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न्यूज क्लिपिंग्स् | धान की देशी किस्‍मों के सुधार में गामा किरणे कारगर

धान की देशी किस्‍मों के सुधार में गामा किरणे कारगर

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published Published on May 10, 2015   modified Modified on May 10, 2015
रायपुर (छत्‍तीसगढ़)। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के वैज्ञानिकों ने भाभा एटामिक रिसर्च सेंटर (बार्क) मुंबई के सहयोग धान की देशी सुगंधित किस्में दुबराज और जवाफूल की नई किस्म विकसित की हैं। गामा किरणों के उपयोग से पारंपरिक देशी किस्मों में काफी सुधार हुआ है।

इससे नई किस्मों की ऊंचाई पारंपरिक किस्मों से 40 सेंटीमीटर कम है। इसकी पकने की अवधि 35 से 40 दिन कम हैं और उत्पादन दोगुने से अधिक हैं। नई किस्म में पारंपरिक सुगंधित किस्म की सभी वांछनीय गुण मौजूद हैं।

उल्लेखनीय है कि धान का कटोरा कहा जाने वाला छत्तीसगढ़ राज्य अपनी परंपरागत एवं देशी धान की सुगन्धित किस्मों जैसे- दुबराज, बादशाह भोग, विष्णुभोग, तरुण भोग, लक्ष्मी भोग, कपूर भोग, जवाफूल, जीराफूल, तुलसी मंजरी, राम जीरा, काली कमोद, चिन्नौर आदि के लिए प्रसिद्ध हैं। कृषि विश्वविद्यालय में इन किस्मों में निरंतर सुधार के लिए मसलन ऊंचाई कम करना व कम अवधि वाली फसल पर अनुसंधान कार्य किए जा रहे हैं।

इससे इन किस्मों का भी कम अवधि में फसल की कटाई की जा सके। अधिक अवधि होने से किसान दूसरी फसल सही समय पर नहीं ले पाता। अधिक ऊंचाई होने से फसल गिर जाती है, जिससे उत्पादकता में कमी आ जाती है। इन्हीं कारणों से यहां के किसानों में ऐसी किस्मों को लगाने में रुझान कम हो रहा है।

परमाणु अनुसंधान केंद्र का धान पर रिसर्च में सहयोग

किसानों के सुगंधित किस्मों को सुधारने के लिए भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बार्क) ने इन कमियों को दूर करने के लिए एक परियोजना (बीआरएनएस) के अन्तर्गत दो किस्मों दुबराज और जवाफूल का सुधार कार्यक्रम वर्ष 2011-12 में शुरू किया था।

कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के कृषि वैज्ञानिक व इस योजना के प्रमुख अन्वेषक डॉ.दीपक शर्मा ने बताया कि उत्परिवर्तन प्रक्रिया पादप आनुवांशिक विभिन्नता उत्पन्न करने की वह विधि है, जिसमें उच्च ऊर्जा की किरणें (गामा किरण व एक्स किरण) बीज के डीएनए की आण्विक संरचना में परिवर्तन करता है, जिसमें नए प्रकार की विविधता उत्पन्न होती है। इससे मानव उपयोगी किस्मों का चयन किया जा सकता है।

वर्तमान समय में, उत्परिवर्तन फसल सुधार की एक महत्वपूर्ण और सशक्त प्रजनक विधि है। अभी तक उत्परिवर्तन की विधि को कुल 57 प्रजातियों में प्रयुक्त किया गया है। फसलों की कुल 343 किस्मों को इस विधि द्वारा सफलतापूर्वक विकसित किया जा चुका है। केवल धान में, 42 किस्मों को प्रेरक उत्परिवर्तन विधि द्वारा विकसित किया जा चुका है, जिनकी देश के विभिन्न राज्यों में खेती की जा रही है।

रिसर्च में सफलता

इन किस्मों की प्रेरित उत्परिवर्तन विधि द्वारा गामा किरणों से उपचारित कर पादप प्रजनन विधियों से मध्यम व कम अवधि में पकने वाले म्यूटेन्ट प्राप्त कर लिए हैं, जो कि यहां के किसानों की प्रमुख मांग रही हैं। इन किस्मों को कम अवधि एवं कम ऊंचाई में लाने के लिए दूसरी अन्य प्रजनन विधियों का प्रयोग किया गया।

इससे आशातीत सफलता नहीं मिली थी। इसी तारतम्य में अनुसंधान कार्य के लिए बार्क के द्वारा 'प्रेरक उत्परिवर्तन द्वारा लोकप्रिय किस्म दुबराज और जवाफूल की मध्यम-ऊंची एवं मध्यम देर से पकने वाली किस्मों का विकास' के शीर्षक नामक परियोजना स्वीकृत की गई।

रिसर्च में इनका योगदान

इस परियोजना की शुरुआत बीएआरसी (बार्क) के प्रमुख कोलाबोरेटर डॉ.बीके दास, विकास कुमार व कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के प्रमुख अन्वेषक डॉ. दीपक शर्मा (आनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग) द्वारा किया गया। इन म्यूटेन्ट किस्मों की गुणवत्ता एवं दाने का प्रकार स्थानीय किस्मों के समान ही है। इन किस्मों को जारी करने तथा प्रगुणन एवं विस्तार के लिए अग्रिम प्रक्रिया की जा रही है, जिससे कि इन किस्मों का बीज यहां के किसानों को प्राप्त हो सके व अधिक से अधिक लाभान्वित हो सके।

इस रिसर्च की सफलता हो देखते हुए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर द्वारा भविष्य में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बार्क) मुंबई से अन्य प्रजातियों के विकास कार्य के लिए एमओयू करने की योजना पर चर्चा की जा रही है। -डॉ.एसके पाटिल, कुलपति, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर


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