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न्यूज क्लिपिंग्स् | झोपड़पट्टी पुनर्वास योजना पर जन आयोग रिपोर्ट जारी- एनएपीएम

झोपड़पट्टी पुनर्वास योजना पर जन आयोग रिपोर्ट जारी- एनएपीएम

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published Published on Jun 26, 2013   modified Modified on Jun 26, 2013
मुंबई, जून २४: न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) बी. न . देशमुख, उच्च न्यायलय, औरंगाबाद के द्वारा झोपर्पत्ति पुनर्वास योजना पर जन आयोग रिपोर्ट आज लोकार्पित किया गया| योजना में शामिल कुछ हजार झुग्गीवासियो के द्वारा की गयी अनियमितता की शिकायतों पर पूर्ण जाँच के लिए इस इस आयोग का गठन जन आन्दोलनो के राष्ट्रीय समन्वय द्वारा किया गया था| आयोग का गठन इसलिए भी किया गया क्योंकि महाराष्ट्र सरकार न्यायमूर्ति सुरेश की अध्यक्षता में बनी संयुक्त जाँच समिति द्वारा १५ SRA परियोजनाओ की जाँच के २०११ के किये वादे से पीछे हट गयी थी| मेधा पाटकर व् अन्य के द्वारा नों दिन के उपवास के दौरान यह वादा किया गया था जबकि आधिकारिक अधिसूचना को न्यायालय के निर्देशों का गलत कारण बताते हुए बदल दिया गया और शासकीय अधिकारियों की उच्च अधिकार समिति को ही जाँच सौंप दी गयी| जन आंदोलनों के समन्वय से जुड़े घर बनाओ घर बचाओ आन्दोलन व् अन्य संगठनो ने उच्च अधिकार समिति में कोई विश्वास न रखते हुए संघर्ष जारी रखा और इस तरह जनवरी २०१३ में ६ SRA परियोजनाओं की मुख्य सचिव, गृह निर्माण विभाग, महाराष्ट्र शासन की ओर से विशेष जाँच मंजूर करने हेतु महाराष्ट्र सरकार को मजबूर किया|

 

शासन से यह जाँच अब पूरी होने को आई है जबकि न्याय. सुरेश जी की ही अध्यक्षता में इस जन आयोग ने प्रत्यक्ष क्षेत्रीय स्तर पर अध्ययन, जन सुनवाई, विविध रिपोर्ट्स तथा शासकीय और क्षेत्रीय स्तर से प्राप्त जानकारी इत्यादि का कार्यप्रणाली में समावेश किया| इस रिपोर्ट में ६ SRA परियोजनाएं, जिनमे शामिल हैं, शीव कोलीवाडा, इंदिरा नगर (जोगेश्वरी), रामनगर (घाटकोपर), आंबेडकर नगर (मुलुंड), चंदिवाली एवं गोलीबार (खार), की योजनाओ का विस्तृत ब्यौरा एवं विश्लेषण है | इसके साथ साथ जन आयोग ने SRA परियोजनाओं की गहरी जाँच और गृह निर्माण की नयी वैकल्पिक नीति के सुझाव भी दिए हैं|

 

इस रिपोर्ट से यह साफ़ है कि कैसे विकासकों, राजनीतिज्ञों और अफसरशाही के गठजोर ने एक साथ मिलकर रहिवासियों की तुलना में बहुधा बिल्डरों का पक्ष लिया और नियम, कानून तथा स्वयं योजना के उल्लंघन की अनुमति दी है | पात्रता कसौटी के गलत उपयोग और उसमे भ्रष्टाचार के परिणामस्वरूप हजारों परिवारों के पुनर्वास के बिना विस्थापन ने योजना के मूल उद्देश्य (पुनर्वास) को ही दागदार बना दिया है| जन आयोग कि रिपोर्ट के अनुसार बहुत सारे लोगों को पंजीकृत करारनामे के अभाव में धोखा दिया गया| इन लोगो को ट्रांजिट कैंप या किराये के मकानों में रहने के लिए भेज दिया गया है जिनका किराया भी उन्हें समय से नहीं मिलता| अत्यचार और दवाब कि अनेकों कहानियाँ आयोग को सुनने को मिली जिसमे दशकों पुराने समुदाय के अधिकार का उल्लंघन करते हुए उन्हें पहले भय व कुछ लुभावने तरीके दिखाकर बाहर निकल गया और अब उन्हें भुला दिया गया है| परेशान करने के तरीके के तौर पर रहिवासियो के खिलाफ झूठे मुक़दमे लगाये गए हैं और उनसे पुलिस द्वारा बेवजह गैरजरूरी सवाल पूछा जाता है| रिपोर्ट में पुलिस की कार्यप्रणाली और उनके विकासको के पक्ष में होने का पर्दाफाश किया गया है जिसके तहत रहिवासियो के FIR दर्ज नहीं किये जाते हैं और उन्हें दर दर भटकने और कोर्ट केस में काफी पैसा खर्च करने के लिए छोड़ दिया जाता है|

