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न्यूज क्लिपिंग्स् | ताकि बदले औरतों का हाल-- मरियाना बाबर

ताकि बदले औरतों का हाल-- मरियाना बाबर

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published Published on Oct 23, 2015   modified Modified on Oct 23, 2015
साउथ एशिया वुमैन'स नेटवर्क (स्वान) दक्षिण एशिया के नौ देशों की विदुषियों, महिला सांसदों, नेत्रियों, विशेषज्ञों और महिला कार्यकर्ताओं का एक संगठन है। ये नौ देश हैं-अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका। यह संगठन मुख्यतः पर्यावरण, कला और साहित्य, शांति, स्वास्थ्य, पोषण और खाद्य सुरक्षा, शिक्षा, शिल्प और वस्त्र, वित्त, आजीविका और उद्यम विकास तथा मीडिया में महिलाओं की भूमिका पर अपना ध्यान केंद्रित करता है। यह संगठन मानता है कि दक्षिण एशिया बदलाव की राह पर है और इस बदलाव की दिशा महिलाएं तय कर सकती हैं।

पूर्व भारतीय राजदूत वीना सीकरी स्वान की मुखिया हैं। इसके अलावा इसमें वे विशेषज्ञ महिलाएं हैं, जिनका अपने क्षेत्र में काम करने का वर्षों का अनुभव है। स्वान के सालाना वार्षिक सम्मेलन में इस बार भारत में राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ललिता कुमारमंगलम मौजूद थीं, जिन्होंने भाषण में अपने अनुभव साझा किए। नौ देशों का जो समूह मीडिया से समन्वय बनाता है, उसका महत्व कम नहीं है।

वीना सीकरी कहती हैं, 'बदलाव की इस प्रक्रिया में मीडिया की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। मीडिया इस क्षेत्र में हो रहे बदलाव को केवल दर्ज ही नहीं करता, बल्कि वह मध्यस्थ, मददगार और यहां तक कि बदलाव के प्रवक्ता की भूमिका निभाता है। हम चाहते हैं कि दक्षिण एशिया की औरतें, खासकर मीडिया में काम करने वाली महिलाएं इस बदलाव की सक्रिय कार्यकर्ता बनें।'

स्वान का सातवां वार्षिक सम्मेलन मालदीव के मनमोहक रिसॉर्ट द्वीप एडेरन सिलेक्ट हुदरुनफुशी में हुआ, जहां मालदीवियन नेटवर्क ऑफ वुमैन राइट्स की अध्यक्ष डॉ मरियन शकीला ने फातिमा आफिया और शीजा इमदाद जैसी महिला कार्यकर्ताओं के साथ शानदार काम किया है। 'दक्षिण एशिया में महिला सशक्तिकरण' इस आयोजन की थीम था। इसके अलावा दक्षिण एशिया में टिकाऊ विकास और लैंगिक समानता के मुद्दे पर भी वक्ताओं में आकर्षण था। खासकर मालदीव में टिकाऊ विकास पर विमर्श इसलिए भी ध्यान खींचने वाला था, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण वह देश धीरे-धीरे डूब रहा है।

स्वान के पिछले छह वार्षिक आयोजनों से यह साफ हुआ है कि दक्षिण एशिया में महिलाओं के पिछड़ेपन की वजह दरअसल महिलाओं के प्रति सोच है। यह सोच ही दक्षिण एशिया में महिलाओं के सम्मान, समानता और सशक्तिकरण की राह में रोड़ा है। यहां की पितृसत्तात्मक व्यवस्था परिवार और समाज में महिलाओं को दोयम दर्जे की भूमिका ही देती है। नतीजतन इस क्षेत्र की महिलाएं हिंसा का शिकार होती हैं। इस क्षेत्र की बच्चियों को शिक्षा से रोका जाता है, तो यहां की महिलाओं को स्वास्थ्य, यहां तक कि मातृत्व से जुड़ी स्वास्थ्य सुविधाओं से भी वंचित रखा जाता है। औरतों को पर्दे से बाहर निकालने के पक्ष में आवाजें उठती हैं।

जैसा कि ललिता कुमारमंगलम कहती हैं, 'चूंकि शिक्षा और सशक्तिकरण काफी नहीं हैं, इसलिए महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।' वीना सीकरी कहती हैं, 'दक्षिण एशिया की महिलाएं बातचीत की मेज पर नहीं हैं। स्वान का मानना है कि महत्वपूर्ण वार्ताओं में महिलाओं की हिस्सेदारी होनी चाहिए। लैंगिक समानता में दक्षिण एशिया का रिकॉर्ड बदतर है।' श्रीलंका की एक भागीदार ने दिलचस्प टिप्पणी की कि उनके राष्ट्रपति ने बलात्कारियों को मृत्युदंड देने के मामले में बहस शुरू की है।

अलबत्ता हताशाएं भी कम नहीं। मसलन, बहस के दौरान मालदीव की पूर्व महान्यायवादी आजिमा शुकूर ने स्वीकार किया कि बलात्कार के उन मामलों की पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करने की उन्होंने कभी सलाह नहीं दी, जिनमें बलात्कारी कोई परिचित रहा हो। यह अच्छी बात थी कि उनके इस खुलासे का किसी ने भी समर्थन नहीं किया, बल्कि वहां मौजूद भागीदारों के लिए यह खुलासा स्तब्ध करने वाला था कि इतनी बड़ी कद की कोई शख्सियत ऐसा भी कर सकती हैं। लेकिन यह खुलासा इस पूरे इलाके की अपराध न्याय व्यवस्था के बारे में बताने के लिए काफी है।

चूंकि इस क्षेत्र की वास्तविकता बदल रही है, ऐसे में स्वान का मानना है कि मौजूदा दौर में महिलाओं की समस्याएं और उनकी चुनौतियां भी बदल रही हैं। लिहाजा स्वान अब शांति स्थापना में, प्राकृतिक दुर्योगों को कम करने में, युद्धरत क्षेत्रों में यौन अत्याचार, बलपूर्वक विस्थापन, ताकत के बल पर लोगों को गायब कर देने आदि की रिपोर्टिंग करने में महिलाओं की भूमिका बढ़ाने पर बल दे रहा है। इसके अलावा स्वान महिला पत्रकारों को उनके कानूनी अधिकारों के बारे में भी बताना चाहता है। जहां तक प्राकृतिक आपदाओं की बात है, तो स्वान के मंच से अलग-अलग देशों की प्रतिनिधि इनसे निपटने की अपनी तैयारियों के बारे में बता सकती हैं, जिनका लाभ पूरे दक्षिण एशिया को मिलेगा। यह मंच ऐसी आपदाओं से निपटने की रणनीति बनाने के लिए भी माकूल है, क्योंकि इनसे सर्वाधिक प्रभावित महिलाएं और बच्चे ही होते हैं।

स्वान में मीडिया वर्किंग ग्रुप को मजबूत बनाने की बात संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की स्थायी प्रतिनिधि मलीहा लोधी भी करती हैं, जो इस संगठन से जुड़ी हुई नहीं हैं। खुद स्वान का भी मानना है कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक जैसे पारंपरिक मीडिया और न्यू मीडिया में भी लैंगिक न्याय और स्वतंत्रता पर उतना जोर नहीं दिया गया है। साफ है कि दक्षिण एशिया में महिलाओं की स्थिति बदलने में स्वान के मीडिया समूह की भूमिका निर्णायक साबित हो सकती है।

-लेखिका पाकिस्तान की वरिष्ठ पत्रकार हैं


http://www.amarujala.com/news/samachar/reflections/columns/change-the-condition-of-women-hindi/


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