Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | दक्षिण ने इस साल नई करवट ली -- एस श्रीनिवास

दक्षिण ने इस साल नई करवट ली -- एस श्रीनिवास

Share this article Share this article
published Published on Dec 26, 2018   modified Modified on Dec 26, 2018
जब 2018 अपनी ढलान की ओर था, तभी सबरीमाला मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया। यह फैसला सभी उम्र की औरतों को भगवान अयप्पा की पूजा करने का अधिकार देता है और धार्मिक मामलों के सामूहिक प्रबंधन पर पूजा-अर्चना की व्यक्तिगत स्वतंत्रता, गरिमा और समानता के सांविधानिक अधिकारों की रक्षा करता है। अयप्पा मंदिर प्रबंधन 10 से 50 साल की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं देता, क्योंकि वह उन्हें ‘अपवित्र' मानता है। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 4-1 के अनुपात से यह फैसला सुनाया था और जिस एकमात्र महिला जज ने असहमति का फैसला दिया, उनका कहना था कि धार्मिक परंपराओं को व्यक्तिगत स्वतंत्रता या लैंगिक समानता से नहीं जोड़ा जा सकता। वह याचिकाकर्ताओं की इस दलील से भी सहमत नहीं थीं कि प्रसव-योग्य उम्र की महिलाओं के मंदिर प्रवेश पर रोक उनके साथ ‘अछूत'-सा व्यवहार है।

इस पूरे मसले ने बहस की चौतरफा झड़ी लगा दी। तर्क दिया गया कि एक तरफ तो भारतीय संस्कृति मातृत्व की पूजा करती है, लेकिन दूसरी ओर प्रजनन योग्य स्त्री को ‘अपवित्र' समझा जाता है। हालांकि अदालत के बहुमत फैसले ने ‘सामूहिक अधिकार' पर निजी हक को महत्व दिया है। सबरीमाला मामले में सामूहिक अधिकार से आशय मंदिर प्रबंधन से है। मगर फैसले से असहमत लोगों ने इसे धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में दखलंदाजी के रूप में लिया।

इस प्रसंग में प्रथाओं पर भी अलग-अलग राय देखने को मिली, क्योंकि फैसले को चुनौती देने वालों में अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधि भी शामिल थे, जिनकी दलील थी कि भगवान अयप्पा और मंदिर प्रबंधन का ‘ब्राह्मणवादी इस्तेमाल' होता रहा है, जबकि यह हक आदिवासी समुदाय माला अराया का था। यह समुदाय मानता है कि भगवान अयप्पा उनके ‘माला देवांगल' यानी पहाड़ी देवताओं में से एक हैं।

बड़े धरातल पर देखें, तो सबरीमाला विवाद भी भारत में पहचान संबंधी दावों और राजनीति का ही एक हिस्सा दिखता है। यहां यह राजनीति तरह-तरह के वे समुदाय करते रहे हैं, जो हिंदुत्ववादी राजनीति के विपरीत हैं। एक हिंदू कौन है? यह बुनियादी सवाल पड़ोसी कर्नाटक के विधानसभा चुनावों में भी उठाया गया था। तब सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने लिंगायत को एक अलग धर्म की मान्यता देने संबंधी प्रस्ताव पारित किया था। सूबे में यह समुदाय संख्या बल के लिहाज से काफी मजबूत है। भाजपा ने सिद्धारमैया के इस कदम को उत्तरी कर्नाटक में हिंदू वोट बैंक को बांटने की चाल के रूप में देखा। इसे वह अपना वोट बैंक मानती रही है। उदारवादियों ने सिद्धारमैया के उस कदम को मास्टर स्ट्रोक माना था, लेकिन चुनाव में यह कदम नाकाम साबित हुआ। बल्कि, विश्लेषण यह भी है कि दांव शायद उल्टा पड़ा और कांग्रेस की पराजय का कारण भी यही बना। पर दूसरी तरफ, जनादेश को भाजपा या उसकी हिंदुत्व की राजनीति के पक्ष में भी नहीं पढ़ा जा सकता। सबरीमाला मामले में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका डालने वालों में वे लोग भी शामिल थे, जो पड़ोसी सूबे तमिलनाडु से प्रेरित थे। तमिलनाडु में 2017 में लोग जलीकट्टू पर रोक के खिलाफ बड़ी संख्या में सड़कों पर उतर आए थे। इस खेल में बैलों के इस्तेमाल को पशु अधिकारवादी अनुचित मानते थे, जबकि समर्थकों ने परंपरा की दुहाई देते हुए जलीकट्टू का बचाव किया था।

