Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | देर से मिला राहत भरा फैसला-- लक्ष्मीकांत चावला

देर से मिला राहत भरा फैसला-- लक्ष्मीकांत चावला

Share this article Share this article
published Published on Mar 17, 2016   modified Modified on Mar 17, 2016
जब आईपीसी में धारा 498-ए को शामिल किया गया था, तो समाज ने, विशेषकर वैसे परिवारों ने राहत महसूस की, जिनकी बेटियां दहेज के कारण ससुराल में पीड़ित थीं या निकाल दी गई थीं। लोगों को लगा कि विवाहिता बेटियों के लिए सुरक्षा कवच प्रदान किया गया है। इससे दहेज के लिए बहुओं को प्रताड़ित करने वालों परिवारों में भी भय का वातावरण बना। शुरू में तो कई लोग कानून की इस धारा से मिलने वाले लाभों से अनभिज्ञ थे, लेकिन धीरे-धीरे लोग इसका सदुपयोग भी करने लगे। पर कुछ ही समय बाद इस कानून का ऐसा दुरुपयोग शुरू हुआ कि यह वर पक्ष के लोगों को डराने वाला शस्त्र बन गया।

इस कानून के दुरुपयोग की शिकार एक पूरे परिवार को मैंने लुधियाना की जेल में बंद पाया। उसमें मृतक महिला की वह देवरानी भी थी, जो कुछ ही महीने पहले ब्याहकर ससुराल आई थी। किसी ने यह भी नहीं सोचा कि यह युवती, जो कुछ ही महीने पहले ब्याहकर आई है, उसका अपनी जेठानी को तंग करने या मारने में कितना योगदान हो सकता है! कहीं-कहीं तो विवाहिता और अविवाहिता ननदें भी शिकंजे में आ जाती थीं।

बीते कुछ वर्षों में कानून के रक्षकों-पुलिस और प्रशासन ने भी यह महसूस किया कि 498-ए का दुरुपयोग हो रहा है। सर्वोच्च न्यायालय तक यह आवाज पहुंची। मेरे कुछ परिचित वकीलों ने भी बताया कि उनके पास जो लोग इस धारा के तहत केस लड़ने के लिए आते हैं, उनमें से अधिकतर यही सोचते हैं कि एक बार बेटी के ससुराल वालों पर दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज हो जाए, तो तलाक और मुंहमांगी रकम आसानी से मिल जाएगी।

सच बात तो यह है कि 498-ए विवाहिता बेटी को ससुराल से मुंहमांगी रकम दिलवाने का एक प्रबल औजार बन गया। जिन लोगों ने सादगी से विवाह किया, लड़की वालों से कोई बड़ा दहेज नहीं लिया, वे भी अपराधी बनाकर जेलों में बंद किए गए। पंजाब की कुछ प्रमुख जेलों का निरीक्षण करने के दौरान मैंने पाया कि कुछ परिवारों की सभी महिला सदस्य वहां बंद थीं, क्योंकि उनके परिवार की किसी बहू ने या तो दहेज उत्पीड़न की शिकायत की या आत्महत्या कर ली थी। उनका केस लड़ने के लिए कोई पुरुष सदस्य बाहर नहीं था। ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय ने अभी जो निर्णय दिया है, वह वास्तव में सुकूनदेह है।

अब सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्देश दिया है कि दहेज प्रताड़ना के मामले में केवल एफआईआर के आधार पर मुकदमा नहीं चल सकेगा। शिकायतकर्ता के पति व अन्य रिश्तेदारों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए स्पष्ट आरोप होना आवश्यक है। न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर व ज्ञानसुधा मिश्र की पीठ ने यह फैसला ननद व जेठ के खिलाफ मुकदमा निरस्त करते हुए सुनाया है।

माननीय न्यायाधीशों ने स्पष्ट किया कि जब तक प्राथमिकी में मुख्य अभियुक्त के रिश्तेदार सह अभियुक्तों के विरुद्ध शिकायतकर्ता (पत्नी) को मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने के विशिष्ट आरोप न हों, तब तक सिर्फ एफआईआर में नाम होने के आधार पर मुकदमा चलाना कानूनी और अदालती प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।

कानून का निर्धारित सिद्धांत है कि अगर एफआईआर में अपराध का खुलासा नहीं होता हो, तो अदालती प्रक्रिया का दुरुपयोग रोकने के लिए अदालत का मुकदमा निरस्त करना न्यायोचित होगा। माननीय न्यायाधीशों ने जोर देकर कहा कि अदालतों से अपेक्षा की जाती है कि वे वैवाहिक झगड़ों के मुकदमों को निरस्त करने की मांग पर विचार करते समय सतर्क रहेंगे।

विशेष तौर पर उन मामलों में, जहां शादी के बाद ससुराल में पत्नी को परिवार के साथ सामजंस्य बनाने में कोई विशेष कठिनाई आई हो और पत्नी द्वारा मुख्य अभियुक्त के रिश्तेदारों पर बढ़ा-चढ़ाकर आरोप लगाए गए हों और उसमें पूरे परिवार को शामिल कर दिया गया हो। अब जब सर्वोच्च न्यायालय ने 498-ए धारा के सताए हुए लाखों परिवारों को राहत दी है, तो झूठी गवाही देने वालों को भी सोचना चाहिए, जो रिश्तेदारी या पैसे की खातिर ऐसा करते हैं। अच्छा होगा कि पुलिस और निचली अदालतें भी झूठी गवाही देने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाए।


http://www.amarujala.com/columns/opinion/importance-of-ipc-section-498a


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close