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न्यूज क्लिपिंग्स् | डर्टी मनी : अर्थव्यवस्था का दंश- लालकृष्ण आडवाणी

डर्टी मनी : अर्थव्यवस्था का दंश- लालकृष्ण आडवाणी

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published Published on Aug 22, 2013   modified Modified on Aug 22, 2013
गत सप्ताह लालकिले पर स्वतंत्रता दिवस समारोह में मेरे पास भारत के 13वें नौसेनाध्यक्ष एडमिरल आरएच ताहिलियानी बैठे थे, जो नवंबर, 1987 में सेवानिवृत्त हुए हैं. अचानक ही उन्होंने मुझसे पूछा, मिस्टर आडवाणी, आजकल आप कौन सी पुस्तक पढ़ रहे हो? मैंने उन्हें बताया कि कल ही मुझे डर्टी मनी (गंदा धन) पर एक पुस्तक मिली है, जिसे मैंने पढ़ना शुरू किया है. पुस्तक के लेखक हैं रेमण्ड बेकर. बेकर अमेरिकी व्यवसायी हैं और ग्लोबल फाइनेंशियल इंटिग्रिटी के निदेशक भी. भ्रष्टाचार, हवाला, विकास और विदेशी नीतिगत मुद्दों, विशेषकर विकासशील और संक्रमण से गुजर रही अर्थव्यवस्थों के साथ इसके संबंध, के बारे में वह अनेक वर्षो से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित आधिकारिक स्वर माने जाते हैं.

बेकर मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था के उत्साही समर्थक हैं, जिसे सामान्यतया पूंजीवाद कहा जाता है, जो कि साम्यवाद का विरोधी है. जिस समय मैं यह ब्लॉग लिख रहा हूं, मेरे सामने नयी दिल्ली से प्रकाशित एक समाचार पत्र है जिसमें भारतीय अर्थव्यवस्था की बीमार हालत संबंधी दो पृष्ठों का एक लेख प्रमुखता से प्रकाशित किया गया है. इस लेख में घोषणा की गयी है फ्री मार्केट इन फ्री फॉल. वास्तव में, सभी समाचारपत्रों ने इस खबर को प्रमुखता दी है कि कैसे पिछले सप्ताह से रुपया डॉलर के मुकाबले अब तक के सबसे निचले स्तर पर लुढ़क गया है. पिछले सप्ताह के अंत में बीएसई सूचकांक भी जुलाई, 2009 के बाद से एक अकेले दिन में सबसे बड़ी गिरावट का शिकार हुआ है.

जैसा कि मैंने पूर्व में उल्लेख किया कि वर्तमान में मैं ‘डर्टी मनी’ पर एक पुस्तक पढ़ रहा हूं. पुस्तक का शीर्षक है- ‘कैपिटलिज्मस अकिलीज हील : डर्टी मनी एण्ड हाउ टू रिन्यू द फ्री-मार्केट सिस्टम’ (Capitalism’s Achilles Heel : Dirty Money and How to Renew the Free-Market System). शीर्षक अपने आप में पुस्तक की विषय वस्तु को सार रूप में अभिव्यक्त करता है. 

अकिलीज होमेर की पौराणिक कविता इलियाड का नायक था. वह एक बहादुर और सदैव संघर्षरत रहनेवाला योद्धा था. प्रचलित दंतकथा के अनुसार उसकी मां थेटिस, जो समुद्र देवी थी, ने उसके जन्म के साथ पौराणिक नदी स्टाइवक्स में डुबकी लगवायी, ताकि उसका शरीर नश्वर बन सके. दंतकथा के मुताबिक जब थेटिस ने उसे पानी में उतारा तो उसने उसकी एड़ी को पकड़ा हुआ था, जिसके चलते एड़ी कमजोर रह गयी. अकिलीज की मृत्यु भी उसके एक शत्रु द्वारा उसकी एड़ियों में तीर मारे जाने से हुई थी.

इस पुस्तक के अनुसार एक मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था अति वांछनीय है, बशर्ते कि इसे ईमानदारीपूर्वक डर्टी मनी की बुराई से बचाया जाये, जिससे भ्रष्टाचार और हवाला जैसी बुराइयां पैदा होती हैं. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के केनेडी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट ने कुछ समय पूर्व भारत के बारे में एक दिलचस्प पेपर (आलेखपत्र) प्रकाशित किया, जिसमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका को असफल या असफल हो रहे देश के रूप में वर्णित किया गया. लेखक भारत के बारे में कहता है- भारत का लोकतंत्र, किसी भी कसौटी पर अचंभित कर देनेवाला है, बावजूद सभी प्रकार के दबावों के, यहां स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव होते हैं और सरकार चलानेवाले नियमित रूप से बदलते रहते हैं. अपने सभी पड़ोसियों से अलग. कोई भी यह तर्क नहीं दे सकता कि भारत एक असफल होता या असफल हो चुका देश है.

