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न्यूज क्लिपिंग्स् | डाकघर बैंकिंग की मुश्किलें-- सतीश सिंह

डाकघर बैंकिंग की मुश्किलें-- सतीश सिंह

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published Published on Jun 7, 2016   modified Modified on Jun 7, 2016
रिजर्व बैंक ने भारतीय डाक को भारतीय पोस्ट पेमेंट बैंक (आइपीपीबी) या भुगतान बैंक का लाइसेंस दे दिया है। केंद्र सरकार ने भी आइपीपीबी शुरू करने की मंजूरी दे दी है। वर्ष 2017 के मार्च में यह बैंक खुल जाएगा और सितंबर, 2017 से काम करना शुरू कर देगा। अभी आइपीपीबी को साढ़े छह सौ शाखाएं खोलने की इजाजत मिली है। इसके लिए साढ़े तीन हजार नए कर्मचारियों की भर्ती की जाएगी। पांच हजार एटीएम भी खोले जाएंगे। यह बैंक पेशेवर तरीके से संचालित किया जाएगा। इस काम में 1.70 लाख कार्यरत मौजूदा डाक कर्मचारी भी सहयोग करेंगे। शुरुआती दौर में यह आठ सौ करोड़ रुपए की पूंजी से काम करना शुरू करेगा, जिसमें चार सौ करोड़ रुपए शेयर के जरिए और चार सौ करोड़ रुपए सरकारी अनुदान की मदद से जुटाए जाएंगे। इस बैंक में सरकार की सौ प्रतिशत हिस्सेदारी होगी। रिजर्व बैंक के निर्देशानुसार भुगतान बैंक में चालू और बचत खाते के तहत एक लाख रुपए तक के जमा स्वीकार किए जा सकेंगे।

यह बैंक डेबिट कार्ड, इंटरनेट बैंकिंग आदि की सुविधा दे सकेगा, लेकिन क्रेडिट कार्ड और कर्ज देने की अनुमति इसे नहीं होगी। इस बैंक को एक साल तक की परिपक्वता वाले सरकारी बांडों में उनकी मांग का न्यूतनम पचहत्तर प्रतिशत निवेश करना अनिवार्य होगा, जबकि अधिकतम पचीस प्रतिशत जमा बैंकों की सावधि और मियादी जमाओं के रूप में रखा जा सकेगा। भुगतान बैंक का स्वरूप सामान्य बैंक से अलग होगा। मौजूदा बैंक नकदी जमा और निकासी पर लेन-देन शुल्क नहीं लेते हैं, क्योंकि वे जमा राशि का उपयोग ब्याज या सूद पर कर्ज देने में करते हैं, जबकि भुगतान बैंक जमा राशि का इस्तेमाल कर्ज देने में नहीं कर सकेंगे। भुगतान बैंक लाभ अर्जित करने के लिए लेन-देन पर शुल्क आरोपित करेंगे। देश में अब भी अठारह करोड़ परिवारों के पास बैंकिंग सुविधाएं नहीं हैं। इस आधार पर आइपीपीबी को उम्मीद है कि एक परिवार हर साल लगभग अठारह हजार रुपए खर्च करेगा, जिससे उसे कारोबार में प्रतिवर्ष करीब तीन लाख चौबीस हजार करोड़ रुपए हासिल होंगे, जिस पर तीन प्रतिशत की दर से लेन-देन शुल्क लगा कर वह लगभग दस हजार करोड़ रुपए हर साल कमा सकेगा। पिछले एक साल में डाक विभाग ने 27,215 डाकघरों को कोर बैंकिंग के नेटवर्क से आपस में जोड़ा है।

बाकी डाकघरों को भी इस नेटवर्क से जोड़ने का प्रस्ताव है। प्रस्तावित आइपीपीबी के विस्तार के लिए अंर्स्ट ऐंड यंग द्वारा सुझाए गए हाइब्रिड मॉडल पर काम किया जा रहा है। इसके तहत मौजूदा डाककर्मी साढ़े छह सौ प्रस्तावित आइपीपीबी शाखाओं का संचालन करेंगे। सबसे पहले आइपीपीबी महानगरों और राज्यों की राजधानियों में अपनी शाखाएं खोलेगा। चार साल के अंदर इसका विस्तार जिला मुख्यालयों तक किया जाएगा। आइपीपीबी के लिए सरकार डाक विभाग का निगमीकरण करेगी। प्रस्तावित ढांचे के तहत विभाग को पांच स्वतंत्र होल्डिंग कंपनियों में विभाजित किया जाएगा, जिसके तहत बैंकिंग और बीमा खंडों के लिए इकाइयां स्थापित की जाएंगी। पहले पांच सौ करोड़ रुपए की न्यूनतम पूंजी अर्हता प्राप्त करने के लिए सरकार के समक्ष इस संबंध में एक कैबिनेट नोट पेश किया गया था। आइपीपीबी पहले पचास शाखाओं के साथ बैंकिंग कारोबार शुरू करना चाहता था। उसने नए बैंक खोलने से जुड़ी शर्तों और औपचारिकताओं को पूरा भी कर लिया था, लेकिन किसी कारणवश यह योजना मूर्त रूप नहीं ले सकी। विभाग ने आधुनिकीकरण और बैंकिंग सेवा के लिए इन्फोसिस, टीसीएस, सिफी, रिलायंस आदि कंपनियों के साथ करारनामा किया था। वित्तीय प्रणाली में सुधार (एफएसआइ) की जिम्मेदारी इन्फोसिस को दी गई थी।

