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न्यूज क्लिपिंग्स् | दूध की किल्लत से निपटने के लिए सरकार लेगी आयात का सहारा

दूध की किल्लत से निपटने के लिए सरकार लेगी आयात का सहारा

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published Published on Mar 3, 2010   modified Modified on Mar 3, 2010
नई दिल्ली : सरकार देश में दूध और उसके उत्पादों की कमी को देखते हुए स्किम्ड मिल्क पाउडर और बटर ऑयल के आयात को मंजूरी देने पर विचार कर रही है। एक सरकारी अधिकारी ने ईटी को बताया कि कीमतों पर बनी सचिवों की समिति इस प्रस्ताव पर जल्द ही फैसला ले सकती है। इस प्रस्ताव के मुताबिक, नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड को देश में 30,000 टन स्किम्ड मिल्क पाउडर और 15,000 टन एनहायड्रस बटर ऑयल के तत्काल आयात के लिए कहा जाएगा।

भारत में करीब 10.5 करोड़ टन दूध का रोजाना उत्पादन होता है। यह देश की मांग के तकरीबन बराबर ही है। ऐसे में पिछले साल सूखे ने इस मांग और आपूर्ति की स्थिति को गड़बड़ा दिया है। यह भी चिंता जताई जा रही है कि सरकारी नीतियों के चलते जानवरों का मांस के लिए ज्यादा इस्तेमाल किया जाने लगा है, इससे हर साल दुधारू पशुओं की तादाद कम हो रही है। साथ ही अगले कुछ साल में दूध उत्पादन में गिरावट की ग्रोथ में गिरावट आ सकती है।

दूध की कीमतों में पिछले छह महीने में चार रुपए लीटर की तेजी आ चुकी है। साथ ही बटर ऑयल या घी में करीब पांच फीसदी की तेजी आई है। देश भर में दुग्ध सहकारी समितियां ऊंचे खरीद भाव और कम आपूर्ति के चलते कीमतों में फिर से बढ़ोतरी कर सकती हैं। अमूल ब्रांड नाम से दूध और दुग्ध उत्पादों की बिक्री करने वाले गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन ने हाल में ही अपने फुल क्रीम दूध की कीमत में दो रुपए प्रति लीटर का इजाफा किया है। इसी तरह से महाराष्ट्र ने भी चारे की कीमतों में आई तेजी को देखते हुए अपने यहां दूध खरीद की कीमत बढ़ा दी है। केंद्रीय खाद्य और कृषि मंत्री शरद पवार ने हाल में ही राज्यों के दूध खरीद के मामले पर जोर दिया है।

पवार ने कहा था कि दूध की खरीद करने वाले राज्यों को इसकी खरीद कीमत में बढ़ोतरी करनी चाहिए। कुल उत्पादित दूध में से करीब 50 फीसदी हिस्सा गांवों के परिवारों में खप जाता है। इसके बाद बचे हुए 50 फीसदी हिस्से को बाजार में सरप्लस के तौर पर माना जाता है। इस वितरण योग्य हिस्से में से 30 फीसदी पर ऑर्गेनाइज्ड सेक्टर का कब्जा है। ज्यादातर दुग्ध सहकारी समितियां अपने यहां सर्दियों के सीजन में मिल्क पाउडर का कोटा तैयार कर लेती हैं। सर्दियों के दौरान दूध का उत्पादन ज्यादा होता है। गर्मियों में इस दूध को बफर के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है जबकि इसकी कमी हो जाती है। लेकिन इस साल सहकारी समितियां बफर स्टॉक में असफल रही हैं। इसकी बड़ी वजह देश में पड़ा सूखा है।

http://hindi.economictimes.indiatimes.com/articleshow/5587383.cms
 

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