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न्यूज क्लिपिंग्स् | डिजिटल क्रांति के खतरे : केविन रैफर्टी

डिजिटल क्रांति के खतरे : केविन रैफर्टी

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published Published on Jan 4, 2012   modified Modified on Jan 4, 2012
कल्पना करें कि बड़े पैमाने पर सर्वर डाउन या पॉवर फेल की स्थिति में क्या होगा? या अगर विध्वंसक इरादों वाले किन्हीं उन्मादियों ने डिजिटल तंत्र पर कब्जा कर लिया तो क्या परिणाम होंगे?

डिजिटल क्रांति के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसके कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था का केंद्र उत्पादन के स्थान पर वितरण की ओर खिसक रहा है।

पहले एक अच्छी खबर : डिजिटल क्रांति अभी शुरू ही हुई है, लेकिन यह स्पष्ट है कि वह औद्योगिक क्रांति से भी अधिक महत्वपूर्ण सिद्ध होने जा रही है और जीवन व समाज की दशा-दिशा बदलकर रख देने में उसकी भूमिका रेलवे से भी अधिक महत्वपूर्ण होगी। इसके बाद एक ऐसी खबर, जिसे बहुत अच्छी नहीं कहा जा सकता : डिजिटल क्रांति के कारण नौकरियों के संकट की स्थिति निर्मित हो रही है और इसके कारण कई देशों के समक्ष यह सवाल खड़ा हो गया है कि वे अपनी निरंतर बढ़ रही समृद्धि का सम्यक वितरण कैसे करें।


अर्थशास्त्री प्रोफेसर ब्रायन आर्थर कहते हैं कि डिजिटल क्रांति ‘वैकल्पिक अर्थव्यवस्था’ की तरह है और महज २क् वर्षो के अंतराल में यह मौजूदा अर्थतंत्र की तरह सशक्त हो जाएगी। मैककिन्से क्वार्टरली में प्रकाशित अपने एक लेख में वे कहते हैं कि आज से बीस साल पहले किसी हवाई अड्डे पर यात्रियों द्वारा चेक-इन करने या माल भाड़े की औपचारिकताएं पूरी करने के लिए कर्मचारियों की एक पूरी फौज तैनात रहती थी।

लेकिन आज यह होता है कि हवाई अड्डे पर यात्री आते हैं, अपने क्रेडिट कार्ड या फ्रिक्वेंट फ्लायर कार्ड का उपयोग करते हैं और चंद सेकंड बाद उन्हें उनका बोर्डिग पास मिल जाता है। इसी तरह माल भाड़े की औपचारिकताओं का निर्वाह भी डिजिटल तकनीक के जरिये चंद मिनटों में हो जाता है।

आर्थर कहते हैं : ‘जो चीज मुझे सबसे ज्यादा दिलचस्प लगती है, वह यह है कि उन तीन या चार सेकंडों के दौरान क्या होता है, जब आप अपना परिचय पत्र मशीन में डालते हैं और आपको बोर्डिग पास मिल जाता है। जैसे ही आपका कार्ड मशीन में जाता है, एक ऐसी व्यापक प्रक्रिया शुरू हो जाती है, जिस पर पूरी तरह से मशीनों का नियंत्रण है।

आपके परिचयात्मक विवरण प्रमाणित होते ही कंप्यूटर एयरलाइन से आपकी फ्लाइट की स्थिति पता करने लग जाते हैं। साथ ही वे आपकी पूर्व की यात्राओं का विवरण भी पता कर लेते हैं और परिवहन सुरक्षा प्रबंधन (और संभवत: राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी से भी) से आपके विवरणों की जांच करवा लेते हैं।

इसके बाद वे आपकी सीट-चॉइस, आपका फ्रिक्वेंट-फ्लायर स्टेटस और लाउंज तक आपकी पहुंच जैसी विभिन्न सूचनाओं की पड़ताल करते हैं। यह अनदेखी अंडरग्राउंड प्रक्रिया अनेक सर्वरों पर घटित हो रही होती है और वे अन्य सर्वरों से संपर्क बनाए रखते हैं। वे उन सैटेलाइटों से भी संपर्क में रहते हैं, जो आपके गंतव्य के सर्वर से संबद्ध हैं। इसी के साथ वे पासपोर्ट नियंत्रण, आप्रवासन और उड़ानों की निरंतर कनेक्टिविटी पर भी नजर जमाए रहते हैं।’


