Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | तेल पर निर्भरता घटाने का वक्त - डॉ. जयंतीलाल भंडारी

तेल पर निर्भरता घटाने का वक्त - डॉ. जयंतीलाल भंडारी

Share this article Share this article
published Published on Jul 17, 2018   modified Modified on Jul 17, 2018
भारत ने देर से ही सही, तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक पर कच्चे तेल की कीमतों में कटौती के लिए दबाव डालते हुए उचित कदम उठाया है। यद्यपि 1 जुलाई से ओपेक ने कच्चे तेल के उत्पादन में लगभग 10 लाख बैरल प्रतिदिन (बीपीडी) की बढ़ोतरी की है, लेकिन हकीकत यह है कि कीमतें अब भी कम नहीं हो पाई हैं। नि:संदेह बीते कुछ वक्त से तेल की लगातार बढ़ती कीमतें भारत के लिए चिंता का सबब बनी हुई हैं। भारत अपनी जरूरत का अस्सी फीसदी कच्चा तेल आयात करता है। जाहिर है, तेल की बढ़ती कीमतों से देश का आयात बिल भी बढ़ रहा है। इससे देश में डॉलर की मांग बढ़ गई है और इस कारण विदेशी मुद्रा कोष में तेजी से गिरावट आ रही है। गौरतलब है कि11 जुलाई को देश के विदेशी मुद्रा कोष का स्तर 405 अरब डॉलर रह गया, जो एक माह पहले 425 अरब डॉलर के स्तर पर था। डॉलर की मांग बढ़ने से भारतीय रुपए के मूल्य में भी गिरावट आ रही है।

 

हाल ही में दुनिया की ख्यात क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने कहा है कि अमेरिका और चीन के बीच छिड़े ट्रेड वार, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के बढ़ती कीमतों और रुपए की कीमत में ऐतिहासिक गिरावट से अब पेट्रोल और डीजल में आ रही तेजी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा खतरा है। दुनिया के मशहूर निवेश बैंकों- बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच, मार्गन स्टेनले और ग्लोबल ब्रोकरेज फर्म सीएलएसए द्वारा भी कुछ ऐसी ही आशंकाएं जाहिर की गई हैं। अर्थ विशेषज्ञों का कहना है कि कोई एक-दो दशक पहले मानसून का बिगड़ना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए आर्थिक-सामाजिक चिंता का कारण बन जाया करता था, लेकिन अब मानसून के धोखा देने पर भी अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों को काफी कुछ नियंत्रित कर लिया जाता है। जबकि कच्चे तेल की कीमतें अंतरराष्ट्र्रीय हलचलों और तेल उत्पादक देशों की नीतियों से प्रभावित होती हैं, जिस पर भारत का नियंत्रण नहीं है।

 

यहां पर तेल आयात को लेकर भारत के समक्ष एक और बड़ी चिंता सामने है। पिछले दिनों अमेरिका ने भारत और चीन सहित सभी देशों को ईरान से कच्चे तेल का आयात 4 नवंबर तक बंद करने के लिए कहा है। उसका यह फरमान न मानने वाले देशों पर उसने सख्त आर्थिक प्रतिबंध लगाने की धमकी दी है। जाहिर है, इससेे भारत के समक्ष एक तरह की विकट स्थिति पैदा हो गई है। भारत में इराक और सऊदी अरब के बाद सबसे ज्यादा कच्चा तेल ईरान से मंगाया जाता है। ईरान को भारत के द्वारा यूरोपीय बैंकों के माध्यम से यूरो में भुगतान किया जाता है। डॉलर की तुलना में यूरो में भुगतान भारत के लिए लाभप्रद है। इसके अलावा ईरान से किया जाने वाला कच्चे तेल का आयात सस्ते परिवहन के चलते भी भारत के लिए फायदेमंद है। इतना ही नहीं, ईरान भारत को भुगतान के लिए 60 दिनों की क्रेडिट देता है, जबकि दूसरे देश सिर्फ 30 दिन की ही क्रेडिट देते हैं। यद्यपि भारत के लिए कच्चे तेल के आयात हेतु ईरान का विकल्प तलाशना मुश्किल नहीं होगा, लेकिन उस नए विकल्प के साथ हमें ऐसी तमाम सहूलियतें शायद न मिलें, जो फिलहाल ईरान हमें देता है।

 

