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न्यूज क्लिपिंग्स् | देवली ब्रह्रग्राम की विधवाओं की मदद करेगा सुलभ

देवली ब्रह्रग्राम की विधवाओं की मदद करेगा सुलभ

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published Published on Jul 5, 2013   modified Modified on Jul 5, 2013
जनसत्ता संवाददाता, नयी दिल्ली। उत्तराखंड में गुप्तकाशी से सात किलोमीटर दूर एक ऐसा गांव है, जहां के लगभग सभी विवाहित पुरुष पिछले दिनों आई आपदा बाद से लापता हैं। उनके बचे होने की उम्मीद न के बराबर है। इस भीषण त्रासदी के बाद देवली ब्रह्मग्राम को गैर सरकारी संगठन सुलभ इंटरनेशनल ने गोद लेने का फैसला किया है। सुलभ के बिंदेश्वर पाठक ने इस गांव के छह टोलों की सभी 57 महिलाओं को प्रतिमाह दो हजार रुपए देने की घोषणा की है।
सुलभ इंटरनेशनल ने इन दिनों समाज के हाशिए पर रहने वाली विधवाओं को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने का बीड़ा उठाया है और अपने इसी अभियान के तहत वह उत्तर प्रदेश के वृंदावन और वाराणसी के विधवा आश्रमों में रह रही विधवाओं को भी प्रतिमाह दो-दो हजार रुपए दे रहा है। डा पाठक ने कहा कि वह वृंदावन और वाराणसी में चल रहे सुलभ के अभियान को उत्तराखंड के देवली ब्रह्मग्राम तक पहुंचाएंगे और आपदा में अपने पतियों को खो चुकी महिलाओं को दो-दो हजार रुपए प्रतिमाह सहायता राशि देंगे ताकि वे अपने घर-परिवार को वह फिर से खड़ा सकें।
उन्होंने बताया कि यह सहायता अगले पांच साल तक मिलती रहेगी। इसके बावजूद यदि जरूरत हुई तो इन विधवाओं को उनका संगठन सहायता राशि जारी रखेगा। सुलभ उन्हें व्यावसायिक प्रशिक्षण दिला कर उन्हें अपने पांव पर खड़ा कराने का प्रयास करेगा। डा पाठक ने कहा कहा- हमने विधवाओं की मदद के लिए हाल ही में सुलभ होप फाउंडेशन का गठन किया है।
उन्होंने कहा कि मीडिया रिपोर्ट के आधार पर सुलभ ने उस खास गांव की 57 पीड़ित महिलाओं की जरूरतों का खयाल रखने का फैसला किया है। उन्होंने कहा कि हम अपने स्वयंसेवियों की टीम भेजेंगे ताकि वास्तविक जानकारी तुरंत हासिल की जा सके। डा पाठक ने कहा, उन जवान महिलाओं के लिए निश्चित तौर पर यह दुख घड़ी है, जिनके पति लापता हैं और उनके वापस आने की उम्मीद न के बराबर है। लेकिन हम उन्हें भरोसा देते हैं कि सुलभ दुख की इस घड़ी में उनकी सहायता के लिए तत्पर है। संगठन का यह प्रयास होगा कि उनके पास दो वक्त की रोटी, तन ढकने के लिए कपड़े और सिर छुपाने के लिए एक छत जरूर हो।

 


http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/1-2009-08-27-03-35-27/48417-2013-07-05-04-52-23


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