 इस पेपर को केनेडी स्कूल के प्रोफेसर लंट प्रिट्चेट्ट ने लिखा है. वह विश्व बैंक में काम कर चुके हैं और कुछ समय के लिए नयी दिल्ली में भी रहे हैं. पिट्चेट्ट अपने पेपर में लिखते हैं, भारत सरकार और संभ्रात संस्थानों के उच्च पदों पर बैठे इसके अधिकारी वस्तुत: प्रभावी हैं. भारतीय सर्वोच्च न्यायालय, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस जैसे कुछ विश्वस्तरीय संस्थान यहां हैं.

आइएएस ऐसे अधिकारियों से भरा है जिन्होंने उच्च प्रवेश परीक्षा और चयन प्रक्रिया पास की है, जिससे ऐसा लगता है कि वे हार्वर्ड में ऐसे आते हैं जैसे पार्क  में घूम रहे हों.. और तब भी, जैसा कि मैंने नीचे पूरी तरह से वर्णित किया है, कार्यक्रमों और नीतियों को क्रियान्वित करने की भारत देश की क्षमता कमजोर है और अनेक क्षेत्रों में यह स्पष्ट नहीं है कि इसमें सुधार हो रहा है या नहीं. पुलिस, कर संग्रह, शिक्षा, स्वास्थ्य, विद्युत, जल आपूर्ति- लगभग सभी रोजमर्रा की सेवाओं में- घोर अनुपस्थिति, उदासीनता, अयोग्यता और भ्रष्टाचार है. यह रोजमर्रा की सेवाओं में तो सत्य है ही, मगर इससे भी ज्यादा सिंचाई सुविधाओं या भूमिगत प्रबंधन जैसे अपेक्षाकृत महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भी है.

लंट प्रिट्चेट्ट आगे कहते हैं कि भारत के लिए हमें एक नयी श्रेणी की जरूरत है. तब वह भारत को ए फ्लेलिंग स्टेट (a  flailing state) वर्णित करते हैं. फ्लेल शब्द का शब्दकोश में अर्थ है अपने हाथ या पैरों को अनियंत्रित ढंग से उठाना. प्रिट्चेट्ट ए फ्लेलिंग स्टेट को इस रूप में परिभाषित करते हैं- एक राष्ट्र-राज्य का शीर्ष राष्ट्रीय स्तर पर (और कुछ प्रदेशों में भी) प्रतिष्ठित संस्थान ठीक और काम करनेवाला है, लेकिन यह शीर्ष विश्वसनीय रूप से तंत्रिकाओं और स्नायुओं के माध्यम से अपने अवयवों से ही जुड़ा हुआ नहीं है.

भारत संबंधी 46 पृष्ठीय हार्वर्ड पेपर का शीर्षक है : इज इंडिया ए फ्लेलिंग स्टेट? पेपर की शुरुआत एक भारतीय उपन्यास के प्रश्नोत्तर के सारांश से होती है, जिसमें एक अशिक्षित मजदूर वर्ग का वेटर एक खेल में एक बिलियन रुपये जीत जाता है. बाद में यह उपन्यास एक सफल फिल्म स्लमडॉग मिलियनेयर के रूप में सामने आया. अपने पेपर में स्लमडॉग मिलियनेयर के संदर्भ के बाद प्रिट्चेट्ट व्यंग्यपूर्वक टिप्पणी करते हैं- ‘जैसे-जैसे उपन्यास के उदाहरण में हीरो के जीवन का वास्ता सरकार के लोगों से पड़ता है, उसके साथ बिकाऊपन और आकस्मिक क्रूरता भरा व्यवहार होता है. यह दो कारणों से विशेष उल्लेखनीय है. पहला, सरकार का बुरा व्यवहार इस पुस्तक का कथानक नहीं है और न ही इस पर टिप्पणी है, उल्टे यह चित्रण एक वास्तविक व्यक्ति के जीवन के सत्याभास को बताने के लिए है, ताकि पुस्तक यथार्थवादी लगे और सच्चे भारत से जुड़ी दिखे. दूसरा, इसे किसी विरक्त सुधारवादी ने नहीं लिखा है, अपितु भारतीय विदेश सेवा के एक सक्रिय सदस्य ने लिखा है.

भारतीय राज्य को समझने के लिए ऐसी कल्पित कथा को पढ़ना जरूरी है, क्योंकि कथेतर साहित्य, सरकारी रिपोर्ट, आयोगों की रिपोर्ट, दस्तावेज, जो सरकारी एजेंसियों द्वारा तैयार किये जाते हैं (सरकार के साथ मिल कर काम कर रही विदेशी एजेंसियों सहित), वास्तव में कल्पित कथा ही हैं.

http://www.prabhatkhabar.com/news/36661-dirty-money-economy.html


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