Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | टीबी से निजात पाने की चुनौती-- अरविन्द कुमार सिंह

टीबी से निजात पाने की चुनौती-- अरविन्द कुमार सिंह

Share this article Share this article
published Published on Feb 22, 2018   modified Modified on Feb 22, 2018
यह बेहद चिंताजनक तथ्य है कि दुनिया भर में टीबी (तपेदिक) की राजधानी कहे जाने वाले भारत में इस वर्ष पंद्रह लाख से ज्यादा नए तपेदिकमरीजों की पहचान हुई है। यह खुलासा खुद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट से हुआ है, जिसमें कहा गया है कि 2017 में 1 जनवरी से लेकर 5 दिसंबर के बीच 15,18,008 मरीज मिले हैं। इनमें से 12,05,488 मरीजों की पहचान सरकारी अस्पतालों से हुई है, जबकि निजी अस्पतालों से 3,12,520 मरीजों का पता लगा है। ताजा आंकड़ों को शामिल कर लिया जाए तो अब भारत में टीबी मरीजों की तादाद पैंतीस लाख से ऊपर पहुंच चुकी है।


दिल्ली का नेहरू नगर टीबी को लेकर ‘रेड जोन' में रखा गया है। इस इलाके में सर्वाधिक 2,729 मरीज दर्ज हुए हैं। उत्तर प्रदेश में टीबी के 2,54,717 मरीज दर्ज हुए हैं, जो देश में सर्वाधिक है। इस राज्य में कानपुर जिले को ‘रेड अलर्ट' पर रखा गया है जहां सर्वाधिक 12,863 मरीज पंजीकृत हैं। उत्तर प्रदेश के बाद टीबी के मरीजों के मामले में महाराष्ट्र दूसरे और गुजरात तीसरे नंबर पर है। महाराष्ट्र में टीबी के 1,64,113 तथा गुजरात में 1,23,101 मरीज हैं।


एक ओर, भारत ने 2025 तक टीबी पर नियंत्रण पाने का लक्ष्य सुनिश्चित कर रखा है और इस सिलसिले में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मदद भी दी जा रही है, जबकि दूसरी ओर, यहां टीबी के मरीजों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 2015 में भारत में टीबी के 28 लाख मामले सामने आए थे और उस साल इस बीमारी से 4.8 लाख लोगों की मौत हुई थी। गौर करें तो कमोबेश हर वर्ष टीबी के लाखों मरीज मौत के मुंह में जा रहे हैं। जबकि भारत में टीबी के बहुत सारे मामले दर्ज नहीं होते हैं।


आंकड़े बताते हैं कि दर्ज नहीं होने वाले मामलों में विश्व में हर चौथा मामला भारत का होता है। उदाहरण के लिए, वर्ष 2013 में दस देशों में तपेदिकके तकरीबन चौबीस लाख मामले दर्ज ही नहीं हुए, जिनमें सर्वाधिक संख्या भारतीयों की थी। दरअसल, भारत में टीबी रोग में वृद्धि का मूल कारण जागरूकता की कमी और उचित इलाज का अभाव है। इसी का नतीजा है कि भारत में टीबी के मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है। गौरतलब है कि टीबी माइक्रोबैक्टिरियम टुबरक्लोरसिस नामक जीवाणु के कारण होता है। यह प्रतिवर्ष बीस लाख से अधिक लोगों को प्रभावित करता है।


भारत में हर वर्ष तीन लाख से अधिक लोगों को टीबी के कारण मौत के मुंह में जाना पड़ता है। टीबी का फैलाव इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति द्वारा लिए जाने वाले श्वास-प्रश्वास के द्वारा होता है। केवल एक रोगी पूरे वर्ष के दौरान दस से भी अधिक लोगों को संक्रमित कर सकता है। यह बीमारी प्रमुख रूप से फेफड़ों को प्रभावित करती है। लेकिन अगर इसका समय रहते उपचार न कराया जाए तो यह रक्त के द्वारा शरीर के दूसरे भागों में भी फैल कर उन्हें संक्रमित करती है। ऐसे संक्रमण को द्वितीय संक्रमण कहा जाता है। यह संक्रमण किडनी, पेल्विक, डिंबवाही नलियों या फैलोपियन ट्यूब्स, गर्भाशय और मस्तिष्क को प्रभावित कर सकता है।


