Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | ताकि पारदर्शी हो व्यवस्था - महेश राठी

ताकि पारदर्शी हो व्यवस्था - महेश राठी

Share this article Share this article
published Published on Dec 22, 2011   modified Modified on Dec 22, 2011
देश में सूचना का अधिकार एक ऐसी क्रांति के रूप में आया है, जिसमें न हिंसा है, न ही किसी के अधिकारों का अतिक्रमण। व्यवस्था में पारदर्शिता और जनवादी मजबूती के लिए सिर्फ सवाल हैं और जानकारी की चाह है। यह क्रांति जिस गति से देश के हर हिस्से में दस्तक दे रही है, आरटीआई के अग्रणी कार्यकर्ताओं पर हमलों के रूप में इस जनवादी संकल्पना के लिए चुनौतियां भी उसी तेजी से बढ़ रही हैं। इस लोकतांत्रिक पारदर्शिता और खामोश जनवादी क्रांति को बचाने के लिए ह्विसल ब्लोअर बिल को जहां संसद की मंजूरी मिली, वहीं लोकपाल पर काम जोरों पर है।

भारत के गणराज्य बनने और संविधान के लागू होने के बाद से देश के नागरिकों के पास सूचना प्राप्त करने का अधिकार तो था, लेकिन यह अधिकार उसे लंबी न्यायिक प्रक्रिया के बाद ही हासिल हो पाता था। 13 अक्तूबर, 2005 को सूचना अधिकार अधिनियम द्वारा भारत सरकार ने इसे सर्वसुलभ बना दिया। सूचना अधिकार अधिनियम के पीछे का दर्शन स्पष्ट है ः सरकारी कार्यप्रणाली में खुलापन और पारदर्शिता लाकर जनवाद की मजबूती के लिए नागरिकों का सशक्तिकरण करते हुए उनकी भागेदारी बढ़ाना। सूचना प्राप्ति की यही सरलता और परिवर्तन की मौन पदचाप भ्रष्ट तंत्र के लिए बौखलाहट का कारण बन रही है।

आरटीआई कार्यकर्ता लगातार इस बौखलाहट का शिकार हो रहे हैं। आरटीआई कार्यकर्ताओं पर अभी तक हुए बीस से अधिक हमलों में दर्जनों लोग मारे जा चुके हैं। ये समाज के ऐसे लोग हैं, जिन्होंने आरटीआई कानून का सहारा लेकर अनेक स्तरों पर सरकारी संस्थाओं के भ्रष्टाचार से लेकर भूमाफिया के घोटालों और राजनीतिक अनियमिततओं को उजागर किया है। परंतु आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या कुछ सवाल जरूर खड़े करती हैं।

दरअसल सूचना अधिकार अधिनियम एक ऐसा प्रावधान है, जो वर्तमान सरकारी ढांचे के भीतर रहकर ही काम करता है। इसके लिए अलग से कोई स्वायत्त विनियामक संस्था नहीं है, जो इन प्रयासों का बचाव कर सके। वास्तव में यह जनवाद के विकास की एक बेहद त्रासद और जटिल अवस्था है, जिसमें सूचना अधिकार कानून को उसी तंत्र में रहकर काम करना है, जिसकी अनियमितताओं को उजागर करने का दायित्व पूरा करने के लिए उसका गठन हुआ है। इसकी दिक्कत यह है कि वर्तमान शासन प्रणाली के भीतर रहकर स्वायत्तता को न केवल बनाए रखते हुए, बल्कि उसे व्यवस्था को साफ करने की जिम्मेदारियां भी पूरी करनी हैं।

लेकिन शासन प्रणाली में रहकर काम करते हुए स्वायत्तता अकसर शासक वर्ग से प्रभावित होती है। राज्यों और केंद्र की सूचना आयोगों में नियुक्ति की अपनी कोई स्वायत व्यवस्था नहीं है, इसलिए उनको नियुक्त करने वाला तंत्र उन्हें प्रभावित करता है। फिर आरटीआई के तहत भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने और भ्रष्टों को दंडित करने के लिए कोई विनियामक संस्था नहीं है। शासकीय अनियमितताओं, माफिया और राजनीति का यह गठजोड़ ही पारदर्शिता आंदोलन के कार्यकर्ताओं पर जानलेवा हमलों का दुस्साहस करता है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि आरटीआई एक ऐसा लोकतांत्रिक औजार है, जो शासन प्रणाली से अनियमितताओं और भ्रष्टाचार को मिटाते हुए आम आदमी में जनवादी जागरूकता का प्रसार करता है। लेकिन इस जागरूकता को बचाए रखने के लिए दो स्तरों पर इस अधिनियम को सशक्त करने की जरूरत है। एक तो ऐसी विनियामक संस्था का गठन किया जाए, जो इस अधिनियम के जरिये भ्रष्टाचार के दोषी पाए गए व्यक्तियों या संस्थाओं को तुरंत दंडित कर सके। दूसरे, सूचना आयोग को एक ऐसे स्वायत्तशासी संस्थान के रूप में विकसित करना चाहिए, जिसमें भरती से लेकर नियुक्ति तक कोई बाहरी दखल न हो।

अब आरटीआई से उजागर इन्हीं प्रशासनिक अनियमिततओं पर अंकुश लगाने और निरंकुशता को विनियमित करने के लिए ह्विसल ब्लोअर विधेयक का रास्ता साफ किया गया है। सूचना अधिकार का कानून रहते हुए यदि आरटीआई कार्यकर्ता निशाने पर आते रहे, तो नागरिक अधिकारों के विस्तार का यह कर्म वर्तमान सुविधाभोगी भ्रष्ट राजनीति द्वारा प्रायोजित एक जनवादी तमाशा भर बनकर रह जाएगा।

http://www.amarujala.com/Vichaar/Aalekh/System-to-be-transparent-4-2-2134.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close