कोर सिस्टम इंटीग्रेटर (सीएसआइ) का काम टीसीएस, डाटा सेंटर का काम रिलायंस और नेटवर्क का काम सिफी को सौंपा गया था। आइपीपीबी इंटरनेट, मोबाइल, डिजिटल बैंकिंग और एसएमएस जैसी सुविधाएं ग्राहकों को मुहैया कराना चाहता है। वित्त वर्ष 2017-18 तक यह अपनी सभी शाखाओं में एटीएम की सुविधा भी देना चाहता है। अनुमान है कि आइपीपीबी से मौजूदा सभी बैंकों को जबर्दस्त चुनौती मिलेगी, क्योंकि वित्तीय समावेशन और अन्य सामाजिक सरोकारों को पूरा करने में यह महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। साथ ही, सूचना एवं प्रौद्योगिकी, परिचालन से जुड़े जोखिम, बैकिंग प्रणाली को मजबूत करने, बढ़ती प्रतिस्पर्धा का मुकाबला करने और ग्राहकों की अनंत इच्छाओं को पूरा करने में भी यह समर्थ है। आजादी के वक्त डाकघरों की संख्या 23,344 थी, जो 31 मार्च, 2009 तक बढ़ कर 1,55,015 हो गई, जो सभी वाणिज्यिक बैंकों की शाखाओं से लगभग दोगुना थी। उल्लेखनीय है कि इनमें से 89.76 प्रतिशत यानी 1,39,144 शाखाएं ग्रामीण इलाकों में थीं। सुदूर ग्रामीण इलाकों में डाकघरों की गहरी पैठ है। ग्रामीणों का इस पर अटूट भरोसा है। ग्रामीण इलाकों में डाककर्मी चौबीस घंटे सेवा देते हैं। आमतौर पर डाककर्मी खेती-बाड़ी के साथ-साथ डाकघर की नौकरी करते हैं। अमूमन डाकघर का कार्य घर से संचालित किया जाता है। ऐसे व्यावहारिक स्वरूप के कारण ही 31 मार्च, 2007 तक डाकघरों में कुल 3,23,781 करोड़ रुपए जमा किए गए थे, जो दिसंबर, 2014 में बढ़ कर छह लाख करोड़ से अधिक हो गए थे।

मौजूदा समय में ग्रामीण इलाकों में पर्याप्त संख्या में बैंकों की शाखाएं नहीं हैं। जहां बैंक की शाखा है, वहां भी सभी लोग बैंक से जुड़ नहीं हैं। इसलिए, कुछ सालों से वित्तीय समावेशन की संकल्पना को साकार करने की दिशा में डिपार्टमेंट आॅफ फाईनेंशियल सर्विसेज, डिपार्टमेंट आॅफ इकोनॉमिक अफेयर्स, डिपार्टमेंट आॅफ पोस्ट और इनवेस्ट इंडिया इकनॉमिक फाउंडेशन द्वारा काम किया जा रहा है। एक अनुमान के अनुसार भारत की कुल आबादी के अनुपात में अड़सठ प्रतिशत लोगों के पास बैंक खाते नहीं हैं। बीपीएल वर्ग में सिर्फ अठारह प्रतिशत के पास बैंक खाता है। फिलवक्त, सार्वजानिक क्षेत्र के बैंकों की कुल शाखाओं का चालीस प्रतिशत ग्रामीण इलाकों में है। जाहिर है, वित्तीय समावेशन को लागू कराना बैंकों के लिए एक गंभीर चुनौती है, जिसके निदान के तौर पर प्रधानमंत्री जनधन योजना लागू की जा रही है। यूरोपीय देशों में डिपार्टमेंट आॅफ पोस्ट द्वारा ‘पोस्टल गिरो' जैसी योजना के माध्यम से नागरिकों को बैंकिंग सुविधा मुहैया कराई जा रही है। इस योजना के तहत यूरोपवासियों को मनीआर्डर के साथ-साथ भुगतान की सुविधा भी घर पर दी जाती है। भारत में भी ऐसा किया जा सकता है।