इन तमाम परिस्थितियों को देखते बेहतर यही होगा कि भारत जहां एक ओर तेल की कीमतों में कटौती के लिए ओपेक पर लगातार दबाव बनाए रखे, वहीं अपनी ऊर्जा संबंधी जरूरतों की पूर्ति के लिए तेल के बजाय अन्य विकल्पों को बढ़ावा देने की नीति अख्तियार करे। पिछले महीने दुनिया के तीन में से दो सबसे बड़े तेल उपभोक्ता देश चीन और भारत ने साथ मिलकर तेल उत्पादक देशों पर कच्चे तेल की कीमतें वाजिब किए जाने का दबाव बनाने हेतु संयुक्त रणनीति को अंतिम रूप दिया। इसके तहत सबसे पहले ओपेक संगठन पर कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाने हेतु दबाव बनाया गया, जो सफल रहा। ज्ञातव्य है कि एशियाई देशों के लिए तेल आपूर्तियां दुबई या ओमान के कच्चे तेल बाजारों से संबंधित होती हैं, नतीजतन उनसे यूरोप व उत्तरी अमेरिका के देशों की तुलना में कुछ अधिक कीमतें ली जाती हैं। कीमतों के इस आधिक्य को 'एशियाई प्रीमियम की संज्ञा दी गई है। यह एशियाई प्रीमियम अमेरिका या यूरोपीय देशों की तुलना में प्रति बैरल करीब छह डॉलर अधिक है। इस संदर्भ में भारत और चीन का तर्क है कि चूंकि वे दुनिया में बड़े तेल आयातक देश हैं, अतएव उनसे एशियाई प्रीमियम वसूल करने के बजाय उन्हें बड़ी मात्रा में तेल खरीदी का विशेष डिस्काउंट दिया जाना चाहिए। यदि भारत व चीन अपने गठजोड़ का विस्तार करते हुए इसमें दो और बड़े तेल उपभोक्ता देश दक्षिण कोरिया व जापान को भी भागीदार बना लें तो ये चारों संगठित रूप से तेल उत्पादक देशों से कीमतों को लेकर ज्यादा प्रभावी ढंग से मोलभाव कर सकेंगे।

 

इसके साथ-साथ देशवासियों को पेट्रोल और डीजल की महंगाई से बचाने के लिए सरकार अपनी ऊर्जा नीति को नए सिरे से तैयार करने पर ध्यान केंद्रित करे तो बेहतर होगा। हमारा देश इस वक्त तेजी से विकास पथ पर अग्रसर है और ऐसा अनुमान है कि वर्ष 2030 तक देश की ऊर्जा संबंधी मांग बहुत तेजी से बढ़ेगी। इस अवधि में यह मांग दुनिया के किसी भी अन्य देश की तुलना में तेज हो सकती है। कच्चे तेल के आयात पर इसकी निर्भरता में भी इजाफा होगा। ऐसे में यह आवश्यक है कि सरकार एक एकीकृत ऊर्जा नीति तैयार करे। अब ऐसे उपाय करना अपरिहार्य हो गया है, जिससे तेल पर हमारी निर्भरता घटे। इस हेतु सरकार इलेक्ट्रिक से चलने वाले वाहनों को बढ़ावा दे। ऐसे वाहनों पर टैक्स की दरें कम रखी जाएं और यदि जरूरी लगे तो सबसिडी भी दी जाए।

इस संदर्भ में केंद्र सरकार जून में नीति आयोग द्वारा दिए गए उस महत्वपूर्ण सुझाव पर भी गौर करे, जिसमें कहा गया है कि राज्य परिवहन निगमों को यह लक्ष्य दिया जाए कि वे अपने परिवहन बेड़े में एक निश्चित प्रतिशत में इलेक्ट्रिक वाहनों को शामिल करें। इसके साथ-साथ केंद्र व राज्य सरकारें लोक परिवहन सेवा को सरल और कारगर बनाने के भी उपाय करें, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसे अपनाने के लिए प्रोत्साहित हों।

 

यह भी उपयुक्त होगा कि तेल की कीमतों में राहत देने के लिए पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाया जाए। इसके साथ-साथ राज्य सरकारों को भी एक न्यूनतम दर पर वैट लगाने की अनुमति दी जाए, ताकि उनकी आमदनी में एकदम कमी न आए और लोगों को भी कम दर पर पेट्रोल व डीजल प्राप्त हो सके। सरकार द्वारा तेल बाजार में समय और मूल्य आधारित नीतिगत हस्तक्षेप के मद्देनजर तेल कीमतों को एक मानक स्तर से नीचे रखकर अर्थव्यवस्था में वस्तुओं एवं सेवाओं की खपत को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। हम आशा करें कि भारत तेल कीमतों पर नियंत्रण और ओपेक संगठन से सस्ते कच्चे तेल के मोलभाव के लिए चीन के साथ-साथ दक्षिण कोरिया और जापान से गठजोड़ बनाने की डगर पर आगे बढ़ेगा और यह गठजोड़ कच्चे तेल की कुछ कीमत घटाने में कामयाब होगा। इसके साथ-साथ भारत पेट्रोल और डीजल के उपयोग में कमी लाने के लिए सार्वजनिक परिवहन प्रणाली और इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रयोग की दिशा में भी तेजी से आगे बढ़ेगा। ऐसे प्रयासों से ही देश की अर्थव्यवस्था कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के नकारात्मक असर से निपट सकती है।

 


https://naidunia.jagran.com/editorial/expert-comment-time-to-decrease-dependancy-on-oil-1814439


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close