 

मुंबई जैसे महानगर में जहाँ की ६०% जनता झुग्गी में केवल ९.२४% जमीन पे निवास करती हो, जमीन का हस्तांतरण बिल्डरों को करना (जो की योजना मान्यता देता है) समान भूमि उपयोग के अपेक्षित सिद्धांतों और उद्देश्यों के विरुद्ध है| सामुदायिक जमीनों से निवेशकों और बिल्डरों को जमीन के आवंटन ने राजनीतिज्ञों और दुसरो को भी आगे आने और SRA योजनाओ में भागीदार बनने के लिए आकर्षित किया है| इसने निरीक्षक और लागू करने वाली संस्थायों जैसे SRA और राजस्व विभाग को साफ़ साफ़ बिल्डरों का पक्ष लेने के किये खुला छोड़ दिया है और इस स्थिति में लोगो के पास अपनी शिकायत निवारण का काफी कम या बिलकुल ही नहीं मौका बचा है|

 

CAG रिपोर्ट, जो यह दिखाता है कि SRS के तहत १९९६ से २०११ तक ८ लाख भवनों में से सिर्फ १.५ लाख भवनो का निर्माण कार्य हुआ है, से आगे बढ़कर आयोग का यह निष्कर्ष है कि यह योजना झुग्गीवासियों के सहकारिता को मजबूती देने और उनके बेहतर जीवनस्तर पर पुनर्वास करने में पूरी तरह से विफल है|

 

रिपोर्ट की सिफारिश है कि जाँच के दायरे में आये ६ SRA परियोजना के साथ साथ पूरी Slum Rehabilitation योजना पर ही पुनर्विचार किया जाए| जिन परियोजनाओ में समुदाय की सहमती नहीं ली गयी है उन्हें रद्द किया जाए और स्लम एक्ट १९७१ के उपवाक्य ३क या किसी अन्य कानून के तहत जो जमीन का बड़ा टुकड़ा बिल्डरों को दिया गया है उन्हें वापस लिया जाए| इसके बदले समिति का सुझाव है की लोगों की सहमती और तयारी से समुदायों को पूर्ण सहकारी तरीके से अपनी मजदूरी और कारीगरी इस्तेमाल करके अपनी आवासीय योजना बनाने की अनुमति और प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए जिससे की उनकी जमीन और उनका हक़ उनके अधिकार में रहे|

 

आयोग की सिफारिश के अनुसार, लोगो और जन संगठनो के दृष्टिकोण और सहभागिता से पब्लिक पब्लिक भागीदारी के आधार पर वैकल्पिक आवासीय योजना, जिसमे राजीव आवास योजना भी शामिल है, को लागू करना और प्रभावी बनाना चाहिए| आयोग की यह रिपोर्ट आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति सुरेश एवं सदस्यों की तरफ से महाराष्ट्र राज्य शासन, मुख्यमंत्री, गृह निर्माण विभाग को सौंपी जाएगी तथा उनसे इस पर तत्काल कार्यवाही की मांग भी की जायेगी. इस पर हर बस्तियों में बहस करना भी तय किया गया|

 

 

मेधा पाटकर सुमित वाजले माधुरी शिवकर संदीप येवले जमील भाई मधुरेश कुमार



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