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न्यूज क्लिपिंग्स् | तीन साल बाद भी आरटीआइ एक्टिविस्ट को नहीं मिली सूचना

तीन साल बाद भी आरटीआइ एक्टिविस्ट को नहीं मिली सूचना

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published Published on Jun 10, 2014   modified Modified on Jun 10, 2014

पटना: लोक सूचना का अधिकार (आरटीआइ) कानून को लेकर सरकार भले ही बड़े-बड़े दावे करे, मगर स्थिति है कि एक सूचना हासिल करने में आवेदक के जूते तक घिस जाते हैं. तमाम दबाव के बावजूद अपने रुख पर कायम रहने की स्थिति में उनको प्रताड़ना भी ङोलनी पड़ती है.

ऐसा ही एक मामला बख्तियारपुर प्रखंड का है. आरटीआइ एक्टिविस्ट रामप्रवेश राय ने प्रखंड में लगे सोलर लाइट से जुड़ी जानकारी की मांग को लेकर अगस्त 2011 में ही आरटीआइ आवेदन दिया था. लगभग तीन साल होने को आये, मगर उनको अब तक जवाब नहीं मिल सका है. उल्टे हरिजन एक्ट से जुड़े एक मामले में फंसा दिया गया.

बीडीओ से लेकर आयोग तक लगायी गुहार: बख्तियारपुर की चंपापुर पंचायत के देदौर गांव निवासी आरटीआइ एक्टिविस्ट रामप्रवेश राय ने सूचना की मांग के लिए बीडीओ से लेकर राज्य सूचना आयोग तक गुहार लगायी, मगर हल नहीं निकल सका. आखिरकार उन्होंने परेशान होकर बीते दो जून को आत्मदाह का फैसला किया. श्री राय की मानें तो सोलर प्लेट लगाने में बड़े पैमाने पर धांधली की गयी है. बीआरजीएफ के तहत इसके लिए वर्ष 2008-09 में 4.74 लाख रुपये की राशि आवंटित हुई. कुछ सोलर प्लेट लगे भी तो उसे मुखिया ने चोरी करवा ली. उन्होंने कहा कि मामले की गंभीरता को देखते हुए हाइकोर्ट में भी केस किया गया है.

कब-कब क्या

सोलर लाइट से जुड़ी जानकारी के लिए 27 अगस्त, 2011 को बख्तियारपुर प्रखंड कार्यालय में आवेदन किया.

तीन महीने बाद स्पीड पोस्ट से एक कागज मिला, जिस पर आधी-अधूरी सूचना थी. वह न तो लेटर हेड पर लिखा था और न ही उस पर किसी दिनांक या पत्रंक संख्या का उल्लेख था.

इसके विरोध में प्रथम अपीलीय पदाधिकारी सह बाढ़ एसडीओ के पास अपील की. इसकी सुनवाई करते हुए बाढ़ एसडीओ ने बख्तियारपुर बीडीओ को 11 अक्तूबर, 2012 को चिट्ठी भेजी. इस चिट्ठी में अपीलार्थी की मांग का समर्थन करते हुए सूचना उपलब्ध कराने को कहा गया.

इसके बाद भी सूचना नहीं मिलने पर राज्य सूचना आयोग में अपील की. आयोग ने 21 फरवरी 2013 को बीडीओ को नोटिस जारी किया. इसमें उनको जानबूझ कर सूचना नहीं देने का दोषी मानते हुए तत्काल सूचना उपलब्ध कराने को कहा गया. सूचना नहीं दिये जाने की स्थिति में 250 रु प्रति दिन की दर से अर्थदंड देने का आदेश भी दिया.

सूचना आयोग की कार्रवाई से भड़के बीडीओ ने मुखिया और थाना प्रभारी के साथ मिल कर उनको हरिजन एक्ट के एक झूठे मुकदमे में फंसा दिया. इसमें उनके ऊपर इंदिरा आवास में 15 हजार रुपये कमीशन मांगने का आरोप लगाया गया.

आयोग ने 20 अगस्त 2013 को सुनवाई की. इसमें बीडीओ को उपस्थित होना था, मगर नहीं हुए. इसके चलते उन पर 25 हजार रुपये का फाइन लगाया गया. फाइन की राशि उनके वेतन से काटने का आदेश दिया गया.

 इसके बाद भी सूचना नहीं मिली तो उन्होंने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर राज्यपाल, सीएम, डीजीपी, सामान्य प्रशासन विभाग और आइजी कमजोर वर्ग को भी चिट्ठी लिख कर पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी. इसके बावजूद किसी अधिकारी ने मामले की जांच करना तक उचित नहीं समझा.

 08 जनवरी, 2014 को पटना डीएम ने एसडीओ को चिट्ठी लिखी. डीएम की चिट्ठी के आलोक में एसडीओ ने 09 जनवरी, 2014 को पत्र लिख कर बीडीओ से पूछा कि उन्होंने आदेश के बावजूद अब तक दोषी मुखिया और तत्कालीन पंचायत सचिव पर अब तक एफआइआर दर्ज क्यों नहीं कराया. सूचना नहीं देने तक बीडीओ का वेतन बंद करने का आदेश भी दिया गया.

 इतना होने पर भी जब एफआइआर नहीं हुआ तो आवेदक ने 02 जून को आत्मदाह की चेतावनी देते हुए वरीय अधिकारियों को इसकी सूचना दी. डीजीपी के हस्तक्षेप पर उनको आश्वासन देकर आत्मदाह से रोका गया और दो दिन के अंदर एफआइआर की बात कही गयी.

फिलहाल बीडीओ का ट्रांसफर हो चुका है और उनकी जगह पर नये बीडीओ की पदस्थापना हो गयी है. सूचना देने के नाम पर अब भी उनको टहलाया जा रहा है.


http://www.prabhatkhabar.com/news/121196-story.html


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