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न्यूज क्लिपिंग्स् | जो मनुष्यता में यकीन रखते हैं-- निवेदिता शकील

जो मनुष्यता में यकीन रखते हैं-- निवेदिता शकील

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published Published on Jan 25, 2016   modified Modified on Jan 25, 2016
रात सर्द हो आयी है. आसमान में धंुधले तारे चमक रहे हैं. रात का लंबा रुपहला दीर्घोच्छवास सुनायी दे रहा है. कमरे के बीचो-बीच रोशनी के छोटे वृत्त से बाहर मैं रोहित वेमुला का खत पढ़ रही हूं. मेरा चेहरा आंसुओं से भीग रहा है. मैं देख रही हूं, सुलगती हुई लकड़ियों से लपलपाती लपटों से उठता हुआ धुआं.

एक ही देश में रहते हुए हम सब एक-दूसरे से कितने अनजाने हैं. सोच रही हूं, जिंदगी से भरपूर 25 साल के नौजवान ने आखिर क्यों आत्महत्या का रास्ता चुना? दुनिया के बारे में वह किस तरह से सोचता था? रोहित वेमुला के खत को पढ़ कर मुझे पाब्लो नेरुदा की कविता याद आती है- ‘शब्द ही खून को खून और जिंदगी को जिंदगी देते हैं. रोहित को हमें उसी तरह याद रखना चाहिए, जिस तरह उसने दुनिया को देखा. उसने कहा, मुझे विज्ञान से प्यार था, सितारों से, प्रकृति से. उसने लिखा, हमारी भावनाएं दोयम दर्जे की हो गयी हैं. हमारा प्रेम बनावटी है. हमारी मान्यताएं झूठी हैं. यह बेहद कठिन हो गया है कि हम प्रेम करें और दुखी न हों. मैं यह खत पढ़ रही हूं, उसे दूर जाते हुए देख रही हूं. और सोच रही हूं कौन है यह मेरा! लगभग मेरे बेटे की उम्र का, मेरे बेटे की तरह! मेरा दोस्त या साथी, या अन्याय के खिलाफ खड़ा होनेवाला एक बेहद संवेदनशील नौजवान, जिसने अपने देश एवं समाज के लिए सपने देखे. जो असमानताओं और जातीय विभेद के खिलाफ उठ खड़ा हुआ था. जो न्यायपूर्ण तरीके से अपनी लड़ाई लड़ रहा था. जो लगातार अपमान सहती, अछूत, शोषणग्रस्त जाति के लिए सम्मानजनक जिंदगी के सपने देख रहा था. जिसने अपनी जिंदगी में गहरे विभेद झेले थे... आखिर ऐसे इनसान को क्यों यही रास्ता चुनना पड़ा?

इस सवाल का जवाब तलाशा ही जाना चाहिए. अगर हमने ऐसा नहीं किया, तो हमें इतिहास कभी माफ नहीं करेगा. हैदराबाद के सेंट्रल यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे रोहित और उसके दोस्तों को हाॅस्टल से निकाल दिया जाना ही रोहित की आत्महत्या की वजह नहीं हो सकती. हमें जाना होगा राजनीति के उस बदबूदार सुरंग में, जहां मनुष्यता नहीं है. किसी भी जाति को, धर्म को, समुदाय को, कौम को, यह अधिकार नहीं है कि वह खुद की श्रेष्ठता का दावा कर सके. किसी के अस्तित्व को नकारने का, उनका दमन और शिकार करने का अधिकार किसी को नहीं है. यह देश उनका भी है. वे ही हैं इस धरती के बेटे. सच तो यह है कि हम आज भी जहां-तहां जाति और धर्म की लकीरें खींच रहे हैं. तो फिर हम क्या करें? क्या हम उन लोगों को मरते हुए देखते रहें, जो न्याय के लिए लड़ रहे हैं और पराजित हैं? यह कैसा विचार है, जो किसी की जान लेता है?

रोहित ने इस रास्ते को चुनने के पहले कितने संघर्ष किये होंगे. रोहित के खत हमारे समाज का वह बदरंग चेहरा है, जहां मनुष्य को मनुष्य की तरह जीने की आजादी नहीं देता. रोहित जानता था कि प्यार में कभी इतनी ताकत नहीं होती कि वह अपने को व्यक्त करने के लिए उपयुक्त शब्द तलाश सके. इसलिए उसने हमेशा खामोशी से प्यार किया. उसने लिखा- ‘‘मुझे माफ करना अगर इसका कोई मतलब नहीं निकले तो. हो सकता है मैं गलत हूं दुनिया को समझने में. प्रेम, दर्द, जीवन और मृत्यु को समझने में. ऐसी कोई हड़बड़ी भी नहीं थी. किंतु मैं हमेशा जल्दी में था. बेचैन था एक जीवन शुरू करने में. मेरे जैसे लोगों का जीवन अभिशाप ही रहा. मैं इस क्षण आहत नहीं हूं, दुखी नहीं हूं, बस खाली-सा हूं...''

ओह! ये शब्द पढ़ कर मेरी रगों में लहू जम गया है. हम कितनी बेशर्मी से कहे जा रहे हैं कि रोहित ने आत्महत्या नोट में ना तो किसी सांसद को और ना ही किसी राजनीतिक दल को जिम्मेवार ठहराया है. यह भयानक है. हम सब रोहित के हत्यारे हैं. हम सब जिम्मेवार हैं एक मां से उसके बेटे को हमेशा के लिए जुदा करने के लिए. यह कितनी भयानक बात है कि सत्ता का व्यवहार ऐसा है, जैसे कि कुछ खास हुआ ही नहीं हो.

कहा जा रहा है कि यह मुद्दा दलित बनाम गैरदलित नहीं है. किस आसानी से, किस सफाई से हमें बहलाया जा रहा है. मैं देख पा रही हूं सुलगती हुई लकड़ियों से लपलपाती लपटों में दुख और गुस्से से भरे चेहरे, जो सूनी आंखों से उठती हुई लपटों को देख रहे थे. और मैं उन्हें भी देख रही हूं, वे अभी भी उन सारे सवालों को तहखानों में बंद रखना चाहते हैं, जो रोहित की आत्महत्या से उभरे हैं. वे उत्सवी नशे की हिंसक मदमाती ज्वार में उसे हमेशा के लिए दफन करना चाहते हैं. पर हमारी उम्मीदें हैं वे बच्चे, जो लड़ रहे हैं. जो सपनों में यकीन करते हैं और उसे पूरा करने की जिद में लहूलुहान हो रहे हैं. वे जानते हैं कि रोहित कहीं नहीं गया, बल्कि उनके भीतर बह रहा है. वह यात्रा कर रहा है असीम आकाश में. हम उसे देख सकते हैं, सितारों में झिलमिलाते हुए.


http://www.prabhatkhabar.com/news/columns/story/715617.html


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