आर्थर यह भी नोट करते हैं कि जहां विकासशील डिजिटल आर्थिकी में अनेक सर्वर निरंतर संवाद की स्थिति में बने रहते हैं, वहीं भौतिक अर्थव्यवस्था में अनेक प्रक्रियाओं के सूत्र मनुष्य के हाथ में होते हैं। डिजिटल अर्थव्यवस्था का हमारे जीवन में हस्तक्षेप दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। आर्किटेक्ट्स इसी की मदद से बिल्डिंगों की डिजाइन तैयार करते हैं, इसी की मदद से वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाया और ले जाया जाता है, इसी की मदद से कारोबार के सौदे होते हैं और बैंकिंग का समूचा तंत्र संचालित होता है।

निर्माण से लेकर परिकलन और स्वास्थ्य तक लगभग कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है, जो डिजिटल क्रांति से अछूता रह गया हो। आर्थर इसकी व्यापकता और प्रभावशीलता के कारण ही इसे वैकल्पिक आर्थिकी कहते हैं। साथ ही यह इन अर्थो में स्वायत्त भी है कि भले ही डिजिटल तंत्र का निर्माण मनुष्य द्वारा किया गया हो, लेकिन इसके संचालन में मनुष्यों की कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं होती। इसके लिए एक खास शब्द ‘कन्करंट’ का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, जिसका अर्थ है कि डिजिटल जगत समवर्ती है और इसमें हर चीज समांतर रूप से घटित हो रही है।

भौतिक वैश्विक अर्थव्यवस्था का निर्माण औद्योगिक क्रांति के बाद हुआ था और अब वह डिजिटल क्रांति के मार्फत एक ऐसी निरपेक्ष प्रणाली विकसित कर रही है, जो कि औद्योगिक क्रांति से भी महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकती है। यह परिवर्तन की एक ऐसी गुणात्मक प्रक्रिया है, जिसमें कोई सर्वोच्च सीमा नहीं है। ऐसा कोई बिंदु नहीं है, जहां जाकर कोई पूर्ण विराम लगता हो। आर्थर अनुमान लगाते हैं कि यदि युद्धों और महामारियों को छोड़ दिया जाए तो आने वाली सदी की एक ही केंद्रीय कहानी होगी और वह है डिजिटल क्रांति। यह क्रांति एक ऐसी भूमिगत अर्थव्यवस्था का निर्माण करती है, जिसके कारण हम अपने सामान्य जीवन में एक बेहतर जीवन स्तर को प्राप्त करते हैं। साथ ही यह एक आभासी संसार भी रचती है।


बहरहाल, डिजिटल क्रांति के बारे में आर्थर के चाहे जो विचार हों, लेकिन वास्तविक जगत के बारे में उन्हें अपने विचारों की पुन: समीक्षा करनी चाहिए। हवाई अड्डे वाले उदाहरण को ही लें। हो सकता है चेक-इन स्टाफ के कुछ कर्मचारियों की छुट्टी हो गई हो, लेकिन अन्य कार्यो के लिए आपको अब भी कर्मचारियों की फौज का सामना करना पड़ता है। दूसरी तरफ आर्थर डिजिटल अर्थव्यवस्था की संभावित समस्याओं पर भी विचार नहीं करते।

मिसाल के तौर पर कल्पना करें कि बड़े पैमाने पर सर्वर डाउन या पॉवर फेल की स्थिति में क्या होगा? या अगर विध्वंसक इरादों वाले किन्हीं उन्मादियों ने डिजिटल तंत्र पर कब्जा कर लिया तो क्या परिणाम होंगे? आर्थर यह भी भूल जाते हैं कि डिजिटल क्रांति अभी विकसित विश्व का ही एक हिस्सा है और विकासशील देशों में आज भी बहुत सारा काम मनुष्यों द्वारा ही किया जा रहा है। वैसे आर्थर ने जो सबसे महत्वपूर्ण बात कही है, वह है डिजिटल क्रांति के कारण निर्मित हो रही जॉब संकट की स्थिति।

वे कहते हैं कि ड्राफ्टमैन, टेलीफोन ऑपरेटर, टाइपिस्ट, बुककीपर जैसे कई जॉब अब विलुप्त हो रहे हैं। अलबत्ता माल की लदाई जैसे कामों के लिए अब भी मनुष्य की भुजाओं की ताकत की दरकार है, वहीं न्याय और प्रशासन से संबंधित कई क्षेत्रों में भी मानवीय बुद्धि और विवेक का कोई विकल्प नहीं है, लेकिन डिजिटल क्रांति के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसके कारण अर्थव्यवस्था का केंद्र उत्पादन के स्थान पर वितरण की ओर खिसक रहा है। इससे यह मिथक भी झूठा साबित हो रहा है कि अमीर लोग इसलिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे नौकरियों के अवसर निर्मित करते हैं। लेखक विश्वबैंक के पूर्व मैनेजिंग एडिटर व प्लेनवर्डस मीडिया के एडिटर इन चीफ हैं।

http://www.bhaskar.com/article/ABH-digital-revolution-2703875.html


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