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न्यूज क्लिपिंग्स् | डीबीटी का कमाल, सीधे बैंक में पहुंची राहत

डीबीटी का कमाल, सीधे बैंक में पहुंची राहत

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published Published on Jan 28, 2016   modified Modified on Jan 28, 2016
तमिलनाडु में बाढ़ के 32 दिन बाद बांट दी गयी 700 करोड़ की राहत
वर्ष 2015 जाते-जाते तमिलनाडु के कई जिलों को बाढ़ का ऐसा दर्द दे गया, जिसे बाढ़ पीड़ित आसानी से नहीं भूल पायेंगे. लेकिन, वर्ष 2016 की शुरुआत ने उन्हें ऐसी खुशी दी, जिसकी उन्होंने कल्पना नहीं की थी.

बाढ़ पीड़ितों को महज 32 दिन में मुआवजा मिल गया. यह संभव हो पाया एक योजना से, जिसका नाम है डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी). यानी सरकारी योजना का लाभ सीधे बैंक खाते में. मुआवजा बांटने में तेजी को आगामी राज्य विधानसभा चुनाव से जोड़ा जा रहा है, लेकिन डीबीटी अपनाने के लिए केंद्र सरकार से लेकर प्रदेश की विरोधी पार्टियां तक सरकार की सराहना कर रही हैं.

देश में यदि कहीं बाढ़ या सूखा जैसी आपदा आ जाये, तो लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इसके बाद सरकार और प्रशासनिक अधिकारियों को पीड़ितों के बीच मुआवजा बांटने में मगजमारी करनी होती है. लेकिन, जो लोग मुश्किलों से उबरना जानते हैं, जो आपदा को अवसर में बदलने की सोच रखते हैं, वह ऐसी लकीर खींच देते हैं, जिसका अन्य लोग अनुसरण करते हैं. तमिलनाडु की सरकार ने एक ऐसी ही लकीर खींच दी है. दरअसल, उसने एक ऐसी योजना पर अमल किया, जिसने मुआवजा वितरण में आमतौर पर होनेवाले व्यापक भ्रष्टाचार को लगभग पूरी तरह खत्म कर दिया.

जी हां, दिसंबर, 2015 में आयी बाढ़ से लाखों लोग प्रभावित हुए. अरबों रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ. राज्य ने केंद्र सरकार से मदद मांगी. राज्य से पैसे मिले, तो पीड़ितों का सर्वेक्षण करा कर मुआवजा की राशि सीधे उनके बैंक खातों में डाल दिये. देश में शायद यह पहला मौका था, जब 14 लाख लोगों को सिर्फ 32 दिन में मुआवजा मिल गया. बिना शोर-शराबे के 700 करोड़ रुपये लोगों के खाते में पहुंच गये.

सहाया मैरी (30) और उनके जैसे न जाने कितने लोग थे, जिन्हें यह मालूम करने के लिए बैंक जाना पड़ा कि उनके खाते में पैसे कैसे बढ़ गये. 

अडयार नदी के किनारे रहनेवाली सहाया मैरी को पता ही नहीं चला कि उनके बैंक में 5,000 रुपये किसने जमा कर दिये. एक दिन वह बाजार जा रही थीं. 

उनके मोबाइल पर एसएमएस आया कि उसके खाते में 5,000 रुपये डाले गये हैं. मैरी (30) बाजार का काम छोड़ कर सीधे बैंक पहुंचीं. वहां उन्हें बताया गया कि बाढ़ में उसके घर को जो नुकसान हुआ था, उसके लिए सरकार ने 5,000 रुपये मुआवजा दिये हैं. मैरी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह बताती हैं कि दो दिसंबर, 2015 को चेन्नई में आयी बाढ़ में उसका परिवार भी प्रभावित हुआ था.