पहचान की राजनीति के अलावा दक्षिण के दो महत्वपूर्ण घटनाक्रमों के लिए भी 2018 को याद किया जाएगा। एक, तेलंगाना विधानसभा चुनाव में तेलुगुदेशम पार्टी यानी टीडीपी-कांग्रेस गठबंधन और दूसरा, एम करुणानिधि का देहांत। अभिनेता से नेता बने एनटी रामाराव (एनटीआर) ने साल 1982 में टीडीपी की स्थापना की थी। इसकी स्थापना का मकसद कांग्रेसवाद का विरोध था, लेकिन 2018 में एनटीआर के दामाद चंद्रबाबू नायडू ने तेलंगाना में अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी के चंद्रशेखर राव के खिलाफ ‘महाकुटुंबी' में शामिल होकर उस मकसद को बेमानी बना दिया। नायडू ने तेलंगाना विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और वाम दलों के साथ गठबंधन किया। हालांकि गठबंधन तेलंगाना में बुरी तरह हार गया, अब आम चुनाव, खासकर इसके साथ होने वाले विधानसभा चुनाव में इसकी कठिन परीक्षा होगी।

दिसंबर 2016 में जयललिता की मौत के बाद ही तमिलनाडु की राजनीति में एक गहरा खालीपन पैदा हो गया था, इस वर्ष करुणानिधि की मौत के साथ यह सियासी खाई और चौड़़ी हो गई है। जो भी दल दव्रिड विचारधारा का विरोध करते रहे हैं, वे इसे तमिलनाडु में अपनी ठोस उपस्थिति दर्ज करने के मौके के तौर पर देख रहे हैं। अनेक कोशिशों के बावजूद जो भाजपा अब तक राज्य में कोई छाप छोड़ने में नाकाम रही है, उसे उम्मीद है कि संसदीय चुनाव में अन्नाद्रमुक के साथ गठजोड़ करके वह मजबूत उपस्थिति दर्ज कराएगी। हालांकि अन्नाद्रमुक के अंदरूनी हालात बहुत अच्छे नहीं हैं, मगर दो पत्तियों वाले इसके चुनाव चिह्न में अब भी दम है।

चूंकि तमिलनाडु का सिनेमा गहरे तौर पर राजनीति से जुड़ा रहा है, ऐसे में जब दो सुपरस्टार- रजनीकांत और कमल हासन ने सियासत में आने का फैसला किया, तो नई उम्मीदें भी जगीं। रजनीकांत ने पिछले दिसंबर में ही अपनी पार्टी का एलान किया था, मगर उसके बाद से अब तक वह इस दिशा में कोई खास प्रगति नहीं कर पाए हैं। अलबत्ता, कमल हासन ने संसदीय चुनाव लड़ने की घोषणा की है।

इस बीच डीएमके नेता एम के स्टालिन ने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित करके यह पुष्टि कर दी है कि उनका कांग्रेस से गठबंधन जारी रहेगा। यह कांग्रेस के लिए एक अच्छी खबर है, क्योंकि 2016 के विधानसभा चुनाव में डीएमके गठबंधन की हार के लिए उसे ही दोषी ठहराया गया था। दरअसल, सीटों के समझौते में कांग्रेस को पर्याप्त सीटें मिली थीं, मगर उसे कामयाबी खास नहीं मिली और उसके कम उम्मीदवार विधानसभा पहुंचे। अनुमान किया जा रहा है कि डीएमके को अभी बढ़त है, पर खेल अभी खेला जाना बाकी है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)


https://www.livehindustan.com/blog/story-opinion-hindustan-column-on-25-december-2329407.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close