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न्यूज क्लिपिंग्स् | देशद्रोही नहीं बिनायक सेन: सुप्रीम कोर्ट ने दी बेल, कहा- नहीं बनता कोई केस

देशद्रोही नहीं बिनायक सेन: सुप्रीम कोर्ट ने दी बेल, कहा- नहीं बनता कोई केस

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published Published on Apr 15, 2011   modified Modified on Apr 15, 2011

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने आज बिनायक सेन की जमानत को मंजूरी दे दी है। उनके शुक्रवार शाम तक रिहा होने की संभावना है। रायपुर की एक अदालत ने उन्हें माओवादियों की मदद का दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने बिनायक सेन की जमानत याचिका को नामंदूर कर दिया था, जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने बिनायक सेन की जमानत की याचिका को मंजूर करते हुए कहा कि जमानत के बारे में बाकी शर्तें निचली अदालत तय करेगी। 

जस्टिस एचएस बेदी ने याचिका पर अपने फैसले में कहा, वह नक्सलवादियों से सहानुभूति रखने वाले हो सकते हैं, लेकिन इस कारण वह राजद्रोह के दोषी नहीं हैं। बिनायक सेन के वकील एसके फरहान ने कहा, ऐसा कोई सबूत नहीं है कि वह किसी माओवादी संगठन के सदस्य हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेन के खिलाफ राजद्रोह का कोई केस नहीं बनता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि माओवादियों से सहानुभूति रखने वाले कई लोग हो सकते हैं और केवल इतने आरोप के लिए सेन को अपराधी नहीं माना जा सकता है। 

पेशे से डॉक्टर और वेल्लोर के प्रतिष्ठित क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज से पढ़े हुए डॉ सेन ने जमानत की याचिका दर्ज करते हुए कहा था कि पुख्ता सबूत न होते हुए भी कोर्ट ने उन पर गलत आरोप लगाया है।

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा इस मामले में और समय मांगने के बाद 11 अप्रैल को जस्टिस एच एस बेदी और सी के प्रसाद की बेंच ने सुनवाई को स्थगित कर दिया था।

सेन की जमानत याचिका का विरोध कर रही छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने हलफनामे में कहा था कि उन्हें किसी प्रकार की राहत नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि उनके नक्सलियों से बहुत गहरे संबंध रहे हैं। अपने हलफनामे में सरकार ने कहा, 'सेन सीपीआई माओवादियों के आधार को देशभर में फैलाने के लिए सक्रिय तौर पर सहयोग देते हैं। वे छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड और उड़ीसा में नक्सलियों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर जानकारी देते हैं और नक्सली विचारधारा का प्रचार करते हैं'। हलफनामे के अनुसार बिनायक सेन ने रायपुर में नक्सली नेताओं के रहने की व्यवस्था की और अपनी पत्नी के जरिए कट्टर नक्सली शंकर सिंह और अमिता श्रीवास्तव के बैंक अकाउंट खुलवाए। 


सरकारी वकील ने तर्क देते हुए कहा कि यदि सेन को जमानत मिल गई, तो वे छत्तीसगढ़ में मामले के गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं, जैसा कि गुजरात में अमित शाह ने किया। लेकिन जज ने कहा कि दोनों व्यक्तियों की तुलना नहीं की जा सकती।  

सेन पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टी के उपाध्यक्ष हैं, को नक्सल विचारधारा वाले नेता नारायण सान्याल और कोलकाता के व्यावसायी पीयूष गुहा के साथ सजा सुनाई गई थी।   

सेन पर लगाए गए आरोपों का उनके समर्थकों ने ज़बरदस्त विरोध किया और कई अंतरर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं ने सरकार से सुनवाई पर नज़र रखने की अनुमति भी मांगी थी।

कई प्रबुद्ध लोगों ने भी छत्तीसगढ़ सरकार के फैसले का विरोध किया। इनमें नोबल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन भी शामिल है।

विनायक सेन की पत्नी इलिना सेन ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद कहा कि वे अब राहत महसूस कर रही हैं। उन्होंने कहा कि उनके पति के जेल में रहने से उन्हें काफी समस्याएं हुईं, लेकिन उन्होंने कभी भी उम्मीद नहीं छोड़ी।  उन्होंने कहा कि लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। अभी बहुत कुछ करना है। उन्होंने कहा कि कोई व्यक्ति किसी भी विचारधारा में विश्वास रख सकता है और ऐसा करना राजद्रोह नहीं है। 


http://www.bhaskar.com/article/NAT-decision-on-binayak-sen-bail-plea-by-supreme-court-today-2021331.html?HT4=


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