मैरी ने बताया कि वर्ष 2004 की सुनामी में भी उसके घर को नुकसान हुआ था. लेकिन, तब मुआवजे के लिए उन्हें महीनों इंतजार करना पड़ा था. आधे-अधूरे मुआवजे के लिए उसके परिवार को कई दिन तहसील कार्यालय के चक्कर काटने पड़े थे. घंटों लाइन लगानी पड़ी थी. तब भी जयललिता की ही सरकार थी. मुआवजा बांटने की जिम्मेदारी पार्टी कैडरों पर थी. उन्होंने पहले ‘अम्मा स्टिकर' छपवाये. उसे राहत सामग्री पर चिपकाया और उसके बाद इसका बंटवारा शुरू हुआ. इसमें भी काफी समय लग गये. ऊपर से स्थानीय नेता एहसान जताते थे सो अलग.

लेकिन, इस बार ऐसा नहीं हुआ. उसे मुआवजा मिल गया, बिना किसी सिफारिश के. बिना किसी की मिन्नत किये. बिना किसी परेशानी के. यह सब संभव हुआ बैंकिंग की सुविधा उपलब्ध होने और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) योजना को लागू किये जाने से. तमिलनाडु में अधिकांश लोग बैंकिंग सुविधा का लाभ उठा रहे हैं. यहां 87 फीसदी परिवारों के बैंक में खाते हैं. चेन्नई जैसे शहरी इलाकों में निजी या सरकारी बैंक में हर परिवार का एक या उससे अधिक खाता है. बाढ़ राहत राशि पानेवालों में 5.1 लाख लोग ऐसे हैं, जिनका खाता ‘जन-धन' योजना के तहत खोला गया. राहत राशि को सीधे खाते में डाले जाने से बिचौलियों की भूमिका खत्म हो गयी और भ्रष्टाचार के रास्ते बंद हुए.

ज्ञात हो कि 15, 16 नवंबर और एक दिसंबर, 2015 को हुई भारी बारिश के कारण चेन्नई समेत कई जिलों में भीषण बाढ़ आ गयी. अडयार नदी उफना गयी.

नदी का पानी दक्षिण चेन्नई समेत नंदमबक्कम, सैदापेट, मुदिचुर, नंदनम और कोट्टुपुरम के घरों में घुस गया. चार जनवरी, 2016 को राज्य सरकार ने 14 लाख परिवारों के बैंक खातों में 700 करोड़ रुपये मुआवजा पहुंचा दिया. राशि बाढ़ प्रभावित जिलों चेन्नई, कांचीपुरम, तिरुवल्लूर और कुड्डालोर के लोगों के खातों में डाली गयी. महज 32 दिन के अंदर किया गया मुआवजा भुगतान संभवत: देश का सबसे कम समय में किया गया मुआवजा भुगतान है.

जयललिता सरकार की इस पहल की केंद्रीय टीम से लेकर विरोधी दल तक तारीफ कर रहे हैं. वे लोग भी, जो बाढ़ के समय चेंबरमबक्कम जलागार से पानी छोड़े जाने को लेकर अन्नाद्रमुक सरकार के जल प्रबंधन की आलोचना कर रहे थे.
ओड़िशा व अन्य राज्यों में क्या है व्यवस्था?

ओड़िशा, बिहार और अन्य राज्यों के लिए एक नजीर है, जहां लोगों को लगभग हर साल बाढ़ या सूखा के बाद मुआवजे के लिए तालुका कार्यालयों के चक्कर लगाने पड़ते हैं. भ्रष्ट अधिकारियों की जेबें गर्म करनी पड़ती हैं. 

यहां की सरकार जिला कलक्टरों को राहत राशि का चेक भेजती है. फिर इसे तालुका कार्यालयों के जरिये प्रभावित लोगों में बांटा जाता है. हालांकि, ओड़िशा के मुख्यमंत्री राहत कोष में सारे दान बैंकों के जरिये आते हैं. फिर इन्हें जिला कलक्टरों के मार्फत प्रभावित लोगों में बांटा जाता है.

http://www.prabhatkhabar.com/news/vishesh-aalekh/story/716914.html


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