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न्यूज क्लिपिंग्स् | जूवनाइल एक्ट पर विचार करे सरकार : सुप्रीम कोर्ट

जूवनाइल एक्ट पर विचार करे सरकार : सुप्रीम कोर्ट

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published Published on Jul 15, 2014   modified Modified on Jul 15, 2014
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म और हत्या जैसे गंभीर अपराध के दोषियों द्वारा नाबालिग होने की आड़ लेकर सख्त सजा से बचने पर सवाल उठाया है। साथ ही सरकार से कहा कि वह जूवनाइल एक्ट की समीक्षा करे।

कोर्ट की यह टिप्पणी महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी के उस बयान के एक दिन बाद आई है, जिसमें उन्होंने हिंसक वारदातों को अंजाम देने वाले नाबालिग अपराधियों को भी वयस्कों की तरह सख्त सजा देने की वकालत की थी।

कोर्ट ने कहा, सरकार 18 वर्ष के शख्स के मतदान का अधिकार देती है। उसे सरकार चुनने योग्य परिपक्व मानती है। ऐसे शख्स को रेप, हत्या या नारकोटिक्स लॉ के तहत अपराध करने पर निर्दोष कैसे माना जा सकता है?

जजों ने एटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से कहा, कोई भी नाबालिक एक ही दिन में अपराध करने योग्य नहीं हो जाता। केंद्र सरकार को नौ सितंबर तक जवाब पेश करना है।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, बीते एक दशक में किशोर (16 से 18) अपराधियों द्वारा अंजाम दिए जाने वाले जुर्म में 65 फीसद की वृद्धि दर्ज की गई है। जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस वी गोपाल गौड़ा की पीठ ने कहा, अपराध की कोई तारीख तय नहीं की जा सकती, जैसा कि सरकारी नौकरियों में की जाती है।

वर्तमान में लागू जूवनाइल एक्ट के तहत 18 वर्ष के कम आयु के दोषियों के लिए अधिकतम सजा तीन साल के लिए सुधारगृह में भेजने की है। हालांकि 16 दिसंबर 2012 के दिल्ली गैंगरेप केस के बाद इस पर बहस छिड़ी है।

उस वारदात में 23 वर्षीय पैरामेडिक की छात्रा का दरिंदगी करने वाले छह दोषियों में एक 18 साल से कम उम्र का है, जिसे सबसे कम सजा मिली है।


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