम न रखें।
वीर का कहना है कि माओवादियों ने गांववालों को यह चेतावनी दे रखी थी कि वे पहाड़ी पर नहीं चढ़ें। हाता गांव के एक आदमी ने मुझे बताया था कि मेरी मां के साथ हुए हादसे के बाद पार्टी के किसी व्यक्ति ने हाता गांव में जाकर लोगों को बताया कि वे दो साल तक इस पहाड़ी पर कतई न जाएं।
उधर लातेहार के एसपी माइकल एस राज का कहना है कि सौ वर्ग किलोमीटर के दायरे में बारूदी सुरंगें फैली हुई हैं। इन्हें फौरन साफ करना आसान काम नहीं है। पुलिस भी अपनी पूरी सुरक्षा के बाद इन्हें हटाने के पक्ष में है। राज का कहना है कि इस सिलसिले में एक अभियान चलाने के बाद बारूदी सुरंगों को हटाया जाएगा। उन्होंने कहा कि माओवादियों की इस कुचाल से पता चलता है कि उन्हें लोगों की जान की रत्ती भर चिंता नहीं है।


http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/1-2009-08-27-03-35-27/49427-2013-07-25-04-09-40


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