आज मोबाइल फोन और ग्रामीण इलाकों में डाकघर का बढ़िया नेटवर्क है। आइपीपीबी का फोकस ग्रामीण क्षेत्र पर रहेगा। यह पारंपरिक बैंकिंग के अलावा इंटरनेट और मोबाइल बैंकिंग, बीमा और फीस आधारित सेवाएं, डिजिटल बैंकिंग आदि की सुविधा भी मुहैया करा सकता है। बैंक के माध्यम से जमा और निकासी करना बैंकिंग कार्यवाही का सिर्फ एक पक्ष है। आज प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, पेंशन आदि की सुविधाएं भी बैंकों के माध्यम से उपलब्ध कराई जा रही हैं। इस तरह के कार्यों को आइपीपीबी बखूबी कर सकता है। पिछले कुछ सालों में केवाइसी के अनुपालन में लापरवाही बरतने के कारण बैंकों में धोखाधड़ी की घटनाएं बढ़ी हैं। ऐसी वारदातों के आइपीपीबी में भी होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। आतंकवादी भी आइपीपीबी की इस कमजोरी का फायदा उठा सकते हैं। सुदूर ग्रामीण इलाकों में उनके लिए घुसपैठ करना आसान होगा। लिहाजा, केवाइसी के मुद्दे पर प्रस्तावित आइपीपीबी को सावधानी से काम करना होगा। रिजर्व बैंक चाहता है कि भुगतान बैंक की सेवाओं का लाभ कमजोर तबके तक पहुंच सके। फिलवक्त निजी, सरकारी और विदेशी बैंक वित्तीय समावेशन की संकल्पना को साकार नहीं कर पा रहे हैं। मौजूदा समय में देश के कमजोर और वंचित तबके को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाए बिना देश का सुचारु विकास सुनिश्चित नहीं किया जा सकता।

आजादी के अड़सठ सालों बाद भी देश की आबादी का एक बड़ा तबका अपनी वित्तीय जरूरतें पूरा करने के लिए महाजन, साहूकार आदि पर निर्भर है, जबकि वे गरीबों का शोषण कर रहे हैं, जिसके कारण अक्सर आत्महत्या के मामले प्रकाश में आते हैं। उम्मीद है, आइपीपीबी अपने बड़े नेटवर्क की मदद से वित्तीय समावेशन को अमली जामा पहनाने और लोगों की वित्तीय जरूरतें पूरा करने की दिशा में प्रभावी भूमिका निभा सकता है। सकारात्मक संभावनाओं के बावजूद आइपीपीबी के समक्ष तकनीकी, वित्तीय समावेशन और आर्थिक स्तर पर अनेक चुनौतियां हैं, जिसे एक निश्चित समय-सीमा के अंदर आइपीपीबी को दूर करना होगा, अन्यथा प्रतिस्पर्धा में यह दूसरे भुगतान बैंकों से पिछड़ सकता है। एक बड़ा और व्यापक नेटवर्क वित्तीय समावेशन को लागू करने में मददगार तो जरूर है, लेकिन उसे ‘यूटोपिया' नहीं माना जा सकता। वित्तीय समावेशन का अर्थ होता है हर किसी को बैंक से जोड़ना। बैंक से जुड़े रहने पर ही किसी को सरकारी सहायता पारदर्शी तरीके से दी जा सकती है। लिहाजा, इस संकल्पना को साकार करना आइपीपीबी के लिए आसान नहीं होगा। सवाल है कि क्या डाकघरों को बुनियादी सुविधाओं से लैस किए बिना प्रस्तावित आइपीपीबी को शुरू करना व्यावहारिक कदम है? व्यावहारिकता पर सवाल उठना इसलिए भी प्रासंगिक है, क्योंकि देश के सुदूर ग्रामीण इलाकों में अनेक डाकघर घाटे में चल रहे हैं और इस मुद्दे पर सरकार का रुख अभी तक स्पष्ट नहीं है। कहा जा सकता है कि प्रस्तावित आइपीपीबी तमाम कमियों और खामियों के बाद भी सरकार और आम आदमी की उम्मीदों पर खरा उतर सकता है, लेकिन इसके लिए सरकार को इसकी तमाम चुनौतियों को दूर करना होगा। साथ ही, मौजूदा डाकघर के कर्मचारियों को भी इस दिशा में सकारात्मक भूमिका निभानी होगी।


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