टीबी महिलाओं के लिए और घातक साबित होती है। इसलिए कि जब बैक्टिरियम प्रजनन मार्ग में पहुंच जाते हैं तब जेनाइटल टीबी या पेल्विक टीबी हो जाती है जो महिलाओं में बांझपन की वजह बनती है। महिलाओं में टीबी के कारण जब गर्भाशय का संक्रमण हो जाता है तब गर्भाशय की सबसे अंदरूनी परत पतली हो जाती है, जिसके फलस्वरूप गर्भ या भ्रूण के ठीक तरीके से विकसित होने में बाधा आती है। ध्यान देना होगा कि टीबी केवल महिलाओं में बांझपन का कारण नहीं बनता है, इससे पुरुष भी बुरी तरह प्रभावित होते हैं। टीबी के कारण पुरुषों में एपिडिडायमो-आर्किटिस हो जाता है जिससे शुक्राणु वीर्य में नहीं पहुंच पाते और पुरुष एजुस्पर्मिक हो जाते हैं। इसके लक्षण तत्काल दिखाई नहीं देते, और लक्षण दिखाई देने तक यह प्रजनन क्षमता को पहले ही नुकसान पहुंचा चुके होते हैं।


आंकड़े बताते हैं कि टीबी से पीड़ित हर दस महिलाओं में से दो गर्भधारण नहीं कर पाती हैं। जननांगों की टीबी के चालीस से अस्सी प्रतिशत मामले महिलाओं में ही देखे जाते हैं। अधिकतर वे लोग इसकी चपेट में आते हैं जिनका रोग प्रतिरोधक तंत्र कमजोर होता है और जो संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आते हैं। जब संक्रमित व्यक्ति खांसता या छींकता है तब बैक्टिरिया वायु में फैल जाते हैं और जब हम सांस लेते हैं तो ये हमारे फेफड़ों में पहुंच जाते हैं। महिलाओं के साथ बच्चों के लिए भी टीबी एक बहुत बड़ा खतरा है। कमजोर तबकों के बच्चे अन्य लोगों की तुलना में टीबी के दायरे में ज्यादा होते हैं। ऐसे में आवश्यक हो जाता है कि टीबी की जद में आने वाले बच्चों के तत्काल इलाज की व्यवस्था की जाए।


बीसीजी का टीका बच्चों में टीबी के उपचार में काफी हद तक कारगर साबित हो रहा है। आमतौर पर टीबी के साधारण लक्षण होते हैं जिनकी आसानी से पहचान की जा सकती है। तीन सप्ताह से अधिक समय से खांसी या थूक के साथ खून आए तो सतर्क हो जाना चाहिए। टीबी की जद में आने वाले व्यक्ति को अकसर रात्रि के समय ज्वर आता है और धीरे-धीरे उसका वजन कम होता जाता है। उसे भूख भी नहीं लगती और शरीर कमजोर होता जाता है। अगर ऐसा कुछ लक्षण दिखे तो तत्काल डॉक्टर से परामर्श लेकर उचित इलाज कराया जाना चाहिए।


यह विडंबना है कि भारत में तपेदिक पर काबू पानेकी कई योजनाएं चल रही हैं, लेकिन इस बीमारी ने एड्स को भी पीछे छोड़ दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि गरीबी, कुपोषण, सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों और दवाओं की कमी और सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी योजनाओं के लिए धन की कमी टीबी पर काबू पाने की राह में सबसे बड़ी बाधा हैं। नतीजतन, टीबी के खिलाफ लड़ाई कमजोर पड़ रही है। भारत में सार्वजनिक चिकित्सा व्यवस्था की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। महानगरों और शहरों में तो अस्पताल, नर्सिंग होम, डॉक्टर और दवाएं उपलब्ध हैं लेकिन कस्बों-गांवों की हालत बेहद खस्ता है। वहां न तो डॉक्टर हैं और न ही अस्पताल। भला ऐसे में टीबी पीड़ितों का इलाज कैसे होगा!


बदतर हालात के लिए सरकार की नीतियां ही जिम्मेवार हैं। सरकार स्वास्थ्य को लेकर पर्याप्त गंभीर नहीं है। पिछले दो दशक के दरम्यान सरकारों ने विभिन्न रोगों की रोकथाम और कल्याणमूलक परियोजनाओं के मद में धन की कटौती की है। इसका खमियाजा तपेदिक नियंत्रण कार्यक्रम को भी भुगतना पड़ा है, यानी जरूरत से काफी कम आबंटन के चलते टीबी नियंत्रण कार्यक्रम को कारगर ढंग से नहीं चलाया जा सका। अब भी वही स्थिति है।


स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो सरकार को गैर-जरूरी खर्चों में कटौती करके सार्वजनिक स्वास्थ्य से संबंधित परियोजनाओं को पर्याप्त धन मुहैया कराना चाहिए। इसलिए और भी कि धन की कमी की वजह से टीबी से आधी-अधूरी लड़ाई लड़ी जा रही है, जो बेहद खतरनाक है और इसका खमियाजा देश की भावी पीढ़ी को भुगतना होगा। उचित होगा कि भारत सरकार टीबी पर प्रभावी नियंत्रण की योजना तैयार करे और इस सिलसिले में विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा गैरसरकारी संगठनों को भी साथ जोड़े, ताकि इस खतरनाक बीमारी से निजात पाई जा सके।


https://www.jansatta.com/politics/opinion-about-tuberculosis-tb-disease/583002/


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close