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न्यूज क्लिपिंग्स् | तो हकीकत बनेगा लखटकिया ट्रैक्टर!

तो हकीकत बनेगा लखटकिया ट्रैक्टर!

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published Published on Aug 6, 2010   modified Modified on Aug 6, 2010

गोरखपुर [गिरीश पांडेय]। नैनो जैसा लखटकिया ट्रैक्टर? खेती-बारी से जुड़े तमाम लोगों के मन में यह सवाल उठता है। क्या लाख रुपये का ट्रैक्टर किसानों को मिल सकता है? मिलेगा तो कैसे? इसकी उपयोगिता और क्षमता क्या होगी?

ट्रैक्टर निर्माताओं के डीलरों से मिल रहे फीड बैक के मुताबिक ऐसा संभव है। कुछ कंपनियां तो सस्ते ट्रैक्टर के निर्माण के क्षेत्र में पहल भी कर चुकी हैं। मसलन हाल ही में एक अग्रणी कंपनी ने गुजरात में करीब डेढ़ लाख का 15 हार्स पावर का ट्रैक्टर लांच किया है। इससे पहले पटना की एक कंपनी 22 हार्स पावर का करीब डेढ़ लाख रुपये का एक ट्रैक्टर लांच कर चुकी है।

बाजार से जुड़े लोगों की मानें तो अन्य कंपनियां भी इस मामले में गंभीर हैं। डीलरों और किसानो से ऐसे ट्रैक्टर की संभावना के बारे में फीडबैक भी लिए जा चुके हैं। कारोबार से जुड़े लोगों की मानें तो अगर सरकार, निर्माता और डीलर अपने-अपने स्तर से थोड़ी-थोड़ी रियायत करें, तो मौजूदा समय में ही लाख रुपये से कुछ ऊपर का ट्रैक्टर किसानों के लिए उपलब्ध हो सकता है। नये उत्पादों को छोड़ दिया जाये, तो बाजार में कम कीमत के उपलब्ध ट्रैक्टरों के दाम करीब तीन लाख रुपये है। इसमें उत्पादक को करीब 80 हजार का लाभ होता है। करीब इतना ही विभिन्न करों के रूप में सरकार को जाता है। 10-15 हजार डीलर का मुनाफा होता है। अगर हर कोई अपने हिस्से में कुछ कटौती करे और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत 30-35 हार्स पावर के ट्रैक्टर पर 30 हजार रुपये का जो अनुदान देय है, उसे कम कीमत वाले ट्रैक्टरों पर भी दिया जाये, तो तीन लाख ट्रैक्टर ही डेढ़ से दो लाख के बीच पड़ेगा। कंपनियां कम कीमत का जो नया ट्रैक्टर लांच कर रही हैं या करेंगी अगर उसमें ये सारी बातें समाहित कर दी जायें तो लाख टके का ट्रैक्टर किसानों के लिए हकीकत होगा।

खेती-बारी से जुड़े लोग भी इससे सहमत हैं। एग्रोनामी से एमएससी करने के बाद खेती करने वाले संजय सिंह का कहना है कि अगर शासन की सारी योजनाओं के केंद्र में लघु और सीमांत किसान है तो किसानों के इस तबके के हित में सबको अपने-अपने हिस्से का कुछ न कुछ छोड़ना पड़ेगा। बात अगर उप्र की करें तो यहां के लिए तो यह और जरूरी है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार सूबे के 90 फीसदी किसान छोटी जोत वाले हैं। इनमें से 75 फीसदी की जोत तो एक हेक्टेयर से कम है। इनमें से अधिकांश की हैसियत तीन लाख या इससे ऊपर की कीमत का ट्रैक्टर खरीदने की नहीं है। ऐसे में इनमें से अधिकांश किराए के ट्रैक्टर या बैल से खेती कराते हैं। मौजूदा समय में बैल की एक बढि़या जोड़ी भी तीस हजार रुपये से कम की नहीं। पशु की जिंदगी कम होने और अन्य जोखिम अलग से। ऐसे में लाख रुपए या इससे कुछ अधिक का ट्रैक्टर किराए के ट्रैक्टर या बैलों की जोड़ी का विकल्प हो सकता है।

रही बात कंपनियों के घाटे-मुनाफे की, तो इस बाबत एक कंपनी के डीलर और कृषि यंत्र निर्माता एसएन पांडेय का कहना है कि ट्रैक्टर उपयोगी रहा और बाजार में मांग निकली, तो कंपनियों के घाटे का कोई सवाल ही नहीं। बढ़ते और मंहगे श्रम संकट के मद्देनजर किसान भी फायदे में रहेंगे। एक अन्य स्थानीय डीलर श्यामल चौधरी का कहना है कि उनकी कंपनी तो कम कीमत का ट्रैक्टर गुजरात में लांच कर चुकी है। नतीजे बेहतर रहे, तो निश्चित ही उप्र उसके लिए सबसे संभावनाओं वाला बाजार होगा।


http://in.jagran.yahoo.com/news/business/general/1_12_6625848.html
 

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